क्यों कहते हैं?

क्यों कहते हैं?

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चाय की दुकान पर नये-पुराने ग्राहकों के बीच एक ऐसा ग्राहक कुक्कू जिसे दोबारा कभी उस जगह नहीं आना था। कुक्कू के साथ उसकी रूसी गर्लफ्रेंड डेना भी थी।

कुक्कू - "ओए! 2 चाय, एक खस्ता बना।"

चाय वाला - "ठीक है सर।"

कुक्कू - "....और सुन बे! अच्छी चाय ज़्यादा दूध वाली साथ में खस्ता बड़ा वाला एक्स्ट्रा चटनी के साथ चाय वाला - "अच्छा!"

इसके बाद दुकानदार खुद से बड़बड़ाया। - "क्यों? औरों से ज़्यादा पैसे दे रहे हो जो सब एक्स्ट्रा चाहिए?"

कुक्कू साहब ने बड़बड़ाहट में अपनी तौहीन सुन ली थी। तुरंत कुपोषित चाय वाले की रसीद काटने के लिए उसका कॉलर पकड़ लिया।

"हरामखोर! उतना बोल जितना है। इतना ग़लत क चाय वाला - "नहीं पीनी तो मत पियो, साब! गाली क्यों दे रहे हो? किसी भी सरकारी या प्राइवेट दफ्तर में चले जाओ....पूरी दुनिया ही ग़लत कमा रही है।"

कुछ हिन्दी और हाव-भाव समझ रही डेना ने कुक्कू से पूरी बात समझनी चाही। जब कुक्कू ने बात समझायी तोडेना बोली -

"चाय वाला सही तो कह रहा है। जैसा दाम, वैसा काम...या तो फिर सभी को हमारे जैसा सर्व करे या हमें सबके जैसी चाय और खस्ता परोसे।"

कुक्कू झुंझला कर बोला - "नहीं बेबी, तुम समझ नहीं रही हो। ऐसा यहाँ कहते हैं..."

डेना का मासूम सवाल - "क्यों कहते हैं?"


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