कुरर( चील) पक्षी से प्राप्त शिक्षा-१८
कुरर( चील) पक्षी से प्राप्त शिक्षा-१८
दत्तात्रेय जी कहते हैं कि मनुष्यों को जो वस्तुएँ अत्यंत प्रिय लगती हैं ,उन्हें इकट्ठा करना ही उनके दुख का कारण है ।जो बुद्धिमान पुरुष यह बात समझ कर आकिंचन भाव से रहता है -शरीर की तो बात ही अलग ,मन से भी किसी वस्तु का संग्रह नहीं करता -उसे अनंत सुख स्वरूप परमात्मा की प्राप्ति होती है।
एक बार दत्तात्रेय जी ने देखा कि एक कुरर पक्षी अपनी चोंच में मास का एक टुकड़ा लिये उड़ रहा था। उसने कहीं से वह टुकड़ा पाया था। जिसे लेकर वह अपने घोंसले की ओर जा रहा था या कहीं आराम से बैठकर खाना चाहता था। उस समय दूसरे बलवान कुरर पक्षियों ने जिन्हें कोई शिकार नहीं मिला था और जिनके पास मास नहीं था, उस दुर्बल कुरर पक्षी पर मास के लिए आक्रमण कर दिया; और मास छीनने के लिए उसे घेरकर चोंचें मारने लगे। उस समय अपने जीवन को संकट में देखकर उस कुरर पक्षी ने अपनी चोंच से मास का वह टुकड़ा छोड़ दिया। तभी उसे वास्तविक सुख मिला। मास के छोड़ते ही अन्य पक्षियों ने उसे चोंचें मारना बंद कर दिया।
इसलिए कुरर पक्षी से दत्तात्रेय जी ने सीखा कि अपनी प्रिय वस्तु के प्रति आसक्ति ही मनुष्य के दुख का कारण है । जो आसक्ति का त्याग कर देते हैं वे अनन्त सुख के अधिकारी होते हैं।
भौतिक जगत में हर व्यक्ति कुछ वस्तुओं को अत्यंत प्रिय मानता है और ऐसी वस्तुओं के प्रति लगाव के कारण अन्ततः वह दीन- दुखी बन जाता है ।जो व्यक्ति इसे समझता है वह भौतिक सम्पत्ति तथा लगाव को त्याग देता है और इस तरह असीम आनंद प्राप्त करता है।
