कुमारिल भट्ट: सनातन धर्म का संरक्षक (एक नाटकीय कथा)
कुमारिल भट्ट: सनातन धर्म का संरक्षक (एक नाटकीय कथा)
(एक नाटकीय कथा)
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दृश्य 1: कुमारिल का बचपन
(स्थान: एक छोटे गाँव में ब्राह्मण परिवार का घर।)
(मंच पर एक युवा बालक वेदों का पाठ कर रहा है। उसके पिता उसे देख गर्व से मुस्कुरा रहे हैं।)
पिता: (गर्व से) कुमारिल, तुमने इतनी कम उम्र में ही वेदों का इतना ज्ञान प्राप्त कर लिया। मुझे यकीन है कि तुम एक दिन धर्म की रक्षा करोगे।
कुमारिल: (आत्मविश्वास से) पिता जी, यह मेरा जीवन का उद्देश्य है। मैं वेदों की शक्ति को दुनिया में पुनः स्थापित करूंगा।
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दृश्य 2: बौद्ध धर्म का प्रभुत्व
(स्थान: एक नगर का चौराहा। बौद्ध भिक्षु धर्म प्रचार कर रहे हैं।)
भिक्षु 1: (भीड़ को संबोधित करते हुए) वेद और यज्ञ केवल भ्रम हैं। केवल भगवान बुद्ध का मार्ग ही सत्य है। अहिंसा ही धर्म है।
ग्रामीण: (भीड़ में) लेकिन, भिक्षु जी, हमारे पूर्वजों ने वेदों का पालन किया है। क्या यह गलत था?
भिक्षु 2: (उदासीनता से) वेदों का कोई मूल्य नहीं है। वे अंधविश्वास और हिंसा को बढ़ावा देते हैं।
(कुमारिल यह सब सुनकर क्रोधित होते हैं।)
कुमारिल: (स्वयं से) बौद्ध धर्म ने हमारी संस्कृति और धर्म को खोखला कर दिया है। मुझे इसके विरुद्ध खड़ा होना होगा।
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दृश्य 3: नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश
(स्थान: नालंदा का प्रांगण। कुमारिल भिक्षुओं के बीच खड़े हैं।)
मुख्य आचार्य: (संदेह से) तुम एक ब्राह्मण हो और वेदों में विश्वास करते हो। तुम यहां बौद्ध धर्म का अध्ययन क्यों करना चाहते हो?
कुमारिल: (विनम्रता से) मैं सत्य की खोज में हूं। यदि बौद्ध धर्म सत्य है, तो मैं उसे स्वीकार करूंगा।
(मुख्य आचार्य सहमति देते हैं। कुमारिल वहां अध्ययन शुरू करते हैं, लेकिन उनका असली उद्देश्य बौद्ध धर्म की कमियों को समझना और उन्हें खंडित करना है।)
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दृश्य 4: बौद्ध धर्म का खंडन
(स्थान: एक सार्वजनिक सभा। बौद्ध आचार्य और कुमारिल के बीच वाद-विवाद हो रहा है।)
आचार्य: (आत्मविश्वास से) बौद्ध धर्म में आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है। यह केवल एक भ्रम है।
कुमारिल: (जोर देकर) यदि आत्मा नहीं है, तो कौन मोक्ष प्राप्त करेगा? किसे अहिंसा का पालन करना चाहिए?
आचार्य: (असमंजस में) यह... यह बौद्ध धर्म की गूढ़ शिक्षा है।
कुमारिल: (भीड़ की ओर) बौद्ध धर्म केवल भ्रम फैला रहा है। वेदों की शिक्षा ही सत्य है। हमारे ऋषियों ने जो ज्ञान दिया है, वह शाश्वत है।
(भीड़ कुमारिल की बातों से प्रभावित होती है।)
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दृश्य 5: आत्मबलिदान और सत्याग्रह
(स्थान: एक पहाड़ी। कुमारिल अपने शिष्यों से घिरे हैं।)
शिष्य 1: गुरुजी, आप सत्य की रक्षा के लिए इतना कष्ट क्यों सह रहे हैं?
कुमारिल: (गंभीर स्वर में) मैंने बौद्ध धर्म का अध्ययन एक धोखे से किया। यह मेरा कर्तव्य है कि मैं इस पाप का प्रायश्चित करूं।
(कुमारिल अग्नि के पास जाकर आत्मबलिदान का संकल्प लेते हैं।)
कुमारिल: (प्रार्थना करते हुए) हे अग्नि देवता, मेरे इस बलिदान को स्वीकार करें। मैं सनातन धर्म की रक्षा के लिए यह तपस्या कर रहा हूं।
शिष्य 2: (आँसू भरी आँखों से) गुरुजी, हमें मार्गदर्शन देते रहिए। आपकी शिक्षा ही हमारा प्रकाश है।
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दृश्य 6: आदि शंकराचार्य का आगमन
(स्थान: कुमारिल का आश्रम। कुमारिल गंभीर अवस्था में बिस्तर पर हैं।)
आदि शंकराचार्य: (शीघ्रता से आते हुए) आचार्य कुमारिल! मैं आपके दर्शन के लिए आया हूं। आपने जो किया है, वह धर्म के लिए अमूल्य है।
कुमारिल: (मंद मुस्कान के साथ) शंकर, तुमने धर्म की पुनर्स्थापना के लिए जो कार्य किए हैं, वे अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मुझे गर्व है कि तुमने वेदों की मर्यादा को पुनः स्थापित किया है।
आदि शंकराचार्य: लेकिन, आचार्य, आप बौद्ध धर्म के खंडन में कुछ ग्रंथ अधूरे छोड़ गए हैं। मुझे आपकी सलाह चाहिए।
कुमारिल: (कमजोर स्वर में) मेरी अवस्था अब मुझे लिखने की अनुमति नहीं देती। लेकिन मैं तुम्हें एक नाम सुझाऊंगा – मंडन मिश्र। वह वेदों और धर्मशास्त्र का महान विद्वान है। तुम उसके साथ वाद-विवाद करो। यदि वह पराजित हुआ, तो वह तुम्हारे मार्ग पर चलेगा और वेदों की रक्षा करेगा।
आदि शंकराचार्य: (श्रद्धा से) आपकी यह सलाह अमूल्य है। मैं मंडन मिश्र से भेंट करूंगा।
(शंकराचार्य कुमारिल के चरण स्पर्श करते हैं।)
कुमारिल: (आखिरी शब्द) धर्म की रक्षा तुम्हारे हाथों में है, शंकर। इसे कभी मत भूलना।
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दृश्य 7: मंडन मिश्र से वाद-विवाद
(स्थान: मंडन मिश्र का घर। शंकराचार्य और मंडन मिश्र आमने-सामने हैं।)
मंडन मिश्र: (गर्व से) शंकर, तुमने कुमारिल का नाम लिया है। उनकी विद्वत्ता को मैं मानता हूं। लेकिन मुझे यकीन है कि मैं तुम्हें पराजित कर सकता हूं।
आदि शंकराचार्य: (मुस्कुराकर) वाद-विवाद का उद्देश्य पराजय या विजय नहीं, बल्कि सत्य की खोज है। चलो, धर्म और वेदों की महिमा पर चर्चा करें।
(दोनों में तीव्र वाद-विवाद होता है, जिसमें मंडन मिश्र पराजित होते हैं।)
मंडन मिश्र: (शंकराचार्य के चरणों में) आपने मेरी आँखें खोल दीं। अब से, मैं धर्म की सेवा करूंगा।
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दृश्य 8: धर्म की पुनर्स्थापना
(स्थान: वाराणसी का एक मंदिर। शंकराचार्य और उनके शिष्य धर्म प्रचार कर रहे हैं।)
आदि शंकराचार्य: (लोगों से) कुमारिल भट्ट ने अपने जीवन का बलिदान देकर वेदों की रक्षा की। अब हमारा कर्तव्य है कि हम उनके सपने को साकार करें।
(लोग उत्साह से वेदों का पाठ शुरू करते हैं।)
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समाप्ति दृश्य:
(कुमारिल भट्ट और आदि शंकराचार्य की प्रतिमाओं के सामने लोग श्रद्धांजलि दे रहे हैं।)
नाट्य-वाचक: और इस प्रकार कुमारिल भट्ट और आदि शंकराचार्य के प्रयासों से सनातन धर्म पुनः स्थापित हुआ। यह कथा हमें धर्म, सत्य और निष्ठा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
पर्दा गिरता है।
