Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Arunima Thakur

Thriller

4.5  

Arunima Thakur

Thriller

कर्तनिया घाट में एक रात बाघों के साथ

कर्तनिया घाट में एक रात बाघों के साथ

19 mins
820



हम तीनों भाई बहन साल में एक या दो बार अपने परिवार के साथ बाहर घूमने के लिए जाते हैं। दो साल पहले की बात है। हम सब मार्च में परिवार की एक शादी में इकठ्ठे हुए, वहीं से हमारा कतर्नियाघाट घूमने का कार्यक्रम बन गया। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग की वेबसाइट से बुकिंग वगैरह कराई तो वह भी हो गई । हमारे साथ हमारी अम्मी और भाभी के मम्मी पापा भी थे। हम दो कारों से सुबह-सुबह लखनऊ से बहराइच कतर्नियाघाट के लिए भाभी के घर से निकले । रास्ते में पापा के कहने पर कहीं बीच में रुक कर वहाँ की प्रसिद्ध पकौड़ी खाई चाय पी । अब क्योंकि दो कारें थी इसलिए बीच-बीच में हम सब इस कार से उस कार में आ जा रहे थे। रास्ते में मिलने वाले ककड़ी, खीरा, भुट्टा खाते हुए रास्ते का आनंद ले रहे थे । रास्ते के दोनों ओर सरसों और गन्ने के खेत, ताजी हवा आम की बौर से महक रहीं थी । सड़क पर वाहन बहुत कम थे। सड़क के दोनों ओर घने पेड़ मानो गाड़ी किसी हरियाली सुरंग से गुज़र रही हो। नज़ारा बहुत खूबसूरत लग रहा था । हम लगभग पहुंचने वाले थे कि रास्ते में कहीं नानपारा का बोर्ड देखकर अम्मी बताने लग गई कि यहीं कहीं पर उनके मामा रहते हैं। मैं बता दूँ कि मेरी अम्मी का ननिहाल नेपाल का है । तो नेपाल जाने के लिए पहले वो लोग नानपारा में रुकते थे । कार रोक कर दो मिनट में निर्णय लिया गया कि चलो अम्मी का इतना मन है तो उनको उनके मामा से मिलवा देते हैं और गाड़ी नानपारा की तरफ घुमा दी गई । कमाल की बात, बरसो लगभग पचास साल बाद भी अम्मी को सड़कें याद थी। शायद नानपारा में आज भी उतना ज्यादा विकास नहीं हुआ होंगा। क्योंकि सड़क के दोनों तरफ खेत और जंगल थे । अम्मी बोली, "पहले हमें रात को घर से बाहर नहीं निकलने देते थे क्योंकि रात को जानवरों का खतरा रहता था । शायद तब अभ्यारण का विस्तार यहाँ तक रहा होगा या अभ्यारण के जानवर रात को घूमते घूमते यहाँ आ जाते होंगे । खैर अम्मी ने घर भी पहचान लिया । वहाँ अम्मी को उनके छोटे मामा की पत्नी मिली । मामा नेपाल गए हुए थे । मजे की बात मामा की शादी से पहले अम्मी यहाँ आई थी फिर भी छोटे मामा की पत्नी ने अम्मी को दिज्जू कह के पहचान लिया । थोड़ी देर बैठने के बाद और आसपास में दो-तीन अन्य मामा लोगों के घर जाकर मिलने के बाद हम सब वापस कतर्नियाघाट के लिए निकले ।जितना हमने सोचा था उससे थोड़ा ज्यादा समय हमें लग गया था । अब एक बज रहे थे और हम सबको बहुत जोरदार भूख लगी थी। रास्ते में कोई ढंग का होटल भी नहीं दिख रहा था। तो यही तय किया गया कि रिसोर्ट में तो बुकिंग है ही वहीं जाकर खाना खाएंगे । अंदर रिसॉर्ट तक जाने के लिए दो रास्ते हैं एक गाँव से होते हुए कच्चा उबड़खाबड़ दूसरा रास्ता बैरिकेड से बंद था । हमने वहाँ पर अपना बुकिंग दिखाया तो हमें प्रवेश मिला I हम अंदर जंगल में जाकर रहने वाले थे, इस बात से हम सब बहुत ही रोमांचित थे । हम अपने बुक किए हुए रिसोर्ट में पहुँचे I चेक इन करने के साथ ही हमने खाने की माँग की Iपर उन्होंने असमर्थता जताई कि आप लोग समय से चेक इन करते तो हम बनवा देते । अभी हम शाम का खाना बना देंगे । ठीक है तो चाय मैगी जो भी हो दीजिए । वो बोले नहीं साहब कुछ सामान नहीं है आप जो बोलोगे शाम को मिलेगा । बेटू मेरा भाई तो गुस्सा हो गया ऐसा कैसा इंतजाम है आपका I जब बुकिंग कराई थी तो आपको खाना बना कर रखना था । तो उन्होंने विनम्रता से बोला साहब यहाँ आते आते अक्सर लोगों को देरी हो जाती है और वह खाना खाकर आते हैं तो हमारा खाना खराब होता है । इसलिए हम कहने पर ही खाना बनाते हैं । आप एक काम कीजिए जंगल के थोड़ा और अंदर पर्यटन विभाग का एक और रिसॉर्ट और कैंटीन है जो कि शायद अभी खुली होगी आप वहाँ जाकर खाना खा सकते हैं । हमने कहा आप फोन करके बात कर लीजिए | वह बोले साहब यहाँ नेटवर्क नहीं लगता । आपको जाकर ही देखना पड़ेगा। हे भगवान! खैर उनसे रास्ता पूछ कर हम सीधे कैंटीन की ओर निकले । घना जंगल हम तो डर रहे थे कि कहीं कोई तेंदुआ या बाघ ना दिख जाए । हम कैंटीन पहुंचे वहाँ के क्वार्टर ज्यादा खूबसूरत थे । हमने बेटू से पूछा यहाँ की बुकिंग क्यों नहीं ली ? तो उसने बोला यह सब सरकारी ऑफिसर्स के लिए बुक होते हैं। वहाँ पर भी कोई भी पर्यटक नहीं था तो उन्होंने भी खाना नहीं बनाया था और जो बनाया था वह उन्होंने खाकर खत्म कर दिया था । उनके पास कुछ चार पैकेट मैगी थे। हमने उनसे बात की तो उन्होंने फटाफट मैगी बनाकर बच्चों को दी (खाने का मन तो हमारा भी था पर मैगी क्यों को ही कम पड़ रही थी) और बोले बगल में ही घड़ियाल की नर्सरी और बोटिंग (नौका विहार) है आप हमें एक घंटे का समय दो हम खाना तैयार करवाते हैं । तब से आप थोड़ा आजू-बाजू घूम कर, नौका विहार करके आ जाओ । दूसरा कोई विकल्प ना था । बैठकर के इंतजार करने से ज्यादा भूख लगती । अम्मी, मम्मी और पापा के चेहरे देखकर दया आ रही थी । वैसे भूख से हाल तो हमारा भी बेहाल था । हम बच्चों और सबको साथ लेकर थोड़ा आगे घूमने लगे। घड़ियाल की नर्सरी में छोटे-छोटे घड़ियाल बाहर धूप सेंक रहे थे । आलस से एक आँख खोलकर धीरे से हमें देखते और लेट जाते । बच्चे तो नन्हें घड़ियालों देखकर बहुत खुश हो गए । हम आगे बढ़े आगे एक ऊँचा ट्री हाउस था हमने वहां पर खूब सारी फोटो खिंचवाई । आगे बढ़े एक सुंदर सी नदी बह रही थी। हम सोच रहे थे नौका विहार करने में क्या मजा आएगा। पर एक घंटे का समय तो काटना ही था । तो हम सब नाव में सवार हो गए। नाविक बहुत अच्छा था । हमें बहुत सारी बातें बता रहा था। उसने ही बोला यह काली नदी है । इसका पानी थोड़ा सा मटमैला है । हम नदी की खूबसूरती देखकर प्रभावित थे। चौड़े पाट, दोनों किनारों पर जंगल, नदी के किनारों पर लहराती वाटर ग्रास, नदी के बीच में टापू पर घड़ियालों का समूह और एक किनारे पर लेटा हुआ एक बड़ा सा मगरमच्छ । हम डर गए । अगर मगरमच्छ नॉव को टक्कर मार दे तो ? आगे चलने पर नदी के बीचों-बीच एक बड़े से पेड़ जो शायद पानी में बहकर आया होगा की एक सूखी सी डाल पर कछुआ का परिवार बैठा था। नाविक ने ना जाने कितनी दूर से देख कर बता दिया था कि देखो वहाँ कछुआ है, देखो वहाँ फलाँ है, हमें तो पास में जाने पर ही दिख रहा था । हमें शक हुआ कहीं नाविक ने ऐसा तो नहीं खुद ही लाकर वहाँ कछुओं को चिपका दिया हो । पर हमारी दुविधा का समाधान कछुए ने हीं कर दिया। जब हमारी नॉव वहाँ से गुजरी तो वह डुबुक से पानी के अंदर चला गया। एक जगह नाविक ने बोला नदी का यह किनारा नेपाल की सीमा बनाता है। वहाँ तट पर बेंत सेमल और बहुत से खूबसूरत से पेड़ मानो जल में अपनी परछाई देखकर मगन हो रहे थे। इन्हीं घने वनों के बीच से एक वेगवती धारा आकर नदी में मिल रही थी। नाविक ने बताया यह नेपाल की गिरवा (गेरुआ) नदी है । पानी का रंग हल्का सा लाल था । दोनों नदियाँ साथ साथ बहते हुए भी काफी दूर तक अपने अस्तित्व को बचा कर रखी थी। मम्मी तो नेपाल का नाम सुनते ही भावुक हो गई और नदी के पानी को हाथ में लेकर सिर पर लगाया और अपने ननिहाल के स्पर्श को महसूस किया। लोग सच ही बोलते हैं बेटियाँ बूढ़ी होती है पर मायका कभी बूढ़ा नहीं होता। नाविक हमें थोड़ा और आगे लेकर गया । एक जगह दिखा कर बोला शांत रहना यह बाघ, तेदुँआ के पानी पीने की जगह है। नसीब अच्छा होगा तो शायद आपको बाघ दिख जाएगा I पर हमें बाघ तो नहीं पर उसके पैरों के निशान दिखाई दिये। हम बहुत रोमांचित हो गए।अरे वाह ! हमें यहाँ बाघ देखने को मिल जाएगा । इससे पहले हम सरिस्का और जिम कार्बेट से निराश होकर लौट चुके थे । मार्च की शाम की नरम धूप नदी में नौका विहार, बहुत सारे पक्षियों को देखकर हमें बहुत मजा आ रहा था। पर अब नौकाविहार का समय खत्म हो गया था । हम वापस किनारे पर आए और कैंटीन पहुँचे । खाना तैयार ही था, खाना बना भी अच्छा था। खाना क्या एकदम अमृत लग रहा था । खा पीकर हम उससे पूछने लगे कि यहाँ क्या-क्या देखना है ? तो उसने बोला शाम की सफारी ज्यादा अच्छी होती है । जानवर दिखने की संभावना ज्यादा रहती है । पर हमें अब थकान लग रही थी तो उन्होंने हमें सुझाव दिया कि हम भोर में तड़के ही निकल जाए तो ही हमें जानवर दिखेंगे और उन्होंने में हिदायत भी दी कि शाम को सूर्यास्त के बाद सावधान रहें । जानवर घूमते घूमते रिसॉर्ट के अंदर भी आ जाते हैं। हम उनका शुक्रिया अदा कर अपने रिसॉर्ट में आए। हमारे चारों कमरे एक सीध में ही थे। हर कमरे के बाहर बरामदा था घुटने से थोड़ी ज्यादा ऊंचाँई तक छोटी-छोटी दीवारों से घिरा हुआ, वहाँ कुर्सियॉं रखी थी। हमने सामान रखा । अब तक वहाँ की कैंटीन भी शुरू हो गई थी। उन्होंने हमसे रात के खाने का ब्योरा लिया और चाय कॉफी के लिए पूछा । हम सब थक गये थे, थोड़ा आराम करना चाहते थे, इसलिए अपने अपने कमरों में जाकर फैल गए । तब से मेरी बहन आकर बोली मेरे कमरे का एसी काम नहीं कर रहा है। उन्होंने फिर से अपनी असमर्थता जताई कि इस समय कोई भी मैकेनिक उपलब्ध नहीं होगा I इस बार मेरे जीजू नाराज हो गए। ऐसे कैसे ? यह क्या इंतजाम है ? जब बुकिंग थी तो आपको चेक (निरीक्षण) करके रखना चाहिए था ना I बुकिंग होने के बावजूद ना तो आपने खाने का इंतजाम किया ना ही कमरों को चेक किया । ना ही उनकी सफाई करवाई । चद्दर वगैरह भी आपने अभी बदलवाई है । कमरों में कैसे सीलन जैसी बदबू आ रही है। आपको कम से कम कमरे खुलवा तो देने चाहिए थे। खैर कर्मचारी जाकर मैनेजर को बुलाकर लाया । मैनेजर ने क्षमा माँगते हुए हमें थोड़ी दूरी पर बने क्वार्टर में अपग्रेड करने का सुझाव दिया। पर हमें बेकार में ज्यादा पैसे भरने पड़ते इसलिए हमने वहीं रहने का निर्णय लिया और एक कमरा बदलने की माँग की । अब बहन के बच्चे वहाँ जाकर रुकने को तैयार नहीं थे क्योंकि यहाँ पर हम सब साथ थे । तो मम्मी पापा और अम्मी ने कहा वह तीनों जाकर वहाँ रह लेंगे । वहाँ उन्हें एकांत भी मिल जाएगा। यहाँ पर बच्चे जितना चाहे उतना शोर शराबा करके खेल सकते हैं । बेटू जाकर कार से उन तीनों को उनके क्वार्टर में छोड़ कर आया । हम आराम कर रहे थे और बच्चे बाहर खेल रहे थे । थोड़ी देर बाद हम भी बच्चों के साथ खेल में शामिल हो गए । साढ़े पाँच छ्ह: बजे के आसपास उन्होंने (कैंटीन वालों ने) हम सबको चाय और बच्चों को दूध दिया। नाश्ता करने का किसी का भी मन नहीं था पर फिर भी थोड़ा बहुत नमकीन बिस्किट खाया गया । तब से बेटू जाकर कार से उन तीनों लोगों को लिवा लाया I नाश्ता करने के बाद वह तीनों लोग भी हमारे साथ खेलने लगे । हम उड़नतश्तरी के साथ खेल रहे थे। बाद में हम सब "कोड़ा धमाल छू" खेलने लगे।शायद बचपन में आपने भी खेला होगा यह खेल | इसमें सभी एक घेरा बना कर बैठ जाते हैं। एक खिलाड़ी एक रुमाल को किसी एक खिलाड़ी के पीछे रखता है और उस खिलाड़ी को वह रुमाल उठाकर दूसरे खिलाड़ी का पीछा करना होता है । हम सब को बहुत मजा आया। लगा वापस बचपन में पहुँच गए हैं। बस अब्बा की कमी खल रही थी। बच्चे तो बच्चे हम सब बड़े भी बच्चे बन गए थे । सबसे बड़ी बात हम में से किसी के भी हाथ में मोबाइल फोन नहीं थे ।

साढ़े सात बजे के आसपास कैंटीन वाला आकर खाना खाने के लिए बोला। तो बहन बोली, "इतनी जल्दी ! अरे भैया दोपहर का खाना ही शाम को चार बजे खाया था । अभी चाय पी है । इतनी जल्दी खाना" ? वह बोले रात को जानवर आता है। ज्यादा देर तक आप लोग भी बाहर नहीं रह सकते। खाना खाकर आप लोग भी कमरे में जाइए ।आप वन्य जीव अभ्यारण के अंदर हैं । जानवर कभी भी आ सकता है । ना चाहते हुए भी हमने खाना खाया और थोड़ी देर अपने अपने कमरे के बाहर बैठ कर दम सैराट खेलने के बाद उन तीनों लोगों को उनके क्वार्टर पर छोड़कर, सुबह जल्दी उठकर सफारी पर जाना है इसलिए सो गए l सुबह पाँच बजे ही सफारी वाला आ गया था। वैसे तो उसने कहा था कि कोई भी दैनिक कार्यक्रमों के चक्कर में ना पड़े । यह सारे काम वापस आकर किए जा सकते हैं। पर पर हम चौदह लोग निकलते निकलते छहः बजे गए । हम बहुत उत्साहित थे कि अभी तो अंधेरा है बाघ दिख ही जाएगा। सफारी वाला हमें रास्ते में जंगली भैंसा, चीतल, हिरन, तोता, मोर, यह सब दिखा रहा था। वहाँ किस्म किस्म के पक्षी थे। एक अजीब सा उल्लू भी दिखा । ज्यों ज्यो हम अंदर जा रहे थे रोमांच बढ़ता जा रहा था | पतली पतली नदियाँ, झरने, निस्तब्धता, शांति पक्षियों का कलरव, जानवरों की आवाजें एक अलग ही दुनिया । तभी ड्राइवर ने सड़क के किनारे बाघ के पैरों के निशान दिखा कर बोला चुप रहो शायद अभी अभी गया है I शायद थोड़ा आगे जाएंगे तो दिख जाएगा। थोड़ी दूर जाने पर निशान जंगल के अंदर जाकर गुम हो गए थे। हम बहुत निराश हुए । हम यह सोच रहें थे कि इतनी सारी गाड़ियों के आवागमन से बाघ तेंदुआ कैसे दिखेंगे । अलग-अलग रिसोर्ट से बहुत सी गाड़ियों की आवाजाही थी। ड्राइवर आपस में एक दूसरे से पूछ भी रहे थे, दिखा क्या ? तभी अचानक से हाथियों के चिघाड़ने की आवाजें आई। हमारा ड्राइवर रुक गया । हमने पूछा क्या हुआ? वह कुछ बोला नहीं । तभी सामने से कुछ गाड़ियाँ जो हमारे आगे थी, लौटती हुई दिखी। उन्होंने बोला आगे जंगली हाथियों का झुंड है शायद गुस्से में है । तुरंत लौट चलो । हम लौट पड़े । हम सब बहुत निराश थे । हमने सफारी ड्राइवर से पूछा तो वह बोला साहब मैं तो पाँच बजे से ही आ गया था। आप लोगों ने ही देर किया । क्या करें अब ? हमने बोला पर आपने भी तो हमें आधा ही घुमाया । तो वह बोला ठीक है शाम को आधे पैसों पर फिर से घुमा दूंगा। हम सब वापस आकर नहा धो कर चाय नाश्ता किए और तैयार होकर आसपास के दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए निकल पड़े । हम गिरजा बैराज पर पहुंचे दो नदियाँ मिलकर एक विशाल नदी के रूप में बह रही थी। हमने वहाँ फोटो खींची। बच्चें बैराज की बड़ी बड़ी लोहे की साँकले और उनसे निंयत्रित दरवाजे देखकर मंत्रमुग्ध थे। चना की चाट खाई। थोड़ा आगे जाकर पांडव कालीन शिव मंदिर में दर्शन किए । मंदिर जर्जर था पर शांति का एहसास था। वहाँ काफी देर तक बैठे रहे एक दो मंदिर और घूमें फिर लौट कर वापस रिसोर्ट में आए। खाना-वाना खाया। बच्चे खेलने लग गए हम भाई-बहन बैठकर साल भर के अपने सुख-दुख साझा करने लग गए और अम्मी, मम्मी और पापा वह तीनों अपनी पुरानी यादों की बातें कर रहे थे । शाम को सफ़ारी वाला हमें वापस सफारी पर लेकर गया। हमने वापस से चीतल हिरन नाचता हुआ मोर और तरह तरह के पक्षी देखें। जिनके नाम उसने बताएं और हमने फोटो भी खींची। आगे हमें जंगली सूअरों का झुंड भी दिखा । ड्राइवर हमें बोल रहा था कि आप लोग पेड़ों पर भी नजर रखो, तेंदुआ अक्सर पेड़ों पर छुप कर बैठता है। इस बार वह हमें काफी अंदर तक लेकर गया । पर हमें बाघ और तेंदुआ कहीं नहीं दिखा । हम निराश होकर रिसॉर्ट लौट आए । आने के बाद कल की तरह हम सब वापस खेलने लग गए ।ऐसा मौका साल भर में एक या दो बार ही मिलता है । जब हम सब इकट्ठे होते हैं। उन तीनों लोगों ने भी निर्णय लिया कि अब वो लोग सीधा खाना खाने के बाद ही अपने क्वार्टर पर जाएंगे । आज हमने भूला बिसरा खेल "लाल परी नीली परी" खेला I अरे वही जिसमें दो टीम बनाकर अपने साथियों के नाम रखते हैं।. दूसरी टीम के खिलाड़ी एक की आँख बंद करके अपनी टीम के खिलाड़ी को बुलाते हैं, आजा मेरी पीली परी धीरे धीरे आना शोर ना मचाना टीप मार के जाना, पीछे मुड़के ताली बजाना। फिर जिस खिलाड़ी की आँख बंद की जाती हैं उसे पहचानना होता था कि दूसरी टीम के खिलाड़ियों में से किस ने उसे मारा है । हमारे बच्चों को तो यह सब खेल मालूम ही नहीं थे। हम सब के साथ खेल कर उन्हें भी बहुत मजा आया। बिना मोबाइल बिना टीवी के भी समय गुजारा जा सकता है यह हमारे बच्चों ने सीखा। थोड़ी देर बाद थक कर हम सब अंदर बैठकर गप्पे मारने लगे। जैसा कि इंसान का स्वभाव होता है पंचायत करना । शाम को साढ़े सात बजते ही कैंटीन वाला खाने के लिए बुलाने आ गया। मैं बोली इन लोगों को काम समेटना होता है इसके लिए जानवर जानवर बोल करके हम लोगों को जल्दी-जल्दी खाना खिला देते हैं। कोई जानवर यहाँ पर है ही नहीं तो आएगा कहाँ से । तो मेरी बहन की बेटी बोली मॉसी ऐसा मत बोलिए यहाँ के जानवरों को बुरा लग जाता है। हम बोल रहे थे ना कि कछुआ उन्होंने चिपका कर रखा है तो देखा था आपने वह कछुआ पानी में चला गया था। कहीं आप बोल रही हैं कि यहाँ बाघ हैं ही नहीं तो कहीं बाघ भी ना आ जाए । मैं बोली आ जाए तो भला ना, हम तो सेल्फी खींच लेंगे बाघ के संग।

कैंटीन वालों के बहुत जोर देने पर हम सब खाने बैठ गए। खाने के बाद हम सब अपने अपने कमरे के बाहर बने बरामदे जैसी जगह में बैठे हुए थे और दम सैराट खेल रहे थे । नौ बजे तक कैंटीन वाले भी कैंटीन लॉक करके हमें हिदायत देकर कि आप लोग अंदर चले जाएं और वह लोग चले गए I जीजू गाड़ी से उन तीनों लोगों को उनके क्वार्टर में छोड़कर आए । अब हम सब बीच वाले कमरे के सामने वाले बरामदे में एक साथ ही बैठे हुए थे। बच्चे और मेरी बहन अंताक्षरी खेल रहे थे । तभी मैंने देखा मम्मी का दवाई वाला पर्स तो मेरे पर्स के साथ रखा हुआ था । बेटू ने बोला लाओ मैं दे कर आता हूँ। मैंने बोला चलो मैं भी चलती हूँ थोड़ा चलना हो जायेगा । हम दोनों डेढ़ स्याने पैदल चलते ही मम्मी की दवाइयाँ देने उनके क्वार्टर तक गए। क्वार्टर पूरा ऊंची बाउंड्री वॉल ( चहरदिवारी) से घिरा था । मजे की बात हमने उनको इतनी हिदायतें दी थी कि रात में दरवाजा मत खोलना । इसलिए हमारे काफी देर तक खटखटाने के बावजूद भी उन्होंने दरवाजा नहीं खोला । तो बेटू दरवाजे के ऊपर से चढ़कर मुख्य द्वार तक पहुँचा और दरवाजा खटखटाया । तब जाकर पापा ने दरवाजा खोला और हमें देखकर डाँटते हुए बोले कि जब मना किया जा रहा है रात को नहीं निकलना है तो तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो ? हम छुपा गए कि हम पैदल चलते हुए आए हैं । बेटू ने फटाफट मम्मी की दवाई का पर्स उनको देते हुए कहा, इसके लिए आए थे। अब आप दरवाजा बंद कर लीजिए हम आपको वापस परेशान नहीं करेंगे । फिर हम दोनों टहलते हुए वापस अपने रिसोर्ट तक आने के लिए निकले। रास्ते में कर्मचारियों के कमरे थे। उन्होंने हमें देखा तो चिल्लाकर बोलें आप समझ नहीं रहे हो रात को तेंदुए बाघ घूमते हैं। कुछ हो गया तो जिम्मेदार कौन होगा ? हम उनको सॉरी बोल कर आराम से टहलते गप्पे मारते अपने रिसोर्ट में आ गए। वहाँ बैठ कर बातें करने लगे कि यह लोग तो ऐसे डरा रहे हैं जैसे सच में जानवर घूमते रहते हो। दो दिन से यहाँ पर हैं बाघ तो क्या बाघ की पूँछ भी नहीं दिखी। बातें करते करते बेटू ने बहन की बेटी से बोला लाओ बिटिया जरा अंदर से पानी ले आओ। वह अंदर से पानी का जग और गिलास लेकर आई I लाकर मेज पर रखा। मैं जब से गिलास में पानी डाल ही रही थी की बहन चिल्लाई वह क्या चमक रहा है इतने बड़े जुगनू नहीं किसी की आँखें लग रही है। कसम से हम से सिर्फ पन्द्रह फुट की दूरी पर पहले कमरे के बरामदे की दीवार के पास कुछ खड़ा था | कितने दबे पाँव आया था। वह तेंदुआ था या बाघ पता नहीं पर उसको देखकर हमारी तो घिग्घी बंध गई। जैसे गधे के सिर से सींग गायब होती है । उसी मुहावरे की तरह हम सब मात्र कुछ सेकंड में बीच वाले कमरे के अंदर थे I हम ग्यारह लोग एक ही दरवाजे से एक साथ अंदर कैसे घुसे हम ही जानते थे। दरवाजा बंद करने के बाद हमने गिना कि क्या हम सब अंदर थे । बाद में अपने ऊपर हंसी भी आ रही थी और शर्म भी । कि कहीं गलती से भी कोई एक बाहर छूट जाता तो ? तब से बहन बोली पानी तो बाहर ही रह गया । हम सब चिल्लाए तुमको पानी की पड़ी है यहाँ जान के लाले पड़े हुए हैं । हम सब कमरे की बत्ती बुझा कर खिड़की की झिर्री से उसे देखने का प्रयास कर रहे थे। वह बाघ ही था । कसम से इतना बड़ा, उसकी पूछ ही शायद 4 से 5 फुट लंबी होगी । कुछ देखने का लालच, कुछ डर, हमें नींद ही नहीं आ रही थी। वैसे भी अंदर एक पलंग पर हम ग्यारह लोग आते भी तो कैसे ? सोच तो रहे थे कि यह जाए तो हम अपने अपने कमरों में जाए। पर सच बताऊँ, किसी की हिम्मत नहीं थी, दरवाजा खोलने की। नसीब से सारे दरवाजे बंद थे । अगर खुले होते और एक आध बाघ जाकर अंदर बैठ जाता तो? और नसीब से इस कमरे का दरवाजा खुला था । वह भी इसलिए क्योंकि बिटिया पानी लेकर आई थी अगर बन्द होता तो शायद दरवाजा खोलते भर में तो. . . . ।

सारे बच्चों को एक पलंग पर सुलाकर हम सब वहीं कहीं टिक लिए I सुबह निकलना था। इसलिए बेटू और जीजु को गाड़ी ड्राइव करनी थी तो ऐसी बंद करके कंबल जमीन पर बिछा कर उनको सुलाया । प्यास के मारे हाल बेहाल था । पानी बाहर रखा था पर दरवाजा खोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। जिस बाघ को देखने के लिए हम आए थे, उसी को सामने देखकर हमारे होश उड़े हुए थे। हम सोच रहे थे हमारा नसीब बहुत अच्छा था । क्योंकि उस से मुश्किल से दस मिनट पहले ही हम चलते हुए आए थे । अगर बाघ हमें रास्ते में मिल गए होते तो हम क्या करते ? या अगर हम बीच वाले कमरे के सामने बरामदे में बैठने की बजाय पहले कमरे के सामने बरामदे में बैठे होते तो ? हमें शायद अंदर जाने का इतना समय भी नहीं मिल पाता । यही सब सोचते सोचते ना जाने कब हम बैठे बैठे ही सो गए और नींद अम्मी के दरवाजा खटखटाने से खुली I जागो आठ बज रहा है । आज हम लोगों को निकलना नहीं है क्या ? हमारे दिमाग में तो वही था कि बाहर बाघ है । अम्मी की आवाज सुनकर हम डर गए कहीं बाघ अम्मी पर हमला न कर दे । जल्दी से दरवाजा खोलकर अम्मी को अंदर खींच लिया I अम्मी परेशान, यह हो क्या रहा है ? क्या हुआ ?

अम्मी बाहर बाघ है ।

अम्मी बोली पागल हो क्या ? कुछ तो नहीं है । तब हम सब धीरे से बाहर निकले। देखा कैंटीन वाले अपने काम पर थे । मम्मी पापा बाहर बैठकर चाय पी रहे थे । तब हमने अपने साथ घटी रात की घटना उन्हें सुनायीं तो कैंटीन वाला गुस्से में बोला आपको कितनी बार तो समझाएँ पर आप शहरी लोग हमारी बातें सुनते ही कहाँ हो । हमने उससे वादा किया अगली बार हम कभी भी ऐसी जगह जाएंगे तो हम सुरक्षा नियमों का पालन करेंगे। बाद में कैंटीन वालों ने बताया वैसे तो बाघ अकेला घूमता हैं पर उस रात एक नही चार पाँच बाघ घूम रहे थे । हमने उन सब के पैरों के निशान भी देखें I वह निशान देखते वक्त और आज भी यह कहानी लिखते वक्त हाथों के रोंगटे खड़े हो गये । क्योंकि उस दिन हम सब बाल-बाल बचे थे ।



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