कृष्ण रंग
कृष्ण रंग
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"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्व च मयि पश्यति " गीता 6/30 का यह वाक्य जो अक्सर अपने भाषण मे दयाल जी हमारी मित्र सभा में कहा करते, लेकिन हम थे की लाख कोशिश के बाद भी पूरी तरह अनुसरण नहीं कर पाते।
वो मन से करने की कहते और मन का हमे पता न चलता कब कही का कही चला जाता।
ऐसा नहीं था की हम कोशिश नही करते , लेकिन सभा समाप्ति के बाद जाने कब भूल जाते पता ही नही चलता ,उनकी नजर मैं हम चिकने घड़े थे ।
फिर भी
यह क्रम२वर्षों से चल रहा था । सभा के सभी मित्र अपने दैनिक काम के बाद शाम को ४ घंटे दयाल जी के लेक्चर ही सुनते । सुनते_ २ मंत्र मुग्ध हो जाते ।
दयाल जी के सारे बाल पूरी सफेदी ले चुके है आई ब्रो तक , यू तो वो सफेद कुर्ता पायजामा पहनते है ,पर आज नीले रंग के सफारीसूट में अपनी सायकल ले कर आंखो पर मोटा नजर का चश्मा लगाए सड़क पर नजर जमाए, सधे हुए सामने से चले आ रहे है। उनको देखकर सबके चेहरे खिल जाते हैं।
एहतियात से सायकल को स्टैंड पर लगा कर दोनो हाथ जोड़ कर सबसे जय श्री कृष्णा करते है ।
हम सभी भी जय श्री कृष्णा करके हाथ जोड़ कर पास रखी कुर्सी की ओर बैठने का इशारा करते है, जिस पर बैठकर वो अपनी उखड़ी सांस को सामान्य करने की कोशिश मैं दो चार गहरी सांस लेते हैं ।
और सुनाइए, _ शर्मा जी दोनो हाथ मलते हुए कहते है। ,
सब ठीक ठाक है बस आपका ही इंतजार कर रहे है ,_मुकेश ने उत्तर दिया ।
मुकेश, हरीश, विष्णु, गोपाल, और एक हम सबसे नाकारा, हम कक्षा बारह तक पढ़े थे और सब ग्रेजुएट, सब हमे ठेकेदार जी कह कर बुलाते नाम की जरूरत नही थी ।हमारा यही नाम हो गया था ।
हम किसी चेप्टर पर बात करने की सोचते मगर याद आया, उनकी बेटी की शादी आ गई है २०दिन शेष बचे है । सबको खयाल आया की अभी तक कभी भी दयाल जी ने इस बारे मैं कोई चर्चा नहीं की थी।
रोजाना या तो गीता के श्लोकों का वर्णन या और जो भी प्रश्न हमारे पास होते , सब के उत्तर वे गीता के अनुसार ही देते ,बच्चे पालने ,बच्चो की परवरिश केसे हो से लेकर व्यवसाय की हमारी छोटी बड़ी सभी समस्याओं पर उनका उत्तर और मार्गदर्शन अतुलनीय था। दयाल जी के आगे हर समस्या मोम की तरह पिघल जाती थी ।
विष्णु ने तो कई बार उनसे कहा,_"भाई साहब एक पुस्तक आप बच्चो की परवरिश पर भी लिख दीजिए। आपने जैसे अपने बच्चो की परवरिश की है, बिना बोले उनको आपने गहरा ज्ञान दिया है। सही और गलत का बिना धारणाओं के निर्णय करना सिखाया है । आपकी बारीकी और कृष्ण भाव बहुत प्रबल लगता है , हम लाख कोशिश करने से भी मन से वहां पहुंच नही पाते । आपका त्याग भी बहुत है , हर समय मन कृष्ण मैं ही रहता है । हर कर्म को कृष्ण की नजर में होता देखते हो ।
ये हम जैसों के लिए बहुत कठिन था ,ऊपर से यह की वो सब देख रहा है । झूठ बोलकर उसे बेवकूफ नहीं बना सकते जो भी करना वो देख रहे है ,ऐसा मान कर चलना। आपके क्रिया कलापों में हमने देखा है कई बार छोटी मोटी परीक्षा में भी देखा हमेशा एक से रहे निश्चिंत , मस्त,।
आप इतने शांत केसे रह लेते है हम लोगो को दिन भर कितने उतार चढ़ाव से गुजरना पड़ता है शाम तक भारी अशांत हो जाते है ,जबकि हम आपको देखते है हमेशा शांत और हमेशा आनंद में रहते हो ।
आप तो और भी हमसे अधिक काम करते हो,"।
इस पर बस वो यही कहते_"देखो श्री कृष्ण का क्या वचन है भक्त के लिए , श्री कृष्ण कहते हैं " कौन्तेय प्रतिजानिही न में भक्त: प्रणश्यती"है अर्जुन मेरे भक्त का पतन नही हो सकता ,"।
"तो बस समझो नही हो सकता । ये विश्वास करो लेकिन जैसे भक्त के लिए भी उनका इशारा समझिए " यो मां पश्यति सर्वत्र सर्व च मयी पश्यति " उसको सबमें सब जगह देखो । बस ,इतना समझो सरल भाषा मैं ।
"जो अभी तुमको याद है, जो भी तुम सोच रहे हो ,वो उसी क्षण आपके साथ _ साथ जान रहा है ,या और ठीक से समझो ,जो विचार अभी तुम्हे आ रहे है वे उनसे छिपे नही है ।
विचारों की उपस्थिति उसके बिना संभव नहीं है ,तो मतलब उससे अछूता कुछ नही है । कोई स्थान भी रिक्त नही है,जो भी वस्तु तुम्हे दिखाई पड़ती है एक तिनका भी ,वो तभी दिखाई देता है जब उसमे वो हो , अन्यथा नहीं, देखो भाई वो कृष्ण है, हर कारणों का कारण है उसके बाद कोई कारण नहीं बचता, कारण माने उत्पति का बीज तभी गीता में उन्होंने अर्जुन से कहा है ,मैं सभी कारणों का कारण हु।बीज हु ।
"आप उससे चीटिंग नही कर सकते , हमसे तो कर सकते हो" कहते हुए हँस देते है।
ये अपना मामला है, हमको समझना है, वो अपने मामले पर जोर देते है ।
एक बार फिर चाय काऑर्डर दिया और थोड़ी देर सभी मैं चुप्पी छा जाती है। ऐसा लग रहा था ,दयाल जी के सानिध्य मैं हम उस समय के लिए संत हो गए थे ।
"अच्छा भाई साहब,क्या शादी की तैयारियां चल रही, कार्ड बांट दिए या अभी देने है।
हमारी मदद हो तो आप जरूर बताना हम भी सब आपकी हेल्प कर देंगे।जो भी हमारे लायक हो" _हरीश ने कहा ।
हरीश एक किराना व्यापारी है उसकी तो जरूरत थीं ही।सभी दयालजी के शीतल, शुद्ध ,सत्य ,धैर्यवान व्यवहार के कारण तुरंत मदद को तैयार रहते । परिवार उनका बहुत समझदार था , बच्चो को तो कभी बचपन से लेकर अभी तक कभी डाटा तक नही ,ना ही कभी उनके मोबाइल चेक किए न ही कभी वो पूछते किस से बात कर रहे हो ,कोई रोका टोकी नही करते देखा । संपूर्ण भरोसा था ।
हम जब भी उनके घर जाते देखते उनके दोनो लड़के बहुत समझदार है ,जाते ही कितना सुंदर अभिवादन करते दिल से। यू ही सब देख कर आंखो आंखो मैं एक दूसरे से कहते, बच्चे तो ये है, भाई राम लक्ष्मण है ।
और बेटी जिस घर जायेगी लक्ष्मी मिल गई उसको तो, भाग्यवान ही होगा वह परिवार जिसमे बेटी का रिश्ता हुआ होगा।
लड़का चाय हमारे बीच मैं टेबल पर रख जाता है ,सभी चाय पीना शुरू करते है।
चाय खत्म होने तक बस यही बात होती है ,की पहली पत्रिका गणेश जी के यहां भेज दी है। और अगले दो चार दिनों मैं मुझे भाई साहब के साथ कुछ जगह पर पत्रिका देने साथ जाना है ।,
मेरा यही फायदा हो सकता था, की मुझे मोटर साइकिल चलाना आता था ,और दयाल जी को नही। इसी बहाने मुझे कई जगह उनके साथ जाने का मौका मिला था ।
उनसे मैने बहुत सीखा था ,जिसमे भगवद गीता का उनके अनुसार वर्णन बहुत अच्छा लगता था । हमारी हर समस्या का समाधान था, गीता स्वाध्याय और दयाल जी का मार्गदर्शन ।
सबके घर चलने का समय हो गया था ,और हम आज की चर्चा का समापन कर सभी अपने अपने घर आ गए।
सुबह की सैर से आ कर मैं अपने घर के पीछे बने छोटे से गार्डन मैं कॉफी पी रहा था। तभी फोन की घंटी बजी, देखा तो भाई साहब का फोन था । दयाल जी को मैं भाई साहब ही कहता था।
सुबह के समय फोन बहुत कम आता था। हल्का प्रश्न मन मैं उठते उठते फोन भी उठा लिया ।उधर से वही शांत और संयम स्वर सुनाई दिया ",क्या कर रहे हो सैर से आ गए हो "?
" जी भाई साहब अभी आ कर कॉफी पी रहा हु,बताइए आज कही चलने का प्रोग्राम है?" मैने पूछा ।
"हां,,,,वो... ,,कुछ थोड़ा काम है। मिलना चाहता था "। उधर से जवाब आया ।
"तो आप घर आ रहें हो"? मैने पूछा ।
"हां,, आ रहा हु, हमे कही चलना है "।,भाई साहब ने कहा ।
ऐसे अर्जेंट प्लान तो कभी हमारे बने नही थे, दयाल जी अपना जीवन सिस्टम से जीते थे। लेकिन खेर मैने उनके आने से पहले चलने की तयारी कर ली मतलब थोड़ा नाश्ता ,।तब तक दयाल जी भी आ गए ।
"कहां का प्लान है "?मैने पूछा ।
"कल शाम को तय हुआ होता तो मैं ही आ जाता," मैने कहा।
"कोई बात नही , चलो चलते है "।भाई साहब ने कहा, तो हम दोनो गाड़ी लेकर घर से बाहर आ गए,।
"अब बताओ कहां चलना है"? मैने पूछा ।
अभी पहले चाय पी लो कही फिर वही बताता हु।
शहर की बाहरी सड़क पर हम, एक ठेले वाले के पास रखे मोढ़े पर हम दोनो बैठे थे। ,मैं जानना चाह रहा था ।आगे की प्लानिंग ताकि मैं पूरी दिनचर्या समझ सकूं ,पर भाई साहब को शांत देखकर पहले चाय पीना ठीक समझ कर चुप ही रहा। थोड़ी देर मैं चाय आ गई और चाय पी भी चुके ।
भाई साहब कोई बात है कही चलना है, या हम आज चाय पीने ही आए है ?मैने पूछा
यही सोच रहा हु ,
मतलब कोई फिक्स नही है
जाने की कोई जगह तो होनी चाहिए गोविंद की इच्छा क्या है अभी कुछ पता नहींचल रहा
क्या मतलब,क्या कुछ हुआ है जो मुझे पता नही है ?, क्या आप मुझे बता सकते है
हां इसी लिए हम यहां एकांत मैं आए है बात भी कर लेंगे और चाय भी पी लेंगे ।
तो बताइए
बात यह है की सुनीता घर पर नहीं है वो सुबह पांच बजे से बिना बोले कही चली गई है ।,जीवन मै पहली बार एक ऐसी घटना हुई जिसकी कल्पना करना नामुमकिन था ,,
सुनकर मेरा सिर चक्कर खा गया मैं उनके मुंह की ओर देखता रह गया ,एक मिनट के लिए दिमाग सुन्न होगया ।
मैं जानता था ये क्या हो रहा था
कुछ ही क्षण मैं बोध आया, तो ध्यान दयाल जी पर गया, वो अभी भी शांति से मेरी ओर देख रहे थे,। कभी थोड़ी दूर बैठी बुलबुल को।
जिसकी आंख से कभी आंसू नहीं गिरने दिया, जिस पर भाई साहब इतना भरोसा कर उसकी मिसाल दिया करते।एकाएक कहां चली गई ,उसे तो पता है शादी के कार्ड बंटने शुरू हो गए है, वह बहुत समझदार है,ऐसा निर्णय केसे कर सकतीं है ।यहां तो उसकी हर बात मानने वाले भाई साहब थे।
कई भयभीत करने वाले विचार मस्तिष्क मैं तेजी से घूम रहे थे,और भाई साहब चुप चाप कहीं शून्य मैं थे। मैं जानता था उनके सामने गंभीर स्थिति खड़ी हो गई थी । लड़का डॉक्टर था कोई कमी नहीं थी रिश्ता भी पसंद का किया था, दोनो का ऐसी स्थिति मे कुछ समझ नहीं आ रहा था ।
आपने कहा कहा ढूंढा,
सभी जगह, गांव है भी कितना बड़ा, एक घंटा बहुत था सभी जगह खोजने मैं । किसी से एकाएक पूछ भी नही सकते थे बात करामात बनने का भी डर था, कही लड़के को पता चल गया तो क्या होगा शादी के कार्ड तो वहां भी बंट चुके है ।वह भी यही सरकारी हॉस्पिटल मैं है। घोर असमंजस की स्थिति सामने खड़ी थी ।मैं उनकी स्थिति को देखकर सहम सा गया था , गहरी सांस ले कर हिम्मत जुटा कर भाई साहब से पूछा , क्या रिपोर्ट दर्ज करवाएं ,,?
दयाल जी ने कहा_
नहीं , मैं घर पर बोल कर आया हु तुम कोई चिंता न करना ,में उसे अभी ले कर आ रहा हु वो कहीं नहीं जाएगी आ जायेगी।
लेकिन मेरे बेटे का अभी फोन आया था रास्ते मै, कह रहा था ,पापाजी _एक लड़के का फोन आया है कह रहा है , सुनीता मेरे साथ है आप चिंता न करना हम मंदिर मैं शादी कर के आ जायेंगे ।
क्या ,,,आपकी बात हुई उस लड़के से ? मैने पूछा।
नहीं अभी नही हुई ,।दयाल जी ने कहा
क्या करे ?मैने पूछा ।
पास ही एक पेड़ के सहारे बनी पत्थर की बैठक पर हम दो चाय का ऑर्डर देकर पेड़ के नीचे बैठ गए।
मैं कही जा कर ढूंढ नही सकता ,मैं अपनी बेटी को जानता हुं वो जरूर आएगी ।
उस लड़के के नंबर पर फोन लगाया ,उधर से आवाज आई , हां अंकल । बेटा सुनो एक बार मेरी सुनीता से बात करवा दो बस मैं किसी को कुछ नही कहूंगा । बस,,एक बार । और दयाल जी ने उन्हें हम जहा बैठे थे वहा का पता बताया , फिर फोन कट गया । फिर दस मिनट बाद फोन लगाया इस बार फोन बंद था ।
ऐसे काम नही चलेगा चलो हम शिकायत लिखवाते है, मैने कहा ।
।इस पर दयाल जी चुपचाप मेरी ओर देख कर बोले _ठेकेदार जी ,हमारा एक कदम स्थिति को कहीं से कही ले जा सकता है घटना कुछ भी गुजर सकती है।
क्या कृष्ण को नही मालूम की क्या हो रहा है ?क्या उसे नही मालूम ,,कहते उनकी आंखों मैं धारा बहने लगी ।फिर संयम से सांस ली, भीगी आंखे साफ की ओर मुस्कुरा कर बोले_मैने कभी गलत नही किया कृष्ण ,।है कृष्ण। और कोई शब्द निकल न सका।
मैं हतप्रभ हो रहा था ,मस्तिष्क आकाश गंगा में प्रवेश कर रहा था । घूम रहे थे कई विचार और कभी शून्य । इतना भरोसा, मैं सोच रहा था ,ये स्थिति क्या पेड़ के नीचे बैठ कर उस अनजान लड़के को इतने प्यार से बुलाने की थी ।
गुस्से मै चार छः धमकी देते, कुछ नही तो पुलिस कंप्लेन की कहते ऐसे सीधे तरीके का कोई जमाना नही था ।
पर भाई साहब शांत थे वे देख रहे थे शायद भीतर कहीं गहरे से वे मुझसे अधिक समझदार है ।,उनकी लाडली बेटी है वे अच्छे से जानते है । उनके संस्कार थे ,मैं क्या कर सकता था ।
फिर उस लड़के को फोन लगाया फोन चालू हो गयाथा , उधर से फिर बताया कि आप कहां बैठे है? अंकल आप बताइए हम वहीं आ रहे है। सुनीता और हम साथ ही है।
फिर २घंटे बीत गए,हम वही बैठे इंतजार करते रहे । ऐसे में हर मिनट बहुत लंबा लग रहा था। साथ ही ये संभावना भी की क्या जरूरी है ,की लड़का सत्य बोल रहा था। उसने एक भी बार सुनीता से बात नही करवाई थी, और दोपहर के ढाई बज गए थे।सोचकर मैं बैचेन हो गया ,
"ये क्या हो रहा है भाई साहब आप उस पर इतना भरोसा केसे कर रहे है ?"मैने पूछा।
जब मैने उस लड़के से बात की तो मेरा मन कह रहा, वो आता ही होगा उसने दस मिनट ही अभी बताए है ।
क्या दस मिनट ,दिन बीत रहा है। घर वाले दस फोन लगा कर हमसे पूछ चुके है, हम इस पेड़ के नीचे उस लड़के के भरोसे बैठे है,जिसने इतना बड़ा काम किया ,इतना ही समझदार था तो उसे पता तो था ,की सुनीता की शादी है ।
"वो भरोसे जैसा नहीं ,मेरा मन कहता है,।"मैने अंत मैं कहा।
तभी एक मोटरसाइकिल दूर से आती दिखी ,और जल्दी ही पास आ कर खड़ी हो गई । एक लड़का गाड़ी चला रहा था ,एक पीछे था, और आखरी मैं सुनीता थी मुंह चुन्नी से ढक रखा था । उतर कर पास खड़े हो गए तब तक दयाल जी का कोई एक्सप्रेशन नही आया ,वो उसी तरह बैठे उनको देखते रहे ।
उन दोनो लडको ने यह उम्मीद नही की थी कोई पिता इस तरह पेड़ के नीचे बैठा मिलेगा, पर उन लडको के हृदय तेजी से धड़क रहे थे ।
"आप लोगों को भूख लगी होगी" ये कहकर मेरी ओर देखा और कहा,। " ठेकेदार जी, पांच समोसे ले आओ ।" में हतप्रभ सा यंत्रवत खड़ा हो गया।
",अभी लाता हु" ,और चला गया।
कोई बात किसी ने शायद नही की थी मेरे आने तक ।मैने तीनों को समोसे दिए, लेकिन उन्होंने खाने से मना कर दिया ।
अंकल मुझसे गलती हो गई, हम केवल सुबह से घूमते ही रहे ।आप मेरे मित्र से पूछ लीजिए।वह लड़का जो उसके साथ था ,सिर झुकाए खड़ा था सिर झुकाए ही बोला _अंकल हम ने ऐसा नहीं सोचा था ,हम सोच रहे थे वहा चलेंगे तो अवश्य हमे पीटेंगे और वो अकेले नहीं बैठे होंगे।कुछ भी हो सकता है हम बहुत डर गए थे पर रानू कह रही थी मेरे पापा बहुत अच्छे है, आप चलो वहा।, तभी हमारे मन में उठा की हमे आपके पास ही चलना चाहिए ,।और इसीलिए हम यहां आ गए आप चाहे जेसी सजा दे मुझसे बहुत गलती हो गई है।
"मैं किसी को इस बारे मैं नही कहूंगा ।मैं कभी बीच मैं नही आऊंगा ,हम केवल फेस बुक दोस्त थे । मैं कोरियर का काम करता हुं अंकल ,मुझे माफ कर दीजिए।"
रानू को वहीं पूछा," बेटा ऐसा था तो पहले कहा होता आज मैं अधर मैं हु , तुम क्या चाहती हो ?"
"मैं घर जाना चाहती हूं मम्मी के पास"।, किसी ने कोई विरोध नहीं किया । न किसी ने समोसे खाए।
ठेकेदार जी _आप रानू को घर ले चलो वो सब चिंता मैं होंगे।
मैं कुछ देर इन दोनो के साथ चाय तो पीकर आऊंगा ,आप भी यहीं आ जाना छोड़ कर। उन्होंने कहा।
वापस आ कर देखा अकेले दयाल जी वैसे ही पलथी मार कर बैठे थे जैसे उस समय बैठे थे । मैं पास जा कर बैठ गया उनकी ओर देखा वो अभी भी शांत बैठे थे ।मैं सोच रहा था यदि मेरे साथ ऐसा होता, तो क्या मैं, इन सबको यू ही चला जाने देता, क्या अपनी बेटी को कुछ न कहता ।
"चलो कार्ड बाटने चलना है।"दयाल जी की आवाज से मैं चौंका ।
सच मै कृष्ण को सब पता है , बात इतनी आसानी से खतम हो गई ,आगे पीछे कुछ न बचा।
दयाल जी सही कहते है ,
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्व च मयि पश्यति,। आज समझ गया था दयाल जी क्यों निश्चिंत रहा करते थे ,ये कृष्ण बल था ।
मैं सब जगह कृष्ण को महसूस कर रहा था, मन से । क्यूं की "मेरे भक्त का पतन नही हो सकता " उनका चेलेंज है, वो हमारे साथ है।
अब मन वहीं है, आज चिकने घड़े पर भी कृष्ण रंग चढ़ गया है ।
अब हर जगह कृष्ण दिखाई दे रहे है मन से ।गाड़ी धूल उड़ाती दयाल जी को लेकर घर की ओर दौड़ रही है।
