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hariom sharma ,"avi"

Others

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hariom sharma ,"avi"

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जीवन डायरी

जीवन डायरी

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कई दिनों बाद अपनी पढ़ने की टेबल पर पहुंचा तो पाया मेरी डायरी बिखरी पड़ी है यकायक नजर पड़ी कुछ पन्ने अपनी जगह से खसक गए है उनको ठीक करते सरसरी नजर से पढ़ भी लिया वही है ,आनंद लीजिएगा

  

    मेरी डायरी का बिखरा पन्ना               

           


           चेप्टर ३

         आत्म विकास


आत्म विकास मेरा निज धरातल,,,          


मुझे लगता है आत्मविकास हमारे जीवन का अहम विषय है ,आत्म विकास हमारा अपना विकास है । यह वो प्रक्रिया है जिसे पूरी करने पर व्यक्ति को किसी भी मोटिवेशन की आवश्यकता नहीं रहती ।

वह स्वयं स्थिति और ज्ञान की गहराई को भाव सहित समझने मैं समर्थ हो जाता है ,और उसके भीतर की स्व प्रेरणा प्रकट हो उसके समक्ष उपस्थित हो जाती है ।

फिर वह कई निरर्थक अपने मन की धारणाओं को उनकी गहराई तक समझने में एक क्षण भी नहीं लगाता।


किंतु बोध के बिना जागृति संभव नहीं होती इसके अभाव मैं मनुष्य भटक कर अपने जीवन की दिशा को देखने मै अक्षम हो जाता है ।फिर जो जैसा कहता है व्यक्ति उसी अनुरूप अपनी धारणा बना, चलता रहता है और तब तक अंत मैं ,अमूल्य जीवन का समय शेष नहीं रहता।

और अपने जीवन के अंत तक वह दुख के पार जाने मै असमर्थ रहता है। तब भौतिक लक्ष्य की सफलता और आध्यात्मिक सफलता (मोक्ष के लिए )मैं वह कुछ नहीं कर सकता ।

आत्म विकास की श्रंखला मैं कई आयाम है जो बड़े आसान है ।

यह मेरी सरलता पर निर्भर करता है ।

पहले सरल होंना था ।

खुद को बाहर और भीतर से जाने 

मैं एक इकाई हूं ,केवल मैं हूं ,

अकेले ।

तब खुद का एकल अनुभव कर देखा ।

ब्लैंक पेपर ,या खाली पॉट,एक शरीर की इकाई ,इस विशाल ब्रम्हांड मैं ।

अभी मैं सारी धारणा के विचारो को अपने पास रखी टेबल पर रख दूंगा और मैं अब केवल एक इकाई से अधिक नही हूं, ब्रम्हांड मैं सबसे छोटा अस्तित्व है मेरा ।

यह मैं वापस टेबल से उठा सकता हूं ,पर अभी नहीं ।

अब देखने पर पूरा ब्रम्हांड हमारे चारो ओर है । यह बहुत ही विशाल है ,ठीक 

है । हम अनुभव करेंगे वह भी ।

यह संपूर्ण ब्रह्मांड हमारे भीतर है सुक्ष्म रूप मै ,यह कार्य कर रहा है और प्रभावित भी ।

यहां सब के लिए सब पर्याप्त है,और वह पा नही रहा है भटक रहा है ,हताश हो रहा है । 

क्या वह इकाई शक्तिहीन है ?

नही ,बिल्कुल भी नही ।

वह पूर्ण समर्थ है ।मैं

पूर्ण समर्थ हूं ।फिर भी दुःख।

यही तो अज्ञानता है ।

नही हम पड़े लिखे है ।

पर अभी नहीं ,अभी हम इकाई है । कोरा कागज 

पहले आत्मविकास । 

इस कड़ी मैं

पहला प्रयास      

  


सत्य बोलना ,देखना  जो चीजे जैसी है

वैसी ही देखना ,जो परिस्थिति जैसी है वैसी ही समझना ।

जैसे घर 

घर मैं सभी के साथ रहने का मोका मिला । हम उनके साथ रह रहे है ।

उनको हमसे कोई परेशानी न हो ये हमारी जिम्मेदारी ।

हमारा टाईम अपना टाइम है अलग ,

इस लोक मैं आने जाने का ।

यहां प्रकृति और पुरुष को नुकसान न करना ,और अधिकार जमाने से परे रहना ।

मैं गृहस्थ आश्रम मैं रहता हूं ,घर मैं नहीं,घर और आश्रम मैं अंतर होता है , ।

आश्रम मैं तप होता है ,यहां सहन किया जाता है ।यहां नियम जरूरी है तभी संयमी होते है । नियम , संयम से ही निभते है ।

आदि ।

असल मैं 

जीवन जटिल नही है ,यह सुखमय है और आनंद इसका स्वभाव ।

आनंद मेरे भीतर है ।


यह तीन मुख्य है ।

पैसा,समय ,और आनंद ।

पैसा जितनी आवश्यकता हो उतना ,अधिक का कोई अंत नही,पैसाआनंद और स्वास्थ्य सुरक्षा की गारंटी नहीं देता, ।

समय और आनंद साथ मैं ।

समय पैसा आनंद के बाद आगे सेवा कर्म से अच्छा कोई कर्म नहीं ।

उससे भीतर आत्मा मैं सुख की ज्योति जलती रहेगी ,वही से आनंद आता है ।

ऐसे में जहां मैं रहूंगा ,आनंद उपस्थित होगा ।

प्रतिस्पर्धा मैं जीवन गंवाना मैं कुछ ठीक नही समझता हूं। सड़क के आखरी छोर पर भी पहले से एक खड़ा है ,वहां जा कर पाना क्या ?किसी को दिखाना क्या ?

और अगर मैं दौड़ता भी तो इस दौड़ का अंत कहां ?

देखने वाले का भी भरोसा नहीं !

भगवान ही मालिक है । सीमित जीवन है जीना जरूरी है ।

मेरे पास समय भी कितना है ?

बहुत कम ,,,,,बहुत ही ,,,,, पलक झपकते जीवन की शाम हो रही है !

अभी तो हवा चल रही है ,भीतर ,बंद मैं देर कितनी ?

मैं सत्य देखना चाहता हूं ,और बोलना भी , अपने आप से।


अगले चेप्टर मैं °°°°°°°°°°°|

जीवन की गहरी समस्याओं को सुलझाना ।

शरीर में ब्रम्हांड ।

नजरिया 

शक्ति 

सपना

यूनिवर्स

ध्यान

पृथ्वी के पार

प्रकृति की भाषा

और भी कई चेप्टर है ।


डायरी के और भी बिखरे पन्ने पढ़ना चाहते है तो कमेंट मैं बताइएगा ।

आपके इच्छित प्रश्न के पन्ने मिल जायेंगे तो वह भी आपके पढ़ने को हाजिर करेंगे । डायरी मैं होंगे तो ,लिखेंगे ।



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