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Mital Gojiya

Classics

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Mital Gojiya

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कृष्ण के बाद गोकुल

कृष्ण के बाद गोकुल

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सूर्यदेव वन की घटाओ के पीछे जाके छुप गए l पर जैसे फुल के जाने के बाद उसकी सुगंध रह जाती है वैसे ही किरणे अपना तेज समेट चुकी थी पर थोड़ा उजाला अभी शेष था l हर घर में से संध्या आरती की धुन सुनाई दे रही थी l कोई रसोई की सामग्री इकट्ठी कर रहा था तो कोई गैयो को दोहने के पात्र हाथ में लिए अटारी के खम्भे पर माथा टेकाए गहन विचारों में खोया था l दो जीव समुदाई अपना अपना स्थान परिवर्तित कर रहे थे l बछडो और गायों के साथ ग्वाले गाऊ की और आ रहे थे और पंछी गांव छोड़ वन की और जा रहे थे l जैसे इंसान का चेहरा कितना भी सुन्दर क्यों न हो अगर मुस्कुराहट नही होगी तो जचेगा नही उसी भांति कितना ही मनोहर वातावरण क्यों न हो पर लोगो की चहल पहल के बिना सुना ही लगेगा l भूतल का इतना सुन्दर गाऊ जहा पैर धरने को गन्धर्व,देवता, हजारों सालो तक समाधी मे लीन रेहने वाले महान ऋषिवर तथा स्वयं महादेव जैसे महायोगी भी तत्पर रेहते वहां के लोग आज विरह की आग मे जल जल के अपना जीवन व्यतीत कर रहे है l


बछडे और गैया गौशाला मे अपनी अपनी जगह पर जा पहुंचे l हाथ मुँह धो के मधु घर के अंदर चारपाई ढाल के बैठता है l

" कैसा रहा दिन मधुभाई? क्या गैया पेट भर चर आई? " रमिला ने पूछा l

" कहाँ भाभी, गैया रोज की तरह आज भी उसे इधर उधर ढूंढती रही और बछडे तिनके तिनके मे उसकी सुगंध लेते सारा वन घूम कर लौट आते है l"

" मधुकाका! तुम वन से आ गए l चलो अब कहे अनुसार मुझे कान्हा के बारे मे बताना होगा l आज कोई बहाना........ "छोटा विट्ठल बोल ही रहा था की मा ने टोक दिया l

 " क्यू रे छोरे, बात समझ मे नहीं आती l काका थक के आये हैं तो उनकी सेवा करनी चाहिए l जा जाके पैर दबा, बिना किसी हठ या मुँह फुलाए l"


टेढ़ा मुंह करके विट्ठल धीरे से बबड़ाने लगा l " हमेंशा मुझे टाल देते हैं , कोई इतनी भी बड़ी ज़िद नहीं करता मेl"पगड़ी को उतार के चारपाई के एक खम्भे पर रख मधु बोला " विट्ठल, वर्षो पेहले जो बीत गया उसको सुनके तु क्या करेगा बेटा l "


" कैसी बाते करते हो काका, लोग तो बचपन याद करके खुश होया करते हैं और एक आप हो जो हर बार फिर कभी केहके टाल देते हो, और फिर कान्हा तो आपके सखा थे, मुझे बताइए न कान्हा के बारे में की ऐसा क्या करते थे वो जो आज भी सब उन्ही को याद करते फिरते हैं l"

" कान्हा बड़ा चपल था, उसकी चालाकी और ज़िद के आगे किसीकी ना चलती थी l" आंसू भरी आँखों को बंध कर मधु बचपन के दिनों मे जैसे वापिस चला गया हो, वो एक के बाद एक भावना विट्ठल के सामने रखने लगा l

हमारी टोली हर रोज सबेरे गैयो के साथ गोवर्धन पर पहुंच जाती l तरह तरह के खेल होते l इस बिच हमारा प्रिय कार्य होता था वहां से पानी भरने जाती गोपीओ का पीछा करना और उनकी परेशानीया बढ़ाना l खेलते खेलते भूख लगती तो कोई न कोई उपाय हो ही जाता l एक दिन दोपहर से पेहले ही हम सब को भूख लगी l अब दोपहर का भोजन जो घर से साथ लाए थे वो तो बाद केलिए बचा के रखना था l इतने में चन्दन बोला, " कान्हा आज सवेरे मेने गौरीकाकी को कहते सुना था की आज वो हाट जाएंगी और लौटते शाम हो जाएगी l इसका मतलब घर पर कोई नहीं होगाl "

"नहीं चन्दन, घर पे माखन तो अवश्य ही होगा जो कबसे हमारी प्रतीक्षा में होगा " कान्हा बोला l और मानो हमें इशारा मिल चूका था आगे बढ़ने का l

छुपते छुपाते हम गौरी काकी के मकान की खिड़की पर पहुचे l खिड़की से अंदर घुसके एक के ऊपर एक सभी चढ़ने लगे l आहा! वो मटकी, वो माखन, मजा आ गया l पर हमारा भाग्य थोड़ा रूठा जो गौरी काकी आ पहुंची l फिर तो बस अपने को बचाने केलिए हम सब की इधर उधर दौड़भाग चालू l जैसे तैसे वन पहुचे l पर सभी को डर लग रहा था और कान्हा जोर जोर से हसे जा रहा था l "कान्हा अगर काकी उल्हाना लेके घर गई तो? श्रीधामा ने पूछा l"

"जाती है तो जाए, वैसे भी मैया मानेंगी नहीं, और हम माखन ही तो खा रहे थे l ये तो हम बालको का अधिकार है l गैयो को चराने वाले ही माखन न खाएंगे तो कौन खाएगा?"

कान्हा की बाते हमेशा ही टेढ़ी होती थी l कुछ समझमें ना आता था पर यह तो निश्चित था की उसके होते हुए हम सुरक्षित हैं l और फिर कान्हा तो था ही.....

     

"तो क्या आप लोगो को शरारत की डांट पड़ी काका?" विट्ठल से पूछे बगैर रहा न गया l


जैसे मधु कोई स्वप्न में से जगा हो, " हा विट्ठल, तुमने कुछ कहा? " केहके मधु की आँख में से आंसू बेह कर फिर से उन आँखों को सूखा बंजर बना गए l विट्ठल को जैसे वो बता नहीं रहा था, खुद फिर से उन पलो मे चला ही गया था l भूतकाल की मीठी यादो मे से निकल कर वो फिर से वास्तविकता मे आ गया l


" काका मैंने पूछा क्या आप लोगो को डांट पड़ी थी? "

" हा विट्ठल, कान्हा को यशोदा मैया ने छड़ी से मारना चाहा l वो नटखट उसमे से भी अपनी भोली सकल दिखा के बच निकला l पर दो दिन तक उसे हमारे साथ गैया चराने नहीं आने दिया गया l हम मैया को मानते की यशोदा काकी कान्हा को आने दो l तब लगता था की कान्हा के बगैर एक दिन कैसे जायेगा? और आज देखो, सालो निकल गए उसे यहाँ से जाए हुए l केहके मधुमंगल अपने आप को रोक ना सका l विट्ठल के सामने वो बच्चों की भांति रो पड़ा l विट्ठल को मानो ग्लानि हो रही थी की उसकी ज़िद ने काका को रुलाया l माँ से डरा और सहमा विट्ठल कुछ बोल नहीं सका l



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