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राकेश सिंह सोनू

Inspirational

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राकेश सिंह सोनू

Inspirational

कोरोना V/S हेटिंग वायर

कोरोना V/S हेटिंग वायर

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पड़ोस वाले फ्लैट में किरायेदार के रूप में जो नया मुस्लिम परिवार आया था उससे रामबाबू बहुत खफ़ा थें। कितनी दफा सोसायटी वालों और फ्लैट के मालिक को भी गाली दे चुके थे।

अगले दिन सुबह उसी पड़ोस वाले फ्लैट से निकल जब सलमा बुरका पहने जॉब पर जा रही थी तो रामबाबू से आमना सामना हो गया। रामबाबू सलमा की ओर टेढ़ी नज़रों से देखते हुए फिर शुरू हो गए "फ्लैट मालिक को ज़रा भी सेंस नहीं है, आखिर उसकी हिम्मत कैसे हुई एक हिन्दू के पड़ोस में मुसलमान को घर देने की...." रामबाबू इसी तरह बड़बड़ाते रहे और सलमा चुपचाप उनकी बातों को अनसुना कर लिफ़्ट में चली गयी।

इधर बाहरी दुनिया में कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा था, इंडिया में भी यह प्रवेश कर चुका था। सभी डर-डरकर कामकाज कर रहे थे और बराबर देश के अन्य हिस्सों में कोरोना के साइड इफेक्ट की खबरों पर नज़र जमाये हुए थे।

अगले दिन सलमा को यह न्यूज मिली कि अब कोरोना ने उसके शहर में भी दस्तक दे दिया है और शाम को सरकार कोई कड़ा फैसला करनेवाली है। देर शाम यह खबर जंगल की आग की तरह वायरल हो गयी कि अगले दो हफ्ते के लिए पूरा देश लॉक डाउन कर दिया गया है, मतलब जो जहाँ है अब वहीं रहेगा, दो हफ्ते के लिए कहीं आ जा नहीं सकेगा। सलमा भी टेंशन में थी कि अब क्या होगा...? उसके शहर में भी एक तरह से कर्फ्यू लग चुका था, उसके ऑफ़िस बन्द होने का मैसेज भी आ चुका था।

रामबाबू भी परेशान थे क्योंकि उनकी पत्नी बच्चों के संग मायके से आनेवाली थी लेकिन यातयात सुविधा बन्द हो जाने की वजह से अब दो हफ्ते तक उसका यहाँ आना सम्भव नहीं था।

शाम में जब सलमा अपनी बालकनी में खड़ी बाहर का नज़ारा ले रही थी तो देखा पड़ोस के रामबाबू अपनी खिड़की के पास बैठकर अपनी पत्नी से फोन पर बात कर रहे थें। रामबाबू की आवाज़ स्पष्ट सुनाई दे रही थी "अरे भाग्यवान, कितनी बार कहा कि मुझसे नहीं होगा, मुझे खाना बनाना नहीं आता। खैर तुम फ़िक्र ना करो, मैं देख लूँगा। अगर रेस्टुरेंट, होटल भी बंद हुआ तो मैं दूध-ब्रेड से कुछ दिनों काम चला लूंगा...मैं कुछ दिन ठीक से खाना नहीं खाया तो मर नहीं जाऊँगा, लेकिन हाँ अपने पड़ोस के इस मुस्लिम परिवार को देखता रहा तो यूँ ही चल बसूँगा। मुझे चिढ़ आती है इन लोगों से। ये लोग हिंदुस्तानी कहलाने के लायक नहीं हैं, देश का खाते हैं और देश विरोधी कार्य को अंजाम देते हैं...." इतना सुनकर सलमा का मन और भी उदास हो उठा, वह चुपचाप बालकनी से अपने कमरे में वापस लौट आयी।

अब दो दिन बीत चुके थे, बाहर लोग इमरजेंसी में ही कहीं निकल पा रहे थे, हालात अभी भी नहीं सुधरे थे। इधर सलमा को कुछ आशंका हो रही थी, वजह थी कि दो दिनों से उसे रामबाबू दिखाई नहीं दिए थे।उनकी खिड़की भी लगातार बन्द पड़ी थी। सलमा ने देर ना करते हुए डरते-डरते रामबाबू का दरवाज़ा नॉक किया, कई बार कॉलबेल बजाई तब जाकर दरवाज़ा तो खुला लेकिन रामबाबू कुछ बीमार से दिख रहे थे।उन्होंने सलमा को देखते ही फिर से अनाप-शनाप बकना शुरू कर दिया....मगर ये क्या, धड़ाम से चक्कर खाकर वे वहीं दरवाज़े पर ही बेहोश होकर गिर पड़े।

सलमा ने जल्दी से अपने परिवार के लोगों को आवाज़ दी और उनके सहयोग से रामबाबू को उठाकर उनके कमरे में बेड पर लिटा दिया। रामबाबू का शरीर बुरी तरह से तप रहा था। सलमा को घबराहट हुई और उसने फौरन अपने एक डॉक्टर मित्र को फोन कर के बुलाया। कुछ देर में डॉक्टर ने आकर जब रामबाबू को देखा तो कहा,"आपलोग डरिये नहीं, कोरोना का मामला नहीं है, बल्कि जेनरल फ़ीवर है और ये शायद वीकनेस की वजह बेहोश हुए थे

तब तक रामबाबू को होश आ चुका था लेकिन वो स्थिति देख कुछ बोल नहीं पा रहे थे। डॉक्टर ने जाते हुए सलमा को फ़ीवर की दवा दी और रामबाबू को खिलाने को कह गये। डॉक्टर के जाने के बाद सलमा ने रामबाबू से कहा कि "अंकल अब आपको यह दवा लेनी है, मगर पहले कुछ खा लीजिए" रामबाबू बोले, "ठीक है मैं खाना बनाकर खा लूंगा, अब तुम जाओ." इसपर सलमा ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैंने आपकी बातें सुनी थीं, मुझे पता है आपको खाना बनाना नहीं आता और इस हालत में आपको वर्क करना ठीक नहीं है..." 

रामबाबू ने बीच में ही टोका, "अच्छा ठीक है ठीक है, मैं दूध और ब्रेड खा लूंगा। बस डाईनिंग टेबल से लाकर दे दो" जब सलमा ने देखा तो ब्रेड पर फफूंदी लग चुकी थी और कटोरे में रखा दूध भी फट चुका था। सलमा ने बोला कि "मैं दवा आपको बिना कुछ खाये नहीं दे सकती, तबियत और भी नाज़ुक हो जाएगी..मैं कुछ करती हूँ...." इतना कहकर जैसे ही सलमा रामबाबू के घर से निकलने को हुई कि तभी भर्राई आवाज़ में रामबाबू ने उसे टोका, "नहीं मुझे, इधर-उधर का कुछ नहीं खाना..." सलमा ने कहा, "मैं समझ गयी कि आप क्या कहना चाहते हैं..! ठीक है अंकल, मैं अब अपने घर से खाना लाने नहीं जा रही लेकिन आपके घर में और आप ही की रसोई से तो कुछ बना सकती हूँ ना...?" उसकी बातें सुन रामबाबू उसे चौक कर देख ही रहे थे कि सलमा सीधे रामबाबू के किचन में चली गयी और कुछ तलाशने लगी। कुछ ही देर में उसने खिचड़ी बनाकर रामबाबू के सामने परोस दिया। इस बार रामबाबू कोई बहाना न बना सके और जबतक उन्होंने खिचड़ी खाकर दवा ना खा ली, सलमा ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। कुछ प्रॉब्लम हो तो उसके नम्बर पर रामबाबू को कॉल करने की हिदायत देकर सलमा अपने फ्लैट में चली आयी।

अगले दिन सुबह रामबाबू की नींद टूटी तो देखा कॉलबेल बज रहा है। उन्होंने बेड से उठकर दरवाज़ा खोला तो सलमा खड़ी थी। सलमा ने तबियत पूछी तो रामबाबू ने बताया कि "अब बुखार उतर चुका है, बस थोड़ी सी कमज़ोरी बनी हुई है" सलमा ने रामबाबू को बैठाया और कहा "रुकिए अंकल, मैं अभी आई" और झट अपने फ्लैट में चली गयी। कुछ ही मिनट में वह एक ग्लास दूध और ब्रेड सैंडविच लेकर हाज़िर हो गयी। जब उसने रामबाबू को कहा, "अब जल्दी से फटाफट ब्रेकफास्ट कम्प्लीट कीजिए फिर से दवा खानी है कि नहीं, फिर जल्दी से ठीक कैसे होंगे आप ?" लेकिन इस बार रामबाबू ने ना नुकुर नहीं किया कि, क्यों सलमा अपने घर से नाश्ता लेकर चली आयी..? और बिना कोई प्रतिक्रिया दिए उन्होंने चुपचाप ब्रेकफास्ट कर दवा खा ली" तभी रामबाबू की पत्नी का फोन आया। जब पत्नी ने उनका हालचाल पूछते हुए, कोरोना से बचकर रहने की सलाह दी तो रामबाबू ने नम आंखों से सलमा की तरफ देखते हुए फोन पर अपनी पत्नी को जवाब देते हुए कहा, "अब मुझे कोरोना से मौत का डर नहीं है, लेकिन हाँ अगर हम अपनी नफरतों से बाहर नहीं निकलें तो उसके साइड इफेक्ट से एक दिन हम सभी ज़रूर मर जायेंगे" रामबाबू में आये इस बदलाव को देख सलमा की आँखों में भी खुशी के आँसू छलक आए और फिर वो मुस्कुराते हुए रामबाबू को "टेक केयर अंकल" कहकर अपने फ्लैट में दाखिल हो गयी।


(आत्मकथ्य : जिस दिन धर्म विरोधी नफरत खत्म हो जाएगी इंसान सही मायनों में इंसान कहलाने के लायक समझा जाएगा)


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