कोडवर्ड की शिकार कोख...!
कोडवर्ड की शिकार कोख...!
सव्या को कम्पनी के किसी प्रोजेक्ट पर कलेक्टर साहब से अप्रूवल लेना था सो वह सुबह जल्दी ही ऑटो लेकर कलक्टरी कार्यालय पहुंच गयी थी। सीढियां चढ़ते हुए जब उसने घड़ी में टाइम देखा तो नौ बज रहे थे।
ऑफिस खुलने में अभी समय था तो वो अपॉइंटमेंट लेकर प्रतीक्षालय में बैठ गयी। हॉल में वह चारों ओर एक नज़र फैला ही रही थी कि सहसा उसकी आंखें एक पोस्टर की ओर आकर्षित हुई जिसमें गर्भ में पल रही छोटी बच्ची की नाल को कैंची से काटते हुए दिखाया गया था और नीचे कुछ लिखा हुआ भी था।
सव्या उस पोस्टर को पढ़ते हुए सुबक रही थी और उसके लाल होते हुए गालों से आंसू लुढ़कते हुए दिखाई दे रहे थे। उसकी आँखों में अजीब-सी कसमसाहट और खुद के प्रति घृणा के संकेत साफ-साफ दिखाई पड़ रहे थे। पोस्टर पूरा पढ़ लेने के बाद उसने एक लम्बी आह भरी और निस्सहाय सी निढ़ाल होकर कुर्सी के हत्थों को पकड़कर वही बैठ गयी।
दरअसल यह पोस्टर 'डॉटर्स आर प्रीसियस' अभियान के तहत जनजागरूकता के लिए लगाया गया था जिसमें कन्या-भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रशासन की ओर से एक खत के जरिये मार्मिक अपील की गई थी। पत्र का शीर्षक था- 'एक अजन्मी बेटी का मम्मा को खत'। पत्र में की गई अपील इस तरह थी-
प्यारी मम्मा,
जानती हूं कि अभी मैं सिर्फ मांस-लहू का एक लोथड़ा भर हूँ, इसलिए न तो हाथ जोड़कर वंदन कर सकती हूँ और न ही आपके चरण-स्पर्श कर सकती हूं। चाहती तो मैं भी हूँ कि जन्म के बाद आपके गले में मेरे नन्हें हाथों का हार बनाकर आपकी गोद में चढूं और कंधे पर बैठकर खेतों में जाऊँ लेकिन माँ अभी मैं ऐसा कर पाने में असमर्थ हूँ। माँ मैं खुश हूँ इस सुकून भरी दुनिया में जहाँ कोई भेद नहीं है, कोई उलाहना नहीं है; बस है तो सिर्फ आपका स्नेहिल सानिध्य और मां-बेटी का धागे की तरह नाल से जुड़ा एक जैविक नाता। लेकिन मम्मा...(सुबकी लेते हुए) आप मुझे जन्म जरूर देना, कहीं ऐसा ना हो कि आप मुझे उसी तरह जन्म से पहले एक लोथड़े के रूप में साफ करवा दो, जैसे गीले हाथ से साबुन का घिसा हुआ टुकड़ा फिसल जाता है।
मम्मा मैं तुम पर बोझ नहीं बनूंगी; चाहो तो तुम मुझे रोटी भी मत देना, मैं भैया की थाली की जूठन से रह-बसर कर लूंगी; फटे-पुराने कपड़ों से अपने तन को ढक लूंगी और पढ़ने भी नहीं जाऊंगी लेकिन मुझे आपकी बेटी के रूप में जन्म लेना है, जीना है, ये दुनिया देखनी है और इसमें विचरण करते हुए विलीन हो जाना है।
प्रतीक्षारत आपकी अजन्मी लाड़ो !
अब सव्या की अश्रुपूरित आंखों में उसका अतीत तैरने लगा था। वो उन दर्दभरी दास्ताँ के पन्नों को रिवाइंड होते हुए देख रही थी और बार-बार स्व-मातृत्व को खंडित महसूस करती हुई वह शून्यभाव से जमीं में गड़ी जा रही थी क्योंकि उसे भी लगातार दो बार कुछ इस तरह के ही अपराध जिसमें उसकी कोई मर्जी नहीं थी, का शिकार होना पड़ा था। हुआ यूं था कि सव्या बी.बी.ए. ग्रेजुएट थी जिसकी शादी एक पारंपरिक और रूढ़िवादी सोच रखने वाले एक सवर्ण परिवार में हुई थी। साची भी उसी कम्पनी में एम्प्लॉयी था जिसमें सव्या काम करती थी। साची के मम्मी-पापा सहित पूरा परिवार सव्या को एक लड़के की माँ के रूप में देखना चाहते थे। उसकी सास चाहती थी कि बहू जल्द एक बेटे को जन्म देकर उसके वंश-वृद्धि का पारितोषिक उन्हें दे।
"वास्तव में आज भी रूढ़िवादी सोच वाले लोग अपनी नवोढ़ा बहुओं को 'लड़के पैदा करने' की मशीन समझकर चलते हैं। उनकी एक ही सोच होती है कि जल्द ही अपना बेटा बीज डालें और बहू लड़का निकाल दे कोख से।"
सव्या की जिंदगी में भी वो मोड़ आ ही गया जो हर एक लड़की अपने दाम्पत्य जीवन में महसूस करना चाहती है। वो प्रेग्नेंट थी और माँ बनने वाली थी। साची की माँ अपनी बहू को तरह-तरह के उपवास और पूजा में ले जाती ताकि उसकी मशीन लड़का जने। दो महीने बाद रूटीन चेक-अप के लिए जब सारा परिवार हॉस्पिटल गया तो उसके सास-ससुर पहले ही लिंग-परीक्षण को लेकर डॉक्टर से बात कर चुके थे। जैसे ही सोनाग्राफी हुई, डॉक्टर ने 'जय माता दी' कहकर सबको सूचना दी कि सब कुछ नॉर्मल है , अब आप इन्हें लेकर घर जाइए, इनका ध्यान रखिएगा बाकि के जरूरी टेस्ट कल कर लिए जाएंगे। सव्या मन ही मन एक आगामी मातृत्व के अहसास को जीकर खुश हो रही थी। जैसे ही दूसरे दिन चेक-अप की लंबी बेहोशी के बाद उसकी आंखें खुली तो वो ये भांपकर टूट-सी गयी कि अब वो प्रेग्नेंट नहीं थी, उसका एबॉर्शन करवाया जा चुका था। वो बस बुत बनकर बैठी रह गयी थी, उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे और शरीर निढ़ाल गया था। अब उसे डॉक्टर द्वारा कहे गए 'जय माता दी' के मायने समझ आ गये थे।
ऐसे डॉक्टर जो आज भी पेशे के ऊपर पैसे को तरज़ीह देते हैं, वो लिंग परीक्षण के बाद कोड- वर्ड में बताते हैं कि यदि 'जय श्री कृष्णा' बोले तो लड़का और 'जय माता दी' बोले तो लड़की। बार-बार एक ही सवाल उसे कचोट रहा था कि कैसे 'माता' जी का एक काल्पनिक प्रतीक जिसकी लोग पूजा करते हैं, उससे उसके मातृत्व की अनुभूति को छीन सकता है।
आज उसकी कोख 'कृष्णा' और 'माता' के कोड के कोपभाजन का शिकार हो गयी थी जो उसकी जिंदगी का कड़ा टर्निंग पॉइन्ट था।
