Vikash Kumar

Drama Tragedy

2.5  

Vikash Kumar

Drama Tragedy

कंप्यूटर वाला चौकीदार

कंप्यूटर वाला चौकीदार

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दौलतराम की माली हालत बहुत खराब थी। उसके दो बेटे एवं दो बेटियाँ थीं। उसकी पत्नी नीरजा की तबियत अक्सर खराब रहा करती थी। आखिरकार दौलत राम को सेठ गंगासागर की दुकान पर 'चौकीदार' की नौकरी मिल गई। पूरे पाँच हजार रूपये की मासिक पगार थी। दौलत राम बहुत खुश था। हो भी क्यों ना, अब उसके बच्चे भी स्कूल जा सकते थे। वह अपनी बीमार पत्नी का इलाज करा सकता था। अपनी छोटी बेटी 'डॉली' के लिए वह अब खिलौने ला सकता था।

इन्हीं ख्वाबों में डूबा दौलतराम घर के प्रत्येक सदस्य के लिए कुछ ख्वाब सजा रहा था। अंत में वह दिन आया भी, जब दौलतराम को महीने के अंत में तनख्वाह मिली। सभी घर में बहुत खुश थे। आज सबको उनकी मनपसन्द चीजें मिलीं। पत्नी नीरजा की आँखों में खुशी के आँसू थे। आखिर बहुत दिनों बाद जो उन्होंने घर में कुछ नया सामान देखा था। आठ सालों तक ऐसे ही घर में सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा। सब खुश थे। पर एक दिन अचानक दौलतराम घर में गुमसुम-सा आया। पत्नी के बहुत पूछने पर भी वह कुछ नहीं बोला और चुपचाप बिना खाना खाए ही सो गया। और फिर कभी नहीं उठा।

पड़ोस के रामू काका को वह उसी शाम मिला था। उसने रामू काका से बस इतना कहा था कि अब उसकी जगह सेठ ने कोई 'कंप्यूटर वाला चौकीदार' रख लिया है। रामू काका अब मैं बच्चों से कैसे कहूँगा कि उनका बाप उनके स्कूल के लिए फीस नहीं दे पाएगा, नए कपड़े नहीं बनवा पाएगा, नीरजा की दवाई नहीं ला पायेगा। मेरी हिम्मत नहीं है यह सब कहने की और ऐसा कहकर उसकी हिल्की बंध गई थी। रामू काका खुद भी दौलतराम की बात बता बताकर रोते जाते थे। आज फिर एक 'लोहे के कम्पूटर वाले चौकीदार' ने एक सजीव हांड मास वाले चौकीदार एवं उसके बच्चों की इच्छाओं का कत्ल किया था। हाँ एक बार फिर हमने तरक्की की राह पर कदम बढ़ाया था। एक इंसान को हटा मशीन को स्थापित जो कर दिया था हमने, और शायद यही सब सोचते-सोचते दौलतराम को दिल का दौरा पड़ गया था। 

पर अगले दिन अखबार में प्रथम पृष्ठ पर कुछ यह खबर छपी थी -

"आधुनिक होते भारत की एक और उपलब्धि- अब मशीन करेंगी आपके घर, दफ़तर की चौकीदार !"


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