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Sudhir Srivastava

Inspirational

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Sudhir Srivastava

Inspirational

कम खाओ, गम खाओ

कम खाओ, गम खाओ

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 इन सीधे और सरल शब्दों की गहराई में झाँकने पर बहुत ही सुंदर, सार्थक और जीवनशैली को बदलकर जीवनदर्शन को प्रकाशित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

 कम खाने से तात्पर्य ठूंस ठूंस कर खाने से बचने की ओर है। क्योंकि अधिकता हर चीज की खराब होती है।कहा भी जाता है कि जीने के लिए खाइए, न कि खाने के लिए जिएं ।क्योंकि अनियंत्रित भोजन भी तमाम तरह की बीमारियों को जन्म देती हैं,जो न केवल परेशानियों का कारण भी बनती हैं।जिससे शारीरिक,मानसिक कष्ट के अलावा आर्थिक नुकसान भी झेलना ही पड़ता है।रात में तो विशेष रूप से भूख से थोड़ा कम ही खाना चाहिए, जिससे भोजन आसानी से पच सके। क्योंकि रात में सोते समय हमारा शरीर स्थिर रहता है,जिससे हमारी शारीरिक उर्जा का निष्पादन भी बहुत ही कम होता है,और हमारे पाचन तंत्र को जब आवश्यकता से अधिक श्रम करने की विवशता होती है,जिससे वो सुचारू ढंग से अपना काम नहीं कर पाता है, तब उसका दुष्प्रभाव स्पष्ट रुप से हमें शारीरिक कष्टों, बीमारियों के रुप में उठाना ही पड़ता है। इसलिए इंसानों की तरह भोजन करना उचित है,भुक्खड़ों की तरह नहीं।

अब बात जीवन में उतारने के दृष्टिकोण से देखें तो कम खाना मतलब संतोष करने से है। गम खाना मतलब बर्दाश्त ,सहन करने से है।ये दोनों बातें हर हाल में हमारे निजी जीवन में ही नहीं, पारिवारिक और सार्वजनिक जीवन में भी लाभकारी हैं।बहुत बार बड़े से बड़ा विवाद भी थोड़े से सब्र और संतोष से बड़ी आसानी से आत्मीयता और खुशहाली भरे माहौल में सुलझ जाता है,वहीं बहुत बार बहुत ही छोट बात भी न केवल बड़े विवाद का कारण बनती है,बल्कि जीवन भर के लिए टीस और न मिटने वाले घाव भी दे जाती है।

अब ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम कम खाकर गम खाने को तैयार होते हैं अथवा तनाव ,टीस और घाव सहने की प्रतीक्षा करते हैं।

अंत एक बार फिर यही ठीक लगता है कि कम खाओ, ग़म खाओ, जीवन को खुशहाल बनाओ।


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