कलंक
कलंक
एक छोटा सा कमरा । चारो तरफ रंग बिरंगे छोटे बल्ब रोशनी बिखेर रहे थे । कमरे की दीवारों पर अर्धनग्न औरतों की तस्वीरे चिपकी हुई थी । एक कोने में एक लकड़ी का साधारण सा पलंग रखा था। दाहिने और कोने में पानी का जग और एक ग्लास रखा था । चर्र की आवाज़ के साथ कमरे का दरवाजा खुला और दो पैरों ने अंदर प्रवेश किया । कहीँ से दो चोर निगाहें उन पैरों को देख रही थी और कहीं दो निगाहें किसी को ढूंढ रही थी ।चारो तरफ अजीब सी शांति थी कि तभी किसी की हल्की चीख सुनाई दी ।
दोनों आपस मे टकराते टकराते बचे । नज़रों को टकराने से पर कोई रोक नही पाया । लाल लिबास में लिपटी कोई लाल परी , रंग साँझ सा था उसका , ना गोरों में गोरी और ना कालो में काली । मछली की आँखों जैसी गोल गोल आँख । होंठ उफ्फ जैसे अभी कोई गुलाब खिला हो । म्याऊं म्याऊँ की आवाज़ कानो में पड़ते ही लड़की संभली । अचानक कुछ फासले पर जा कर सहमी सी खड़ी हो गई । पुरुष ने खुद को संभाला । पलंग पर बैठ कर उसने जग से पानी लिया । लड़की की तरफ इशारा करके उसे पानी के लिए पूछा । काँपते हाथो से उसने पानी का ग्लास लिया और एक बार मे सारा पानी पी लिया ।
मौन तोड़ते हुए उस पुरुष ने ही बात आरंभ की ।
"मेरा नाम किशोर है और मैं "
"आप मेरे नए ग्राहक है " तुरंत लड़की ने कहा ।
किशोर को ये तो समझ आ गया था कि वो लड़की डरी हुई थी । विषय बदलने के लिए किशोर ने बात जारी रखी ।
"तुम्हारा नाम क्या है और तुम यहाँ कैसे आई "।
लड़की खामोश खड़ी रही । किशोर ने पुनः अपना सवाल दोहराया और इस बार लड़की की आंखों में चमक आई । पहली बार कोई पुरुष ऐसा आया था जिसे उसके जिस्म से ज्यादा उसमे दिलचस्पी थी ।पलंग के पास नीचे फर्श पर ही लड़की बैठ गई । एक सफेद काली बिल्ली पलंग के नीचे से आकर उसकी गौद में बैठ गई । लड़की ने बहुत प्यार से बिल्ली के बालों को सहलाया और उसे प्यार करने लगी ।
" मेरा नाम कुमुद है "। इतना कहकर लड़की फिर चुप हो गई ।
"कितना खूबसूरत नाम है कुमुद मतलब सफेद कमल " किशोर ने कहा ।
"तुम अपने नाम की ही तरह खूबसूरत हो " ।
थोड़ी देर मौन रहने के बाद कुमुद ने फिर बोलना शुरू किया ।
" मेरा गाँव का नाम है भमोरा जो कि टीकमगढ़ में है ।
गाँव मे माँ है ,बापू है और एक छोटा भाई है । कुछ दिन पहले तक मैं भी गाँव की और लड़कियों की तरह स्कूल जाती थी ,खेलती कूदती थी । एक दिन सब बंद हो गया । मेरे घरवालों ने मेरी शादी पड़ोस के गाँव मे रहने वाले रमेश से कर दी । आँखो में बहुत से सपने लिए मैं भी अपने ससुराल आ गई । कुछ रीति रिवाज़ों के बाद मुझे एक कमरे में भेज दिया गया । रमेश के परिवार के किसी सदस्य ने मुझे शर्बत पिलाया । अचानक आँखो में नींद सी छाने लगी और मैं सो गई ।
जब आँखे खुली तब खुद को इस कमरे में पाया । पास में रमेश और उसके साथ शांता बाई खड़े थे । रमेश ने शांता बाई के यहाँ मुझे बेच दिया । धीरे धीरे समझ आया कि मेरे जैसी और भी मासूम है । सब को जिस्मफरोशी के बाज़ार में धकेल दिया गया है किसी ना किसी रमेश के हाथों । कभी इस चारदीवारी से बाहर नही निकली पर यहाँ आने वाले लोगो से सुना के ये राजस्थान का कोई गाँव है ।
रोज शांता बाई किसी ना किसी को भेज देती है इस कमरे में । शराब के नशे में धुत लोग बस हवस पूरी करने आते है और चले जाते है । चाहे जिस्म मुर्दा ही क्यों ना हो ।
"तुमने कभी प्रतिकार करने की कोशिश नही की " ,किशोर ने पूछा ।
" बहुत बार कोशिश की कुमुद ने कहा । पहले बहुत मारते पीटते थे । कई दिनों तक भूखा प्यासा रखा । कब तक लड़ती । एक रात किसी ने नोंच डाला " । कमरे में सिसकियों की आवाज़ सुनाई देने लगी । कोई अदृश्य शक्ति किशोर को कुमुद की तरफ खींच रही थी । किशोर ने प्यार भरा स्पर्श कुमुद के सर पर रखा और उसे शांत रहने को कहा । कुमुद की नजरें सहसा जम सी गई जब उसने किशोर की कमीज़ पर एक बिच्छू को देखा । हल्की सी चीख के साथ उसने किशोर को इशारा किया । किशोर ने प्यार से बिच्छू को अपने हाथ पर रख लिया ।
" मेरा दोस्त है ये और ये काटता नही है "। किशोर ने कहा । उसने बताया कि ये बिच्छू उसे रेगिस्तान के पास मिला था । उसका एक पैर जख्मी था । किशोर ने उसके जख्म साफ कर उसका इलाज किया । ठीक होने के बाद बिच्छू किशोर के पास ही रह गया उसका दोस्त बनकर ।
कुमुद को बिच्छू का साथ अच्छा लगा । ऐसा दोस्त पहले कभी नही देखा था उसने । किशोर और कुमुद एक आकर्षण में बंधते जा रहे थे । पूरी रात दोनों एक दूसरे के बारे में जानते रहे । सुबह की पहली भोर के साथ के ही किशोर ने उससे विदा ली । किशोर ने जाते जाते बस इतना कहा कि मैं तो जा रहा हूँ पर अपनी जान यहीं छोड़े जा रहा हूँ । जल्दी वापस आऊँगा ।
हफ्ते में एक बार किशोर कुमुद से मिलने आने लगा । जब भी किशोर आता कुमुद उससे ढेरो बाते करती । उसके कंधे पर सर रख कर अपने सारे दुख भूल जाती थी । पर आज उसकी आँखें नम थी । उसने किशोर से कहा कि शांता बाई रोज किसी ना किसी को भेजती है । कुमुद सबको भाग देती है । अब वो किशोर के सिवा किसी की नही होना चाहती । शरीर नोंच सकते है उसका पर दिल मे और रूह में बस किशोर है ।
किशोर जाने से पहले अपने दोस्त बिच्छू को कुमुद के पास छोड़ गया । जल्दी आने का वादा कर के किशोर चला गया । कुमुद का बस अब एक ही साथी था बिच्छू । घंटों कुमुद उससे बाते करती । ऐसा लगता था जैसे बिच्छू को कुमुद की सारी बाते समझ आती है । कमरे के रोशनदान से बिच्छू रोज बाहर जाता और अपने पेट भर के आ जाता । कुमुद ने एक छोटी सी सुनहरी डिब्बी में बिच्छू के लिए घर बना दिया । रात को बिच्छू उसी डिब्बी में रहता था ।
दिन बीतने लगे । किशोर का कहीं पता नही था । कुमुद के मन मे कई आशंकाओं ने जन्म ले लिया था । एक रोज कमरे का दरवाजा खुला और फिर दो पैरों ने अंदर कदम रखा । कुमुद ने ध्यान से देखा कोई सफेद दाढ़ी मूछें लगाए खड़ा था । कुमुद उठी और भाग के उसके गले लग गई ।
" किशोर तुम ठीक तो हो ना ! कितने दिनों के बाद तुम्हे मेरी याद आई ", कुमुद ने कहा ।
किशोर ने बताया कि शांता बाई को शक हो गया है कि हम एक दूसरे से प्यार करते है । किशोर पहले भी आया था पर शांता बाई ने मिलने नही दिया । इसलिए आज भेष बदल कर आना पड़ा । दोनों बहुत बड़ी दुविधा में थे कि क्या करे । कुमुद का उस घर से निकलना नामुमकिन था । घर भले गाँव मे हो पर आस पास सख्त पहरा था । रसूखदार लोग शांता बाई के यहाँ आते जाते थे । तभी दरवाज़े से शांता बाई और उसके गुंडे अंदर दाखिल हुए । उन्होंने किशोर और कुमुद को पकड़ लिया । किशोर ने बहुत मिन्नतें की कुमुद को छोड़ने के लिए पर किसी पर कोई प्रभाव नही पड़ा । शांता बाई के कहने पर उसके गुंडों ने किशोर को इतना मारा के उसकी साँसे बस उखड़ने को थी । किशोर को छोड़ कर कुमुद पर भी लाठी बरसाई और अधमरी हालत में दोनों को कमरे में छोड़ कर चले गए ।
कुमुद किसी तरह किशोर के पास आई , किशोर में अब भी कुछ साँसे बची थी ।
"मुझे माफ़ कर देना कुमुद , मैं कुछ नही कर पाया " । इसके साथ ही किशोर ने आंखे मूंद ली । कुमुद अब टूट गई थी । उसे इतना नही मारा गया था कि वो मर जाती । अब मैं जीना नही चाहती कुमुद बड़बड़ाई । शरीर मे एक अजीब से ताकत आई और कुमुद के उस सुनहरी डिब्बी से बिच्छू को बाहर निकाला । कुमुद बस दयनीय नजरो से उसे देख रही थी ।
सुबह कमरे का दरवाजा खुला तो किशोर के साथ कुमुद की भी लाश पड़ी थी । फर्श के एक कोने में बिच्छू भी मरा पड़ा था । आज तीनो अपने अपने कलंक से मुक्त हो चुके थे ।

