कल

कल

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सूरज की किरणें और सुबह की ठंडी-ठंडी हवा खिड़की पर लगी जाली से छनकर कमरे में आ चुके थे I रात के अँधेरे पर एक छत्र राज करती night bulb की रौशनी दिन के उजाले में अब नदारद हो चुकी थी I पंखे की हवा से पलंग के सिरहाने पर लटकी चादर ठिठुर रही थी I दूर से आती चिड़ियों की चहचहाहट के अलावा कमरे में शन्ति पसरी हुयी थी I दीवार घड़ी के सेकण्ड के कांटे की टिक-टिक तो कुछ दिन पहले ही दम तोड़ चुकी थी I हलकी सी ठंडक और शान्ति के इस माहौल में पलंग के दूसरे सिरहाने पर तकिये में सिर घुसाए अमन गहरी नींद के आगोश में था I

चार्जिंग पर लगे मोबाईल फोन की अचानक बजी घंटी ने उस शांत वातावरण में एक हलचल सी पैदा कर दी I फोन की चमकती स्क्रीन पर लिखा था 6 A.M. :: मोर्निंग वाक ” I मोर्निंग वाक ... अमन की निकलती हुयी तोंद पर चार लोगों से तंज सुनने के बाद उसका अपने आप से किया वादा था ये मोर्निंग वाक I यूँ तो ऐसे वादे अमन ने कई बार किये थे लेकिन इस बार सोने से पहले की गयी तैयारी में एक निश्चय दिख रहा था I पानी की बोतल, energy chocolate, दो केले, t-shirt, trouser और shoes सब तैयार थे I दरवाज़े की खूंटी पर लटके running trouser ने तो अलार्म की आवाज़ सुनकर warm up करना शुरू कर दिया I बाहर रखे जूते भी shoe-rack की घुटन से निकल ठंडी हवा में दौड़ने के लिए कमर कसने लगे थे I अब बस इन्तेज़ार था तो अमन के उठने का I

समय के साथ अलार्म की आवाज़ धीरे-धीरे तेज होती जा रही थी I पिछले 85 सेकेंड से चीखते-चीखते मोबाईल फोन की साँसे भी अब उखाड़ने सी लगी थीं लेकिन फायदा कोई नज़र नहीं आ रहा था I हल्की सी निराशा का माहौल बन रहा था लेकिन... अगले ही पल अमन के शरीर में एक हलचल सी हुयी I Trouser और shoes की उम्मीद भरी निगाहें टक-टकी लगाये अमन को देख रही थीं I तकिये से सिर निकाले बिना उसने अपने हाथों से इधर उधर टटोलते हुए फोन को पकड़ा I नींद से भरी आँखों को आधा खोल फोन की तरफ देखा I कुछ समय तक असमंजस की स्थिति रही I सुबह की मीठी-मीठी नींद या फिर walk का वादा, किसी एक का चुनाव करना था I अमन उठने की हिम्मत जुटाने लगा लेकिन उसके आलस्य ने एक कुटिल मुस्कान के साथ दिमाग में बुदबुदाया “ छोड़ न यार... कल से शुरू करते हैं ” I खेल अब पलटता दिखाई दे रहा था I पूरे दम-ख़म के साथ बजते अलार्म ने आलस्य की तरफ झुकते पलड़े को वापिस लाने की भरसक कोशिश की लेकिन आलस्य मजबूत खिलाड़ी निकला I अलार्म को निर्ममता से शांत करा दिया गया I पंखे की speed को कम कर और पैर से खींची गयी चादर को लपेट अमन फिर सो गया I एक और जीत के साथ आलस्य की मुस्कान बढ़ गयी थी I चंद मिनटों की हलचल के बाद कमरे में फिर से शान्ति का साम्राज्य था I   

Trouser और shoes का उत्साह ठंडा हो गया I शिथलाये से दोनों तथाकथित कल के इन्तेज़ार में बैठ गए I कल... वो कल जिसका इन्तेज़ार खत्म ही नहीं हो रहा था I इसी कल का इन्तेज़ार अमन के फोन में बनी उस “To Do List” को भी है जिसके ज्यादातर काम करने अभी बाकी हैं I कल का ये इन्तेज़ार अपने मुकाम को तलाशती उस अधूरी कहानी को भी है जिसे अमन ने 10 दिन पहले लिखना शुरू तो किया था लेकिन फिर बीच में ही छोड़ दिया I अमन की तरह हम में से अधिकतर के जीवन में भी कल का इन्तज़ार करती चीजों/बातों की लंबी लिस्ट है I माना व्यस्त दिनचर्या और हर दिन परिवर्तित होती प्राथमिकताओं के बीच सभी काम कर पाना मुमकिन नहीं है लेकिन संभव कार्यों को भी अनावश्यक रूप से कल पर टालने से कहीं ताउम्र दिल में अफ़सोस और मलाल न रह जाए I ऐसे ही एक कल का इन्तेज़ार अमन के बीमार दादाजी को भी है I उनके अधिकतर फोन कॉल्स पर अमन का एक ही जवाब “अभी time नहीं है दादू, कल आराम से बात करता हूँ”, लेकिन दादाजी को डर है कि इस कल के आने से पहले कहीं उनके जीवन के सफर का आखरी पड़ाव ना आ जाए I


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