कीचू पीचू और होली
कीचू पीचू और होली
कीचू और पीचू उड़ना सीख गये थे। उनकी माँ चीनू चिड़िया भी उनके साथ उड़ते हुए दाने इकट्ठा करती थी। अब वे दोनों नई नई जगह जाते, घूमते फिरते हुए नये दोस्त बनाया करते थे। वे दोनों घोंसला बनाना भी सीख गये थे। उनकी दोस्ती शहर में करण और पिंकी नामक दो बच्चों से हो गई।
एक दिन जब कीचू और पीचू अपने दोस्त पिंकी और करण से मिलने गए लेकिन वे दोनों उन्हें कही नही मिले। बल्कि वहां कोई भी इंसान नही था। उनकी जगह कोई अजीब तरह के रंग बिरंगे जीव थे जो कोई चीज हवा में उछाल कर जोर जोर से चिल्ला रहे थे।
वे दोनों यह सब देखकर डर गए थे। अपने घोसले पर लौटने के लिए उड़े उनके पंखों पर वही अजीब सी चीज लग गई थी। यह देखकर दोनों चीख पड़े। तभी उन्हें किसी के हंसने की आवाज आई। उन्होंने धीरे से आंख खोलकर देखा। सामने करण और पिंकी खड़े थे।
“अरे करण यह क्या कर लिया तुमने ? यहां यह सभी लोग अजीब से क्यो लग रहे है ?”
“क्योंकि आज सब लोगों ने एक दूसरे को रंग लगाया है और हम सब बहुत मस्ती कर रहे है। आज होली है ना इसलिए।
“होली क्या होती है ?”
“इसमें हम एक दूसरे को रंग लगाते हैं। मिठाई खाते हैं और ढेर सारी मस्ती करते है।”
“अच्छा।”
इसके बाद कीचू और पीचू जब अपने घर लौटे तो वह रंग बिरंगे पक्षी बन चुके थे।