Mohit Sah

Tragedy

5.0  

Mohit Sah

Tragedy

खत

खत

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शायद सुबह के सात बजते होंगे, वह हर बार की तरह उस दिन भी मेरे पास रंगों से सजी थाली ले आया। लाल उसका पसंदीदा रंग है और हरा मेरा। ना जाने क्यों उस दिन उसके हाथ मुझे गुलाल लगाते वक्त कांप रहे थे। मैं बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और उसको गले से लगा लिया। जाने से पहले उसने अपने कांपते हाथों से मुझे एक खत थमा दिया। गिला था वो खत, मानो आँसुओं से लिखा गया हो। "मैं और पल्लवी मुम्बई जाना चाहते हैं, अपने सपनों को जीना चाहते हैं, राहुल की पढ़ाई भी वहाँ बहुत अच्छी होगी। आप भी तो हमारी खुशियां चाहते हैं ना पापा, पर वहाँ इतना बड़ा घर तो नहीं की हम आपको भी........." - खत की ये पंक्तियां आज भी अधूरी रह गई। पिछले एक वर्ष से ना जाने कितनी बार वृद्धाश्रम की दिवारों ने इन अधूरी पंक्तियों के दर्द को समेटा है। आज ये बूढ़ी निगाहें दरवाजे को निहार रही है, शायद वह गुलाल लेकर आ जाए।। 


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