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Akash yadav 'nishi'

Action Crime Thriller

3  

Akash yadav 'nishi'

Action Crime Thriller

खौफ़... एक अनकही दास्तां-2

खौफ़... एक अनकही दास्तां-2

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*"पार्ट-2"*


डॉक्टर गोयंका एलिना के वीभत्स लाश को देख कर बुरी तरह घबरा गए थे, लेकिन अभी भी उनमें होश बाकी था।

वे बोझील कदमों से बाथरूम से बाहर निकले और जेब से अपने मोबाइल को निकलते हुए एक बार पीछे मुड़ कर बड़े ही अफसोस के साथ, मरी हुई एलिना को देखने लगे। 

फिर उन्होंने अपने मोबाइल से स्थानीय पुलिस थाने के नंबर में कॉल डायल किया, पर इससे पहले की एक भी रिंग उधर जाती उन्होंने तुरंत ही उस कॉल को कट कर दिया। और कुछ देर तक सोचने के बाद उन्होंने अपने कांटेक्ट लिस्ट में से उस नम्बर को ओपन कर कॉल लगाया जो मिस्टर रब्बानी (बॉस) के नाम से सेव था। 


मिस्टर रब्बानी को सारी स्थिति से अवगत कराते हुए डॉक्टर गोयंका बार बार अपनी घबराहट को छिपाने की असफल कोशिशें कर रहे थे। फ़िर सब कुछ बताने के बाद जब डॉक्टर गोयंका एक लंबी सांस लेते हुए चुप हुए, तो दूसरी तरफ से कथित मिस्टर रब्बानी डॉक्टर गोयंका को कुछ देर तक जाने क्या क्या समझाते रहे,जिसके जवाब में वे सिर्फ "हां", "हूँ", और यस बॉस कहते हुए ही जवाब दे रहे थे। आखिर में जब डॉक्टर गोयंका ने फोन का संबंध विच्छेद किया तो उनके मसामों में पसीने की बूंदे चुह चूहा रहीं थीं ।


कुछ घंटे बाद...:- 


सैकड़ों ट्यूबलाइटों से जगमगाता हुआ एक बहुत बड़ा हॉल था ये। जिसे देख कर ही अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि, वो हॉल किसी बड़ी इमारत के नीचे छुपा तहखाना है। 

हालांकि बाहर सूर्योदय हो चूका था, लेकिन इस तहखाने में सूर्य की रौशनी की एक भी किरण नही आ पाई थी। 

फिर भी वहाँ दिन जैसा ही उजाला फैला हुआ था, सैकड़ों ट्यूब लाइटें जगमगा रही थी उस तहखाने के भीतर। इतनी ज़्यादा सफ़ेद रौशनी की आँखें ही चौंधिया जाएं। 

हर दस दस कदम पर दीवारों के सहारे वर्दीधारी सैनिक खड़े थे, उन सभी के पैरों में चमड़े के जूते थे, हरी वर्दी पर लाल कपड़े की चौड़ी बेल्ट, और सिर पर लाल कपड़े की ही कैप लगाए हुए थे। सभी के सभी एक जैसे ही यूनिफॉर्म में थे। हाथों में गन लिए वे इस कदर मुस्तैद थे कि जैसे किसी भी पल किसी को भी शूट कर देने के लिए तैयार हो। 


और उसी तहखाने में एक टेबल पर लेटी हुई थी एलिना की निर्वस्त्र लाश। सामने ही सफ़ेद एप्रन में दो डॉक्टर और शायद दो या तीन काबिल नर्स भी थी, मौत के गले लग चुकी एलिना के मरे हुए जिस्म के साथ चिर फाड़ कर रहे थे ये सभी। सबके मुँह पर सेफ्टी मास्क लगा हुआ था। लेकिन डॉक्टर गोयंका उन सभी में नहीं थे।


एक एक कर एलिना के मुर्दे जिस्म से उसके सारे अंगों को निकाल कर और फिर उसके टुकड़ों को तहख़ाने के ही अंदर बने एक बड़े से टँकी में डाल दिया जा रहा था। वो कोई मामूली टँकी नहीं थी, वो तेजाब ( एसिड ) से भरी हुई थी, पूरी तरह ।

उस तेजाब से भरी टँकी में गिरते ही एलिना के जिस्म के साथ साथ उसकी हड्डियां भी तेजाब में ही घुल सी गईं। ऐसा लग रहा था जैसे एलिना जैसी कोई इंसान थी ही नहीं कभी। 


डॉक्टर गोयंका के मन में कई सारे सवाल उधम मचा रहे थे, "आखिर एलिना की इतनी बेरहमी से कौन कत्ल कर गया? हॉस्पिटल के तमाम सुरक्षाओं के वाबजुद इतना बड़ा जुर्म आख़िर हुआ कैसे...? क्या एलिना की मौत महज़ एक सवाल बनकर ही रह जायेगी...? वग़ैरह वग़ैरह!!!


डॉक्टर गोयंका का पहला शक बेड पर पड़े उस याददाश्त गंवा चुके मरीज पर ही गया था, मगर उसके निर्दोष होने की पुष्टि स्वयं उनका अपना डॉक्टरी अनुभव कर रहा था।

आखिर अभी भी वो अस्पताल के उस बेड पर बेसुध ही पड़ा था, और एक इंसान जो अपनी याददाश्त भुला चूका हो, वो भला किसी का खून क्यों करेगा ?


मायरा के साथ वो अभी उसी मरीज के विषय पर बात कर रहे थे...लेकिन किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहे थे। मायरा और नंदिता इस हॉस्पिटल की ऐसी काबिल नर्से थी, जो इसी हॉस्पिटल परिसर में बने नर्स होस्टल में रहती थी। और किसी भी वक़्त हॉस्पिटल की जरूरत पर मौजूद होती थी। हालांकि शायद हॉस्पिटल के ऐसे कई सारे राज थे जो अब तक इन दोनों के ही नजरों से ओझल ही थे।


बड़े ही ठंडे शब्दों से डॉक्टर गोयंका ने मायरा से पूछा..."क्या उसे होश आया"? 

मायरा :- "यस डॉक्टर वो होश में आ चुका है,...लेकिन बहुत घबराया हुआ है, और बार बार पूछ रहा है कि मैं कौन हूँ..."? मायरा ने नपे तुले शब्दों में अपना उत्तर दिया। 

"चलो चल के देखते हैं"....!! मेरे ख्याल से उसे सही इलाज की जरूरत है। फिर उन्होंने मायरा को लेकर मरीज के वार्ड की तरफ अपना रुख मोड़ लिया। 


डॉक्टर को देखते ही उस युवक की आंखों में चमक आ गई। डॉक्टर गोयंका उसके कमरे में प्रवेश करते ही पूछे थे..."हेलो यंग मैन!!कैसा महसूस कर रहे हो अभी ?? कुछ याद आया अपने बारे में"??


ये सुनते ही युवक के चेहरे में एक मायूसी सी छा गई.... और आंखें मानो शून्य में टिक गईं।


उसने डॉक्टर से पूछा...."डॉक्टर साहब क्या मेरी याददाश्त कभी वापस नहीं आएगी ?? ये इतना बड़ा हॉस्पिटल, आप सब इतने बड़े बड़े डॉक्टर, आप लोग कुछ करते क्यूँ नहीं, मैं क्यों कुछ भी याद नहीं कर पा रहा, मुझे क्यों कुछ भी याद नहीं आ रहा?? आखिर मेरे दिमाग़ के किस नस में चोट लगी है, जिसका पता आप भी नहीं लगा पा रहे"? ये कहते कहते वो युवक अपना सिर बेड के उस पुश्त से टकराने लगा, और फिर जब तक डॉक्टर गोयंका या वो नर्स मायरा उसको संभाल पाते, वो बेहोश हो चुका था, फ़िर एक बार। पर इस बार उसे कोई दवा नहीं दी गयी थी। 


मायरा ने कहा- "डॉक्टर ये तो बहुत ही अजीबोगरीब केस है, इसके लिए तो हमें किसी मनोचिकित्सक की ही मदद लेनी चाहिए। जो इस मरीज के हाव भाव भी आसानी से पढ़ सकें"। 


डॉक्टर गोयंका ने कहा "मायरा सही कह रही हो तुम, इसने तो सच में उलझन में डाल दिया है। "


फिर मायरा ने उस बेहोश पड़े युवक को उसके बेड में अच्छे से सुला दिया....डॉक्टर गोयंका पहले ही वहां से जा चूके थे। 


ट्रिंग.. ट्रिंग.. ट्रिंग.. ट्रिंग..ट्रिंग.. ट्रिंग...!! टेलीफ़ोन के इस छट्ठे रिंग के साथ ही डॉक्टर डेनियल ने रिसीवर को उठाया।

...हेलो!!...

:- "डॉक्टर डेनियल,मैं डॉक्टर गोयंका बोल रहा हूँ"। 


दूसरी तरफ से :- "हेलो...!!गोयंका साहब, कहिए कैसे याद किया आपने मुझे, सब खैरियत तो है" ?


"सब ठीक ही है डेनियल, मेरे पास तुम्हारे लिए एक बहुत ही दिलचस्प केस है ,क्या तुम इसी समय यहां आ सकते हो" ?? एक ठंडी आह भरते हुए डॉक्टर गोयंका एक ही सांस में कह गए थे अपनी बात। 


डेनियल :- "क्या केस है.."??


डॉक्टर गोयंका :- "विस्तार से फोन पर तो नहीं बता सकता, क्योंकि कहानी जरा लंबी है, हां इतना कह सकता हूँ, एक मरीज है जिसे शायद तुम्हारी जरूरत है, अपनी याददाश्त गंवा चुके इस मरीज के लिए ही तुम्हें फोन किया है, बाकी की बात तुम्हें तभी बताऊंगा जब तुम मेरे टेबल के सामने कुर्सी पर बैठे होंगे"।


डेनियल :- "अभी इस वक़्त वह मरीज किस अवस्था मे है"?


"फिलहाल तो बेहोश है, लेकिन जैसे ही होश में आएगा फिर से अपनी पहचान पूछेगा, और फिर जवाब न पाकर किसी चीज से अपना सर टकराएगा"। डॉक्टर गोयंका ने बड़े ही चिंतित स्वर में उत्तर दिया। 


"केस वाकई दिलचस्प मालूम पड़ता है, गोयंका साहब....मैं आ रहा हूँ।" इतना कह कर डॉक्टर डेनियल ने रिसीवर रख दिया।


जब डॉक्टर गोयंका फोन पर बात कर रहे थे उसी दरम्यान मायरा भी उनके केबिन में आ चुकी थी।

अब डॉक्टर गोयंका...मायरा से मुखातिब होते हुए बोले, थोड़ी ही देर में डॉक्टर डेनियल डिसूज़ा आएंगे, आप रिशेप्शन गर्ल को इत्तला कर दीजिए,जैसे ही वे आएं, तो उन्हें यहां मेरे ऑफिस में भेज दिया जाये। 


"यस डॉक्टर"....कहते हुए मायरा ने टेलीफ़ोन का रिसीवर अपनी तरफ खींच लिया और कुछ ही पलों बाद वो खूबसूरत और हसीन रिशेप्शनिस्ट लिसा से बात कर रही थीं। 


डॉक्टर डेनियल जैसे ही डॉक्टर गोयंका के केबिन में दाखिल हुए ,डॉक्टर गोयंका ने बड़े ही गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत किया..।


डॉक्टर डेनियल एक 47-48 वर्षीय बड़े ही आकर्षक व्यक्तित्व वाले इंसान थे। गोरा रंग, भूरे बाल, और भूरी आंखे उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व को और भी निखारती थी। पर गोल मटोल चेहरे पर उनके पकौड़े जैसे नाक की वजह से बहुत सारे मरीज़ उन्हें देखते ही डर जाते थे। 


दोनो में औपचारिक बातें होने के बाद ,डॉक्टर डेनियल ने पूछा, 'कहाँ है इस वक्त मेरा दिलचस्प मरीज़" ??


डॉक्टर गोयंका :- "अभी तो वो अपने वार्ड में ही है, पर माफ करना अभी वो मेरा है",...!! हाहाहाहा....इतना कहते ही दोनों की ही मिश्रित खिलखिलाहट उस केबिन में गूंज उठी। "आओ चलें... उससे तुम्हे मिलवाता हूँ"। 

इतना कहते ही दोनों उस वार्ड की तरफ बढ़ गए जिसमें वो मरीज था।


पांच मिनट बाद ही दो नर्स और डॉक्टर गोयंका के साथ डॉक्टर डेनियल उस कमरे में दाखिल हुए। 

बिस्तर पर अधलेटे अवस्था मे पड़ा वह युवक इस वक़्त शांत था...पर होश में आ चुका था। उन सबको कमरे में प्रवेश करता देख वो सीधा होकर बैठ गया। उसके चेहरे पर उलझन, हैरत और पश्चाताप में सयुंक्त भाव थे। 


वह इस वक़्त बहुत ही मासूम और आकर्षक लग रहा था। उसके करीब पहुंचते ही डॉक्टर डेनियल ने उससे कहा..."हेलो मिस्टर"...!

"हेलो"... उस युवक ने फंसी सी आवाज़ में कहा।


डॉक्टर डेनियल ने उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा... "मेरा नाम डेनियल है...! डॉक्टर डेनियल डिसूज़ा" !!


अवाक सा वो मरीज़, उनसे हाथ तो मिला लिया, लेकिन उसके हाव भाव ऐसे थे मानो वो वहां हो ही नहीं। 


डॉक्टर ने बड़े ही प्यार से पूछा, "तुमने अपना नाम नहीं बताया??"


"म...म...मुझे....!! अपना नाम नहीं पता है। बड़े ही मासूमियत से लगभग हकलाते हुए जवाब दिया था उसने। 


डॉक्टर डेनियल :- क्यों...? क्यों तुम्हें अपना नाम नहीं पता है, कितनी अजीब बात है ये। 

"ये लोग कहते हैं मेरा एक्सीडेंट हो गया था....तबसे मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है।" उसने डॉक्टर गोयंका और दोनों नर्स नंदिता और मायरा की तरफ अजीब नज़रों से घूरते हुए कहा था ये।

फ़िर अचानक उसने कहा..."मगर वो नर्स कहाँ गई, जिसने मुझे कल रात को इंजेक्शन लगाया था? 

ये सवाल उसने डॉक्टर गोयंका के आँखों में आंखें डालकर पूछा था। ....इस सवाल से एक बार तो छक्के ही छूट गए  

थे डॉक्टर धीरज गोयंका के, पसीने से तरबतर हो गए। और फिर बड़े ही बौखलाते हुए उन्होंने कहा था..."उसकी नाइट शिफ़्ट खत्म हो गई, इसीलिए वो अपने घर चली गई, पर तुम्हें इस से क्या ? पहले ख़ुद के विषय में याद करने की कोशिश करो बाद में दूसरों को याद करना।" 


पर जल्द ही उन्हें ये अहसास हुआ कि उन्होंने कुछ ग़लत किया एक बीमार पेशेंट से इस लहज़े में बात करना किसी काबिल डॉक्टर पर शोभा नहीं देता। बड़ी चालाकी से उन्होंने बात को संभालते हुए कहा था। "हम...हम लोग हैं न यहाँ तुम्हारे इलाज के लिए.., तुम परेशान क्यों होते हो!! पर अपनी इस बौखलाहट को वे डॉक्टर डेनियल के तेज़ नज़रों से छुपा न सके थे। 


डॉक्टर डेनियल एक मंजे हुए जाने माने मनोचिकित्सक थे, मन के भावों को पढ़ना ही सीखा था उन्होंने !! अपने जीवन के बीस वर्ष उन्होंने भारतीय फ़ौज को दिया था। घायल सैनिकों का इलाज़ करते थे वो, साथ ही साथ सैनिकों के भीतर देश के लिये लड़ने की ख़ातिर जबरदस्त उत्साह भी बढ़ाते रहते थे। किसी का भी हृदय परिवर्तन करवा दें उनके बातों में इतनी क्षमता होती थी। सैनिक दलों के साथ वे भी देश के कोनों कोनों में कैम्प पर जाते थे, और हर पल जीवन को दांव में लगाकर बुरे से बुरे हालत में आये सैनिकों का इलाज़ करते और उन्हें दोबारा लड़ने के लिए प्रोत्साहित करते। शायद इसी माहौल में अधिकतर वक़्त बिताने के वजह से ही किसी भी चीज़ को एक दूसरे ही नज़रिए से देखने की उनके भीतर गज़ब की शक्ति थी। 


डॉक्टर डेनियल ने इसके बाद उस से ( मरीज़ से ) कुरेद कुरेद कर बहुत सारे सवाल किए लेकिन, हर सवाल का उसके पास बहुत ही मासूमियत भरा जवाब होता था..."डॉक्टर मुझे कुछ भी याद नहीं"। 

डॉक्टर ने जब बहुत जोर देकर पूछा ,याद करो तुम कहाँ से आ रहे थे, कहाँ जाने के लिए निकले थे? 

इस पर उसने अपने दोनो हाथों से चेहरे को ढाँप लिया और लगभग चीखते हुए बोला..."डॉक्टर काश मैं आपको बता पाता मैं कौन हूँ, इस सवाल का जवाब आपसे ज्यादा मेरे लिए जरूरी है, लेकिन अफसोस मुझे कुछ भी याद नहीं।"


इसके बाद डॉक्टर डेनियल ने मुस्कुराते हुए उस युवक से विदा लिया और कहा..."कोई बात नही माय बॉय,मैं शाम को फिर आऊंगा"...तुमसे मिलने"....। और फिर वो नंदिता और मायरा को उसका ख्याल रखने की हिदायत देते हुए उन्होंने डॉक्टर गोयंका से कहा, "चलें गोयंका साहब ?"


पर डॉक्टर गोयंका तो एलिना के विभत्स लाश के सपने में खोए थे। ना जाने कौन सी चिंता उन्हें खाए जा रही थी!!...दो तीन बार आवाज़ देने पर भी जब डॉक्टर गोयंका नही सुने तो ,डॉक्टर डेनियल ने उनके कंधे को पकड़ते हुए कहा..."कहां खो गए गोयंका साहब"..?,तब उन्हें यह भान हुआ कि वो किसी सोच में इतने डूब गए थे, कि वास्तविकता का उनको ध्यान ही न रहा। पर उनकी इन हरकतों को डॉक्टर डेनियल बिल्कुल भी नजरंदाज नहीं कर रहे थे। उनके मन में शक के कीड़े गिज़गीज़ाने लगे थे....पर प्रत्यक्ष रुप से वे बिल्कुल सामान्य थे....।


अस्पताल की रिशेप्शनिस्ट यानी लिसा विलियम जो कि गोरी चिट्टी एक चौबीस वर्षीय नौजवान लड़की थी...लम्बा पतला चेहरा, लंबी नाक, बड़ी बड़ी आंखे, पतले होंठ , पुष्ट उरोज, और उसके बाद पतली कमर...कुल मिलाकर वो एक ऐसी जवान लड़की थी, जिसके अंदर किसी को भी अपने रूप के जाल में सम्मोहित कर लेने की ताकत थी। उसकी माँ भारतीय थी लेकिन पिता रूसी। इसलिए उसके जिस्म और रंगत में दोनो देशों की झलक मिलती थी। 

फिलहाल वो कोलकाता के उत्तरपाड़ा में ही कहीं अपनी माँ के साथ रहती थी, और पिछले 9 महीनों से इस हॉस्पिटल में रिशेप्शनिस्ट के तौर पर 20000 की मोटी तनख्वाह पर जॉब कर रही थी। 


शाम के तकरीबन सात बजे थे। नौ घँटे की ड्यूटी के बाद लिसा शाम के छः बजे ही अपने घर चली जाती है...लेकिन नाईट शिफ्टिंग में आने वाली अलका का अभी तक कोई पता नहीं था, इसीलिए वो अब तक अस्पताल में ही थी, और बड़े ही बेचैनी से अलका को बार बार फोन लगा रही थी। लेकिन उसका फोन है कि हर बार नॉट रिचिवल ही मिल रहा था। 


इधर डॉक्टर गोयंका और डॉक्टर डेनियल उस मरीज के कमरे में उस से पूछताछ कर रहे थे ,उसकी जिंदगी के बारे में जिससे कि उसके विषय मे कुछ भी जाना जा सके लेकिन वो लड़का हर बार अपने मासूम से चेहरे से यही जवाब देता..."डॉक्टर मुझे कुछ भी याद नहीं आ रहा....उफ़्फ़ अब मैं पागल हो जाऊंगा"।

अभी डॉक्टर डेनियल उससे अगला सवाल करने ही वाले थे कि ,दरवाजे पर एक दस्तक हुई।


मायरा ने जाकर दरवाजा खोला, तो सामने लिसा खड़ी थी। 

मायरा ने उसे देखते ही पूछा...."अरे लिसा तुम यहाँ ?? वो भी इस वक़्त ?

तुम तो छः बजे ही चली जाती हो न ,फिर अभी तक यहां क्या कर रही" ??


लिसा ने अंदर आते हुए बताया :- "मेम वो अलका आज अभी तक आई नहीं, और उसका कॉल भी नही लग रहा...तो मैं डॉक्टर के ऑफिस में ही गई थी ये बताने के लिए, लेकिन वहां वार्ड बॉय से पता चला आप लोग इधर हो तो मैं आ गई ये पूछने की...!! सर क्या आज की नाइट ड्यूटी मैं कर लूं?? 

कल की मॉर्निंग शिफ़्ट अलका सम्भाल लेगी। 


हॉस्पिटल के दिनचर्या में हुए इस मामूली से बदलाव से भला किसी को क्या फ़र्क पड़ता। डॉक्टर गोयंका ने सर को हाँ की दिशा में हिलाते हुए लिसा को नाईट में रुकने की इजाजत दे दी। और लिसा मुस्कुराते हुए फ़िर से रिसेप्शन काउंटर की तरफ़ चली गयी। उसे कहाँ अंदाज़ा था, उस कमरे से बाहर आने के दौरान उसके पीठ को उसके स्कर्ट के निचले हिस्सों से झांकते उसके गोरे जांघों को, कमर और कमर के निचले हिस्से को, जिस्म के हर अंग से टप टप टपकती उसके सुंदरता को कोई बुरी तरह घूर रहा था। कोई था जो आज की रात अपने अगले शिकार को खा जाने वाली ललचाई नजरों से एकटक निहार रहा था। पर कौन...?

कौन था जो सिर्फ़ लड़कियों पर ही नजऱ रखता है...? और सबसे बड़ा सवाल आख़िर मिस्टर रब्बानी अथार्थ बॉस कौन से महापुरुष थे जिन्होंने इतनी आसानी से एलिना के मौत को छुपा दिया। आख़िर इस हॉस्पिटल के ऐसे कौन से राज थे जिसे छुपाने के ख़ातिर ही इतने बड़े हादसे के बाद भी पुलिस को बुलाना उचित नहीं माना गया...? 

            

                          क्रमशः


नमस्कार मित्रों...

कहानी के पहले भाग को अपना समय और इतना प्यार देने के लिए आप सभी का हृदय की गहराइयों से आभार। कहानी के इस भाग को भी आप सभी से प्यार पाने की लालसा है, और कुछ बेहतरीन सुझाव भी ताकि मैं कहानी को और बेहतर बना पाउँ। 


   


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