कड़वी सच्चाई

कड़वी सच्चाई

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अनिल ऑफिस से घर आया तो देखा गली में लोगों की भीड़ लगी थी। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लोग झुंड बनाकर खड़े थे। धीमे धीमे स्वर में होने वाली बातचीत संयुक्त रूप से पर्याप्त ऊंची थी जिसे शोर तो नहीं पर आवाजें कहा जा सके। इन आवाजों में एक खौफ ,एक अफसोस था और था तनिक सा दुख जिसे महसूस कर अनिल सिहर गया। लोगों के झुंड लगभग हर घर के सामने थे जिससे यह तो पता चल रहा था कि कोई अनहोनी हुई है लेकिन किसके साथ किसके घर हुई है वह यह नहीं जान पा रहा था। वह धीरे-धीरे लोगों के चेहरे पढ़ने की कोशिश करते आगे बढ़ रहा था लेकिन गली में कई बार देखे उन अजनबी चेहरों से कुछ पढ़ नहीं पा रहा था। गली के मुहाने से अब वह काफी अंदर आ चुका था उसकी चाल आसपास खड़े लोगों को देखते काफी धीमी और अटपटी थी लेकिन वह अभी तक वस्तु स्थिति से अनभिज्ञ था। 

उसके घर के बाहर ओटले पर चार पांच औरतों का जमावड़ा था जिनमें से एक उसकी पत्नी थी जो उसे देखकर तुरंत अंदर चली गई। बाकी औरतें भी थोड़ी देर चुप होकर उसके ओटले से थोड़ी दूर जाकर खड़ी हो गईं। अनिल अंदर पहुंचा जूते उतारकर पलंग पर बैठा कि पत्नी ने उसे पानी का गिलास थमाया। उसकी आंखों में उमड़ा प्रश्न मुखर था या पत्नी की उसे सब बताने की इच्छा ज्यादा प्रबल थी पता नहीं लेकिन वह गिलास का पानी खत्म होने का इंतजार न कर सकी। "मोहिनी भाभी के सुमित ने आत्महत्या कर ली"। यह खबर वज्रपात सी आई थी और पानी का आखरी घूंट उसके गले में अटक गया। जोर का ठसका लगा था उसे और मुँह से पानी खांसी के साथ फव्वारा बन बाहर आ गया। उसकी आँखें आश्चर्य से फैल गई जो यह जानकर भय से भर गईं कि 12वीं में फेल होने और कहीं कोई काम न मिलने के बाद से वह बहुत उदास था। घंटों कमरे में अकेला बैठा रहता था और आज सुबह वह कहीं बाहर गया था। वहाँ से आकर खुद को कमरे में बंद कर लिया और फंदा गले में डालकर पंखे से लटक गया। 

अनिल के भीतर बैचेनी फैल गई जिसे पत्नी से छुपाने और धोनी के लिए वह बाथरूम में घुस गया। सुमित ने आत्महत्या कर ली वह फंदे से लटक गया शब्द उसके दिमाग पर हथौड़े से पड़ रहे थे। उसने चेहरे पर पानी के कई छपाके मारे उसकी सांस अभी भी संयत नहीं हुई थी। वह देर तक दोनों हथेलियों में तौलिया लिए गाल थामें खड़ा रहा। वह खुद को उस बात से परे होने का विश्वास दिलाना चाहता था जो खबर सुनते ही उसके दिमाग में कौंधी थी और जिस ने उसे भयभीत कर दिया था। 

बाथरूम के बाहर से पत्नी की आवाज आ रही थी जिसे शायद वह देर तक सुन नहीं पाया था इसलिए अब दरवाजा पीट कर वह उसे पुकार रही थी। उसने जल्दी से तौलिये से सिर मुँह पोंछा और खुद को संयत सा दिखाता बाहर आ गया। चाय का कप थामें भी वह सोच में गुम रहा और फिर एक घूंट में उसे खत्म कर पैरों में चप्पल डालकर अभी आया कहते वह घर के बाहर आ गया। पड़ोसी हरिहर भाई को देख कर कुछ देर उनके पास रुक कर उसने तफसील से पूरी जानकारी ली जिसमें मोहिनी भाभी द्वारा सबसे पहले लाश को देखने उसे नीचे उतारने में सब पड़ोसियों का सहयोग पुलिस को खबर देने और पोस्टमार्टम होने के बाद अंतिम संस्कार होने की खबर शामिल थी। हरिहर भाई से विदा लेकर अनिल गली के बाहर निकल गया। बाहर चाय की दुकान पर खासी भीड़ थी वह वहाँ से आगे बढ़ सड़क पार कर उजाड़ पार्क में जाकर बैठ गया। वह लगभग स्तब्ध था दिमाग में सिर्फ एक ही बात गूंज रही थी सुमित ने आत्महत्या कर ली आज सुबह वह बाहर गया था। आज सुबह वह बाहर गया था इस बात ने उसे आत्महत्या की खबर से ज्यादा विचलित किया था।

अनिल के दिमाग में पिछले दिन की स्मृति कौंध गई। फर्स्ट क्लास से एमकॉम पास प्राइवेट ऑफिस में क्लर्क अनिल काम की अधिकता मेहनत के अनुरूप तनख्वाह न मिलने और मालिक के अपमानित करने वाले रवैए से झुंझलाया हुआ था। कल फिर उसे एक छोटी सी बात पर बुरी तरह झिड़का गया था और उस अपमान को वह रात भर हजम करने की कोशिश में करवटें बदलता रहा था। आज सुबह उसका ऑफिस जाने का मन कतई नहीं था लेकिन यह नौकरी उसकी मजबूरी थी और दूसरी नौकरी मिलना आसान भी नहीं था। 

घर से निकलकर वह नुक्कड़ की चाय की दुकान पर रुक गया था। बस यूँ ही चाय पीकर ऑफिस जाने की हिम्मत बटोरने तभी सुमित वहाँ आया था और बेंच पर उसके बगल में बैठ गया था। अनिल ने उसकी अनदेखी कर उपेक्षा ही कर दी थी लेकिन सुमित ने उससे पूछा "अनिल भाई मुझे कहीं नौकरी मिल जाएगी क्या? कोई भी छोटी-मोटी नौकरी चलेगी कहीं पियून या ऑफिस बॉय या फिर कुछ और।" 

अनिल में घूर कर सुमित को देखा था कहांँ तक पढ़े हो तुम उस ने तल्खी से पूछा था। सकुचाया था सुमित जवाब देते फिर धीरे से बोला "भैया बारहवीं में फेल हो गया हूँ इस साल पढ़ाई मेरे बस की नहीं है इसलिए सोच रहा हूँ कोई काम ही शुरु कर लूँ कोई छोटी-मोटी नौकरी।" उसकी बात पूरी होने से पहले ही अनिल ने लगभग चिढ़ते हुए कहा था "शहर में लाखों m.a. b.a. पास टल्ले खाते घूम रहे हैं उन्हें चपरासी की नौकरी भी नहीं मिल रही तुम्हें 12वीं फेल को कौन नौकरी देगा?" 

सुमित का चेहरा उतर गया उसे देखकर अनिल को अनोखा सा सुख मिला था। एक दिन पहले हुए अपमान की जलन सुमित का उतरा चेहरा देखकर कुछ कम सी होती महसूस हुई। शायद नौकरी लगने के बाद पहली बार उसने किसी से ऐसी तल्खी से बात की थी वरना तो वह हमेशा दूसरों की झिड़कियाँ ही सुनता रहा था। अनिल ने चाय की दुकान पर काम करते 12 साल के उस लड़के की ओर इशारा करके कहा था "इसे देख रहा है इसने कभी स्कूल का मुँह भी नहीं देखा होगा इसलिए इसे यहाँ गिलास धोने का काम मिल गया। तू तो 11वीं तक पढ़ गया है अब तो तू इस काम के लायक भी नहीं रहा। पढ़ाई न करता तो शायद तसले ईट धोने के काम का रह पाता।" ज्यों-ज्यों अनिल बोलता गया त्यों त्यों सुमित का चेहरा निराशा और अपमान से काला पड़ता गया और अनिल एक सुकून सा महसूस करता रहा। 

इस देश में या तो अनपढ़ों के लिए काम है या खूब पढ़े लिखे अंग्रेजी में गिटपिट करने वालों के लिए।" तुझ जैसे" दरअसल अनिल कहना चाहता था हम जैसे लेकिन अपने अपमान की आग बुझाने के सुख में उसने आधा सच ही कहा। "तुझे जैसे अध पढे लोगों के लिए इस देश में न कोई काम है और न सम्मान। ऐसे लोग सिर्फ दुत्कारे जाते हैं घर में भी बाहर भी।" अनिल ने चाय का खाली गिलास रखा पैसे दिए और कनखियों से सुमित के उतरे चेहरे को देखते सुकून की साँस लेते ऑफिस के लिए चल पड़ा। 

उसके बाद ही सुमित ने घर जाकर आत्महत्या कर ली। उसने आत्महत्या नहीं की मैंने उसे उकसाया मैंने उसकी हत्या की। बेचैनी से अनिल के माथे पर पसीना छलछला गया। वह उठ खड़ा हुआ उसका अपराध बोध उसे धिक्कारने लगा। वह फिर बेंच पर बैठ गया। नहीं नहीं मैंने सुमित से ऐसा कुछ नहीं कहा मैंने तो उसे सिर्फ सच्चाई बताई कड़वी सच्चाई। उसने खुद को समझाया। 

मोबाइल की घंटी ने उसकी तंद्रा भंग की। पत्नी का फोन था वह चिंतित थी अनिल को घर जाना था पर वह अभी भी निश्चित नहीं कर पाया था क्या वह हत्यारा है?


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