कच्चे धागे
कच्चे धागे
आज बरसों बाद श्याम से आमना सामना हुआ। बातें भी हुई पर अधूरी सी।
घर आकर सोच में डूब गयी जब पति के न रहने पर सबने किनारा कर लिया उस समय श्याम जो मेरा सहपाठी था, प्यार से मुझे दीदी कहता था। उसने हर तरह से साथ दिया। छोटे से बच्चे के साथ जीवन बहुत कठिन था। लोग साथ नहीं देते पर अफवाहों को हवा देने में पीछे नहीं रहते।
मेरी बदनामी न हो उसने मुझसे दूरी बना ली पर अप्रत्यक्ष रूप से उसने धागे रूपी राखी की लाज रखी जो मैंने कभी उसे बाँधी थी। उसने साबित कर दिया कि रिश्ता सच्चा हो तो निभाने के तरीके बहुत है। सोच से उबरी तो तुरंत अपने आप ही कदम फोन की तरफ बढ़ गए। उस भाई को धन्यवाद कहने के लिए जिससे रिश्ता कच्चे धागों में बंधा सचमुच सच्चा था।