Khemi Garg

Inspirational

4.5  

Khemi Garg

Inspirational

जंगल में बिताए दिन

जंगल में बिताए दिन

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मैं कुबेर और मेरे चार दोस्त हम सभी अपने मित्र मंडल में पांडवों के नाम से प्रसिद्ध हैं।

हम सभी का मुख्य शौक है जंगलों की सैर और जंगली जीव-जंतुओं की तस्वीरें लेना ।

मैं अपने विडियो कैमरे के साथ जब भी जानवरों के बीच जाता हूॅं, अपने आपको एक नई दुनिया में ही पाता हूॅं।

मेरे चार मित्र.. कृष, रितेश, नमन और कबीर। पांडवों की तरह हम भाई तो नहीं हैं, पर हमारा याराना बहुत पक्का है।

हम सभी एक ही व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।

हम सभी अक्सर जंगल में ही अपना समय व्यतीत करते हैं।

हम डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाते हैं, और उसे किसी भी सोशल मीडिया चैनल पर डाल कर अपनी आजीविका चलाते हैं।

आम माता-पिता की तरह हमारे माता-पिता भी हमें भेड़ चाल में शामिल होने के लिए कहते-कहते थक गए।

परन्तु हम पॉंचों ने स्कूल समाप्त होते ही एक साथ तय लिया था कि हम वाइल्डलाइफ फिल्में बनाएंगे, बस तभी से अपनी टीम बनाकर फिल्म बनाने लगे।

कॉलेज खत्म करते ही विधि-विधान से इस कार्य में तन, मन, धन से जुड़ गए।

आज भी हम पॉंचों अपने कारवां वैन में सभी सामान के साथ जंगल निकल चुके हैं।

हम सभी में सबसे चुलबुला है, कबीर उसकी बातें कभी खत्म ही नहीं होतीं।

वैन में बैठते ही शुरू हो गया उसका प्रोग्राम

"आइ एम सो एक्साइटेड फ़ॉर दिस ट्रिप यार, इस बार इतने ज्यादा दिनों तक हम सभी सिर्फ जंगल में ही रहेंगे।"

"इसमें नया क्या है?" रितेश बोला।

"अरे इस बार होगा कुबेर का डांस...हाहाहा।"कबीर ने हॅंसते हुए कहा

कुबेर चिढ़ते हुए "मैं क्या नाचने वाला लगता हूॅं? मैं केवल अपने गिटार से प्यार करता हूॅंं।"

"हॉं मैं वाइल्डलाइफ विडियोग्राफर के साथ ही गिटार बजाने का भी शौकीन हूॅं, और अपने इस गिटार प्रेम से अपने आपको दूसरी ही दुनिया में पाता हूॅं।"

हम सभी जंगल पहुंच गए।

सभी लम्बे सफ़र से थक गए थे तो अपनी वैन में ही सो गए।

जब हमने यह काम शुरू किया था, जंगल की रातें...उफ़ !! बड़ी ही डरावनी हुआ करतीं थीं। पर अब तो आदत हो गई है।

हम इस बार मध्यप्रदेश के वनों में ही अपनी फिल्म बनाने वाले हैं, और इसकी अनुमति हमने वन विभाग से ली है।

इस बार हम इस जंगल में करीब आठ माह तक रहने वाले हैं। 

बात यह है कि हम हिरणों के प्रजनन पर फिल्म के बनाने वाले हैं।

मादा हिरण अपने गर्भधारण के 150 से 240 दिनों में कभी भी शावक को जन्म देती है। और हम हिरण के प्रजननकाल की इसी प्रक्रिया को हर दिन अपनी फिल्म में शामिल करना चाहते हैं।

रितेश हम सभी को निर्देशित करता है, कृष संपादन करता है, कबीर और नमन स्टिल फोटोग्राफर हैं।

मैं सुबह बहुत जल्दी ही उठ जाता हूँ।

जंगल बहुत घना है, पर हमने खुले स्थान पर अपनी वैन खड़ी की है ।

यहॉं से हमें हिरणों की दिनचर्या आसानी से दिखाई दे सकती है।

हम प्रकृति प्रेमी हैं ,तो हमने वैन के सामने ही जंगल के सुरक्षित भाग में अपने रहने के लिए टेंट भी लगा लिए हैं।

हमारी वैन के सामने ही बहुत घना बरगद का वृक्ष है बस वहीं उसके नीचे बैठकर मैं गिटार बजाने लगा।

पास में ही नदी है, और चारो ओर वृक्ष ही वृक्ष। वृक्षों से मुझे बहुत प्यार है।

मैं जानता हूॅं, वृक्ष आपस में एक दूसरे से मूक संदेशों के माध्यम से बातें करते हैं।

हम सभी दोपहर से रात तक अपना काम करते पर सुबह मैं और मेरे गिटार के लिए ही होती है।

ऐसे ही एक सुबह जब मैंने बरगद के नीचे बैठकर अपना गिटार बजाना शुरू किया तो मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे मेरे गिटार की धुन के साथ एक और मधुर धुन भी सुनाई दे रही है।

मैंने चारों ओर देखा मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दिया। मैंने जैसे ही गिटार बजाना बंद किया वह धुन भी बंद हो गई।

गिटार बजाते-बजाते मैं इतना खो गया था कि लगा जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया में पहुॅंच गया हूँ।

परन्तु जब धूप की किरणें मेरे माथे को छूने लगीं, तब समझ आया कि यह भोर का समय है। और तब मैंने अपना गिटार बजाना फिर से शुरू कर दिया। फिर मेरी धुन के साथ ही एक और धुन मुझे सुनाई देने लगी।

मैं परेशान सा कबीर पर चिल्लाने लगा "क्या जरूरत है मेरे गिटार के साथ अपनी तान मिलाने की।"

वह चारों बात समझने की कोशिश में एक दूसरे की ओर असमंजस से देखने लगे और कबीर के चेहरे पर नज़र टिका कर बोले "ये क्या कह रहा है कुबेर?"

कबीर बोला "मुझे क्या पता? मैं कोई अंतर्यामी तो हूॅं नहीं कि भ्राताश्री के मन की बात समझ जाऊंगा।"

मैंने कहा "तुम मुॅंह से सीटी नहीं बजा रहे थे?"

कबीर बोला "बिल्कुल भी नहीं भ्राताश्री!"

मैं और भड़क गया यह क्या भ्राताश्री, भ्राताश्री लगा रखा है सीधे-सीधे नाम नहीं ले सकता क्या??"

"जो आज्ञा कुबेर जी" कबीर ने अपने ही अंदाज़ में कहा और सब हॅंस दिये।

मैं भी असमंजस में खड़ा इस तरह के अनुभव को महसूस करने लगा, जब कुछ समझ नहीं आया तो तैयार होने वैन में चला गया।

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उधर वह बरगद का वृक्ष गिटार को सुनकर मन ही मन इतना प्रसन्न हो रहा था कि उसने अपनी जड़ों के माध्यम से अपने साथी वृक्षों को संदेश भेजा, "इस बार यह जो मानव समूह इस जंगल में आया है, उसने मेरा दिल जीत लिया है।

इस वीराने में जहॉं हम चुपचाप खड़े-खड़े सूनापन सहन करते रहते हैं, वहॉं इस बार कुबेर और उसके साथियों के आने से बहुत रौनक आ गई है।"

दूसरे वृक्ष बोले "आप तो बहुत खुश किस्मत हैं दादा जो कुबेर ने गिटार बजाने के लिए आपका सहारा लिया।

गिटार की मधुर धुन से आपकी जड़ों में जो कंपन होता है, वह हम सब को भी आनंदित कर देता है।

वैसे दादा आपको विश्वास है न यह मानव दल हमें कोई नुक्सान नहीं पहुॅंचाएंगे।"

बरगद बोला "इतने सालों से यहॉं खड़ा हूॅं इतना तो समझ ही गया हूॅं कि यह बच्चे कुछ अच्छे उद्देश्य से ही इस अरण्य में आएं हैं।"

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जब हम शाम लौट कर आये तो देखा जिस बरगद के नीचे बैठ कर मैं गिटार बजा रहा था उसकी डालियॉं एक दम शांत और उदास सी हैं।

यह मुझे इसलिए महसूस हुआ कि जब हम गए थे तब यह डालियॉं बहुत हिल रहीं थीं ऐसा लग रहा था, जैसे बहुत खुश हों।

पर अब सभी एक दम शांत थीं।

यह सिलसिला ही बन गया मैं जब तक गिटार बजाता तब तक चारों ओर हॅंसता खिलखिलाता सा वातावरण लगता ।

मेरी बजाने वाली धुनों पर सारे वृक्षों की पत्तियों ऐसे हिलतीं जैसे वह मेरी धुनों पर नृत्य कर रही हों साथ ही उनके ज़ोर-ज़ोर हिलने से मधुर संगीत सा उत्पन्न होता है, और ऐसा लगता जैसे कोई गीत गा रहा हो।

पर जब हम लौटते तब वहॉं बहुत शांति और उदासी रहती।

धीरे-धीरे मुझे लगने लगा कि यह सभी वृक्ष मेरे गिटार बजाने से बहुत ही प्रसन्न होते हैं, और अपनी डालियों से हमारी रक्षा करते हैं। क्योंकि एक दिन हम सभी रात को बहुत देर से लौट कर आए, बहुत थक गए थे।

तब जो कुछ भी पहले दिन का खाने पीने का सामान था वही खाने बैठे कि हमें लगा हमारी वैन के पीछे से गुर्राने की आवाज़ आ रही थीं।

हम सभी कुछ समझ पाते तभी बरगद की लम्बी लम्बी लटकने वाली जड़े जोर-जोर से हिलने लगीं, जैसे वह किसी को भगाने का प्रयास कर रही हों।

इमरजेंसी लाइट की रोशनी में हमें दो लाल बटन जैसे चमकते दिख रहे थे। फिर कुछ देर अंधेरे में अपनी ऑंखों के अभ्यस्त हो जाने पर समझ आया कि वहॉं बिल्ली मौसी के काका जी यानी बाघ महोदय खड़े हैं।

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बरगद के उस वृक्ष ने देखा कि एक बाघ जो वैन की ओट में घात लगाए खड़ा है, और हमले की तैयारी में है तो उसने फिर अपनी जड़ों के माध्यम से दूसरे वृक्षों को संदेश भेजा "सभी जोर से अपनी डालियों को हिलाओ", सभी वृक्षों ने वैसा ही किया और अचानक पेड़ों के ज़ोर से हिलने से बाघ जहॉं खड़ा था वहॉं हलचल होने लगी, बाघ घबराया।

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हमने अलाव की आग तेज़ कर दी उसकी तेज़ लपटों से वह बाघ भाग गया। हम सभी ने इस व्यवसाय को अपनाने से पहले जानवरों से बचाव का प्रशिक्षण भी लिया है। तो हमें कोई डर नहीं था।

हम सभी ने देखा कि वहॉं वृक्षों के तेज़ हिलने से ऑंधी सी आने लगी है, हमने जल्दी ही अलाव बुझा दिया ताकि आग से कोई नुकसान न हो।

बरगद ने हमारी मदद की है, यह जानकर मैं उसके पास गया, और उसकी मज़बूत शाखाओं से लिपट गया।

वह चारों भी आ गए और हम सभी उस बरगद के वृक्ष के चारों ओर घूम-घूम कर नाचने लगे।

तब ऐसा लगा कि उसकी डालियॉं एवं लटकी हुई जड़ें झुक-झुक कर हमें चूम रही हों।

सभी वृक्ष हमारी खुशी में झूम रहे थे, सारा वातावरण बहुत ही सुहावना हो गया था।

मैं बता नहीं सकता वह रात हम सभी के लिए कितनी रोमांचक रात थी।

हम हर दिन एक नए अनुभव के साथ अपने कार्यों को पूरा कर रहे थे, और इस जंगल का पूरी तरह आनंद उठा रहे थे।

हमें यहॉं रहते हुए सात माह और बीस दिन बीत रहे हैं, हमें न केवल बरगद से बल्कि अन्य वृक्षों से भी अत्यधिक लगाव हो गया है, ये भी हम सभी को जैसे पहचानने लगे हैं।

हम अपने कार्य की समाप्ति की ओर हैं ,हमारी फिल्म की शूटिंग अंतिम पर महत्वपूर्ण घटना के लिए चल रही है, हमने अब तक होने वाली प्राकृतिक घटना को ही शूट किया है।

हिरण अपने समूह के साथ पानी पी रहे थे, और गर्भवती हिरण जिनकी प्रसूति कभी भी हो सकती थी वह भी उनके साथ आईं थीं।

वह सभी पानी पी ही रहे थे कि उन सभी में हलचल होने लगी। जैसे उन्हें एहसास हो गया था कि आसपास ख़तरा है।

इतने में ही मैंने देखा बाघ नदी किनारे पानी पीने आया है।

इतने सारे हिरणों को देखकर वह उनकी ओर झपटा वह सब अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे।

मादा हिरणों से तो भागा भी नहीं जा रहा था फिर भी वह अपनी और अपने आने वाले बच्चे की जान बचाने के लिए जी जान से भाग रही थीं।

जैसे ही वृक्षों ने यह दृश्य देखा, उनकी आपस में मंत्रणा हुई और एक डाली टूट कर बाघ के ऊपर गिर गई। चोट लगने से बाघ तेज़ गुर्राया और भाग गया।

सभी मादा हिरण पेड़ों के नीचे ही बैठ गईं। और कुछ ही समय के प्रयास से उन्होंने सुन्दर-सुंदर शावकों को जन्म दिया।

सभी वृक्षों ने अपने पत्तों से और डालियों को झुका कर उन सभी शावकों की रक्षा की।

हम सभी उत्साहित इन सभी दृश्यों को अपने कैमरे में कैद करते जा रहे हैं।

मादा हिरण अपनी जीभ से अपने नवजात शावकों को साफ करती जा रहीं हैं। बहुत ही मनोरम दृश्य है, यह हम सभी के लिए।

प्रकृति ने सभी जीव-जंतुओं को हर प्रकार से सक्षम बनाया है। बिना किसी मदद के वह अपनी और अपने बच्चों की देखभाल स्वयं ही कर लेते हैं।

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बरगद और अन्य वृक्ष अपने मेहमानों के कार्यों को बहुत ध्यान से देख रहे थे। उन सभी को यह समझ आ गया था कि यह मानव दल उनको किसी भी प्रकार से कोई नुकसान नहीं पहुंचाने वाला है।

                   

आपस में बातचीत करते हुए दूसरे वृक्ष बोले "आपका अनुभव सही था दादा, यह मानव दल हमारे साथ बहुत ही प्यार से रहे।

इतने दिन यह साथ रहे पर हमें कभी नहीं लगा कि यह हमारे साथी नहीं हैं, भले ही यह हमारी भाषा नहीं समझ पाते परन्तु मनोभाव अच्छे से समझते हैं।"

बरगद बोला "मेरे बेजान पड़े शरीर में कुबेर के गिटार बजाने से एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है।

तुम सभी देख रहे हो मेरे सारे सूखे पत्ते झड़ गए और कितनी नई कोपलें आ गई हैं।"

"हम सभी में भी यही परिवर्तन हुआ है दादा। यह संगीत का प्रभाव है, यह तो हमने सोचा ही नहीं था" सभी वृक्ष एक साथ बोले।

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हम अपना कार्य पूरा हो जाने पर बहुत खुश हैं। हमने यह आठ महीने प्रकृति की गोद में रह कर यह जाना कि हर प्रकार के माहौल में आपको अडिग खड़े रहना है। हमने गर्मी, बारिश और ठंड सभी को महसूस किया और जाना कि सही अर्थों में यह वृक्ष जीव-जंतु ही स्वछंद और उन्मुक्त जीवन जी रहे हैं इन्हें किसी भी बात का तनाव नहीं है।

यह हम सभी के स्वास्थ्य की रक्षा बिना किसी स्वार्थ के कर रहे हैं।

यह वन हमारी रक्षा के लिए हैं। हमें इनको अमूल्य धरोहर के रूप में सहेज कर रखना होगा।

यदि हम इन्हें काट देंगे, जला देंगे या जानवरों को मार कर उनका दुरुपयोग करेंगे तो समस्त मानव जाति संकट में पड़ जाएगी, और हम कुछ नहीं कर सकेंगे।

हम पॉंचों एक बार फिर इन जंगलों को छोड़ कर अपने घर जा रहें हैं।

ऐसा लगा जैसे बरगद का पेड़ रो रहा है। हम भी एक बार फिर उसके मजबूत तने से लिपट कर यूॅं ही खड़े रहे ऐसा लग रहा था जैसे अपने दादा जी से बिछड़ रहें हों।

उसकी शाखाओं ने हमें बहुत आशीर्वाद दिया।

हम सभी विदा लेकर निकल पड़े वापस किसी और जंगल के अनुभवों का अहसास पाने को।



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