ढकोसले
ढकोसले
"अरे ममता बहुत-बहुत बधाई !! शिशिर का विवाह बहुत ही धनाढ्य परिवार में तय हो गया। बहुत ही खुशी की बात है यह तो।" कविता ने घर के अंदर आते हुए कहा।
"धन्यवाद भाभी"! कह कर ममता ने भी अपनी खुशी जाहिर की।
"अब तो बहुत धूमधाम से पांच सितारा होटल में होगा न सारा कार्यक्रम।" कविता बहुत उत्साहित हो कर बोले जा रहीं थीं।
"सही बात भी है यह तो आखिर शिशिर प्रशासनिक अधिकारी जो हो गया है।" कविता उत्साह से बोले ही जा रही थी।
ममता बोली "अरे बस भाभी आप तो सब कुछ अपने ही आप तय करतीं जा रहीं हैं।
सुदीप को तो आप जानती हीं हैं न। उनके विचार कभी भी समाज की भेड़ चाल से मिले ही नहीं।"
"मतलब! ? कहना क्या चाहती हो ममता। सुदीप जी का क्या विचार है इस विवाह को लेकर ?" कविता ने आश्चर्य मिश्रित भाव से पूछा।
"बस भाभी हम सभी ने तय किया है, कि विवाह कोर्ट में होगा और विवाह में होने वाले खर्चे को बच्चों के नाम से जमा करवा देंगे।" ममता ने समझाया।
"हाय! हाय! ममता कोर्ट में विवाह तो वो बच्चे करते हैं जिनके साथ उनका परिवार राज़ी नहीं होता।
अब भला सभी के राज़ी होने पर कौन ऐसा विवाह करता है,लगता है.. सुदीप जी के साथ तेरी भी मति मारी गई है।
अरे इतने लोगों का खा कर बैठे हो और जब दूसरों को खिलाने का समय आया तब ऐसे सूखे सूखे काम करना चाह रहे हो।" कविता तो लगभग गुस्से से ही बोले जा रही थी।
"नहीं भाभी ऐसा नहीं है। जहॉं तक खिलाने की बात है तो दोनों बच्चों ने शहर के तीन अनाथाश्रमों में बात कर ली है वहीं सभी को भोजन करवाएंगे।
सभी रिश्तेदारों के साथ।" ममता ने बताया
"बस-बस ममता अब यही सुनना बाकी रह गया था। तुमको तो दहेज में गाड़ी बंगले मिल रहे होंगे, और रिश्तेदारों को अनाथाश्रम में खाना।" कविता तो भड़क ही गई थी।
ममता बोली "भाभी हमने तो सिर्फ सवा रुपया और नारियल में विवाह तय किया है, इसके अलावा कुछ नहीं।"
"बस करो अपनी यह आदर्शवादी बातें ममता यह सब ढकोसले हैं, तुमसे बात करने का कोई फायदा नहीं है मैं तो अब सुदीप जी से ही बात करती हूॅं।" कविता बोली।
"ढकोसले !" ममता बस वहीं खड़ी सोचती ही रह गई।
