जलजला

जलजला

31 mins
738


नीला ने जब आँखें खोली तो विकास को अपने पास ही बैठे पाया । नीला को होश में आते देखकर विकास ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए चिरपरिचित अंदाज में कहा, ‘बधाई हो नीला, आपरेशन सफ़ल रहा, डाक्टर ने कहा है कि तुम शीघ्र ही ठीक हो जाओगी।’


विकास की बातें सुनकर नीला ने पुनः आँखें बंद कर लीं...। उसे विकास की सहानुभूति खोखली लग रही थी...। अब उसमें रह ही क्या गया है...? उसने तो इस आपरेशन के लिये मना किया था... ऐसे आधे अधूरे शरीर वाले जीवन से क्या लाभ ? ऐसे जीवन से तो मर जाना ही अच्छा है....!! आखिर वह कब तक दूसरों की नजरों में व्यंग्य या दया देखकर जीती रहेगी...। एक बार फिर मन में विचारों का सागर लहराया और वह कराह उठी...।


‘क्या बहुत दर्द हो रहा है ?’


‘हाँ...।’ बड़ी कठिनाई से नीला के मुँह से निकला।


नीला का उत्तर सुनकर विकास घबरा कर भागा-भागा रिसेप्शन में बैठी नर्स के पास गया। नर्स ने तुरंत आकर नीला को दर्द का इंजेक्शन लगा दिया। नीला तो धीरे-धीरे नींद के आगोश में समा गई किन्तु विकास वहीं कुर्सी पर निढाल सा बैठ गया।


लगभग दो महीने हो गये थे उसे अस्पताल के चक्कर काटते-काटते...। कभी यह टेस्ट तो कभी वह टेस्ट... घबड़ाहट, चिंता और मन में समाई हीन ग्रंथि के कारण नीला का ब्लड प्रेशर इतना हाई हो गया था कि जब तक ब्लड प्रेशर पर कंट्रोल न हो जाए, आपरेशन करना संभव ही नहीं था...। उनकी बेटी निशी माँ के पास थी...। माँ की उमर भी ऐसी नहीं थी कि वह पूरा घर संभाल पाती पर इस संकट की घड़ी में उन्होंने न केवल उनका मनोबल बढ़ाया वरन् निशी को भी संभाला...।


मुंबई में रहने के बावजूद वह हफ्ते भर से घर नहीं जा पाया है...। कारण घर से अस्पताल की दूरी...। लगभग ढाई-तीन घंटे लग जाया करते हैं... कभी-कभी तो उससे भी अधिक... सब कुछ ट्रैफिक पर निर्भर करता है...। वैसे अगर जाना चाहता तो जा भी सकता था पर नीला की मनःस्थिति तथा आपरेशन की स्थिति में पता नहीं कब किस चीज की आवश्यकता पड़ जाये, उसने नीला के साथ रहना ही उचित समझा। यद्यपि फोन पर तो दिन में दो-तीन बार बातें हो नही जाया करती थीं पर फिर भी मन में चिंता लगी ही रहती थी...।


नीला को नींद के आगोश में समाया देख सफ़ल आपरेशन की खुशख़बरी देने के लिये उसने माँ को फोन मिलाया...। फोन माँ ने ही उठाया...। नीला के सफ़ल आॅपरेशन की सूचना प्राप्त कर वह बेहद प्रसन्न हुई। आशीर्वाद देते हुए माँ ने नीला से बात करने की इच्छा जाहिर की। जब उसने कहा कि वह सो रही है तब उन्होंने उसके जागने पर बात कराने के लिये कहा।


निशी के बारे में जानना चाहा तो माँ ने फोन उसे ही पकड़ा दिया...। निशी ने उससे लंबी बात की, कुछ अपनी सुनाई तो कुछ अपनी ममा के बारे में जानना चाहा...। वह उसी समय रिजल्ट लेकर आई थी... वह अच्छे नंबरों से पास हुई थी अतः ख़ुश थी।


निशि के रिजल्ट के बारे में सुनकर विकास को थोड़ा सुकून मिला...। पिछले दो महीने से भागदौड़ के कारण वह निशी के ऊपर ध्यान ही नहीं दे पाया था...। नीला ने तो प्रारंभ से ही कभी किसी की परवाह ही नहीं की थी । उसे तो बस अपना काम और कैरियर ही प्यारा था। यह तो अच्छा हुआ इस समय माँ स्थिति की भयावहता को समझकर सारे गिले शिकवे भूल कर आ गई थी तथा वह भी निशी को उन्हें सौंप कर निश्चिंत हो गया था...। अगर इस समय माँ ने आकर घर नहीं संभाला होता तो क्या वह नीला का उचित इलाज करवा पाता…? न चाहते हुए भी अतीत की घटनाएं उसके मनमस्तिष्क पर हावी होने लगीं।


नीला की माँ से कभी नहीं बनी...। माँ ठहरी पुराने जमाने की, पुराने ख्यालात की। पुरानी मान्यताओं को वह छोड़ना नहीं चाहती थी और नीला उन्हें अपनाना नहीं चाहती थी...। माँ का दिन पूजा-अर्चना से प्रारंभ होता था तो नीला का एरोबिक एक्सरसाइज से...। वह शांति से एरोबिक करती तब भी ठीक था पर उसकी आदत म्यूजिक सिस्टम पर तेज म्यूजिक लगाकर व्यायाम करने की थी। उस पर घर में नित्य होती पार्टियों में सर्व होता नानवेज जबकि माँ को प्याज़ लहसुन से भी परहेज था। ड्रेस भी वह परंपरागत नहीं वरन् पाश्चात्य ढंग की ही पहना करती थी...। साड़ी और सलवार कुर्ता तो एक दो बार को छोड़कर उसने कभी पहना ही नहीं था...। माँ ने कभी कुछ कहा तो नहीं पर शायद वह नीला के व्यवहार और बर्ताव को सहन नहीं कर पाई। तभी उसके बार-बार आग्रह करने पर भी वह कोई न कोई बहाना बनाकर उसके पास आने से मना करती रही थीं...। निशी के जन्म पर ही वह लोक लाज के डर से कुछ दिनों के लिये आई थीं पर जैसे ही नीला अस्पताल से घर आई, वे चली गई। उस समय भी नीला ने उन्हें रोकने का प्रयत्न नहीं किया...। वैसे भी माँ रूककर भी क्या करती क्योंकि नीला ने उनसे अधिक अपनी माँ पर भरोसा किया था। नीला की माँ भी सारे गिले शिकवे भुलाकर निशी के होने के दूसरे दिन ही आ गई थीं।


दरअसल अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण नीला की अपनी माँ से भी नहीं बनी थी। नीला ने अपनी माँ की इच्छा के विरुद्ध जाकर न केवल मॉडलिंग का पेशा अपनाया वर्ण उससे विवाह भी किया। कहते हैं कि मूल से सूद ज्यादा प्यार होता है अतः जब उन्होंने निशी के होने की बात सुनी तो मन की दीवार को पाट कर नवासी की देखभाल करने आ गई थी।


नीला सुंदर तथा आकर्षक व्यक्तित्व की धनी थी...। वह विज्ञापनों के लिये माॅडलिंग किया करती थी... विज्ञापन के अतिरिक्त वह कुछ सीरियल्स में भी काम कर रही थी। इन सबमें वह इतनी व्यस्त रहती थी कि उसके आने जाने का कोई समय ही नहीं था...। इसके बावजूद जब उसे कुछ टी.वी. प्रोग्रामों में एंकरिंग का आफ़र मिला तो उसने उन्हें भी स्वीकार कर लिया।


इसी तरह विवाह के तीन वर्ष बीत गये। विकास ने उसे इतना काम न करने की सलाह देते हुए परिवार बढ़ाने की बात की तो उसने कहा, ‘विकास, मैंने विवाह तो कर लिया पर प्लीज मुझे अभी कुछ वर्ष और इस पचड़े में नहीं पड़ना है...। मेरे लिये मेरा कैरियर ही मुख्य है। यही कुछ दिन ही तो हैं मेरे पास, मुझे अपनी जमीन पुख्ता कर लेने दो।’


तब पहली बार विकास को महसूस हुआ कि उसका नीला से विवाह करने का निर्णय ही गलत था...। धीरे-धीरे तीन वर्ष और बीत गये, इसी बीच सारी सावधानी के बावजूद किसी असावधान पल के कारण नीला प्रेगनेंट हो गई...। विकास को यह जानकर दुख हुआ कि वह उसे कुछ भी बताये बिना एबार्शन कराना चाह रही है पर डाक्टर के परिचित होने के कारण उसे पता चल गया।


विकास ने नीला के इस कृत्य का जब विरोध किया तो वह भड़क गई दूसरी डाक्टर के पास जाने की जिद करने लगी तब क्रोध में आकर उसने कह दिया, ‘अगर तुमने अजन्मे बच्चे को मारने का प्रयत्न किया तो मेरा तुम्हारा संबंध समाप्त हो जायेगा... आखिर तुम अपने जीवन के नौ महीने भी मुझे नहीं दे सकती...। हमारे विवाह को छह वर्ष हो चुके हैं आखिर अब और कितने वर्ष इंतजार कराओगी?’


उसकी बातों का नीला पर न जाने क्या असर हुआ कि वह मान गई तब लगा कि उनका प्यार अभी मरा नहीं है...। दूसरे की इच्छाओं का मान प्यार करने वाला ही रख सकता है...। इन महीनों में उसने डाक्टर की हर सलाह का पालन किया...।


आखिर वह दिन भी आ गया... जब उनकी नन्हीं गुड़िया निशी का जन्म हुआ...। तब लगा शायद निशी की जरूरतें नीला के इरादे बदल दे या वह अपने कुछ महीने अपने बच्चे के नाम कर दे पर वह उसे जन्म देने के महीना भर पश्चात ही अपनी दुनिया में रमने लगी...। छह महीने तो उसकी माँ रहीं। उनके जाने के पश्चात बच्ची को पालने के लिये एक आया रखनी पड़ी...। आश्चर्य तो तब होता जब नन्हीं निशी उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाकर उसकी गोद में आना चाहती पर वह उसकी अनदेखी कर काम पर निकल जाती...। बच्ची का रूदन या उसकी किलकारियाँ भी उसके हृदय में कोई संवेदना या भावना नहीं जगा पाती थीं।

 

एक दिन आफिस से लौटने पर बच्ची को रोता तथा आया को अपनी किसी मित्र से बतियाता देख वह क्रोध से भर उठा। आया को तो उसने डाँटा ही, नीला के आते ही उस पर भी बरस पड़ा...। उसकी बातें सुनकर उसने नम्र स्वर में कहा, ‘ तुमने मुझसे अपनी जिंदगी के नौ महीने माँगे थे, वह मैंने तुम्हें दे दिये फिर यह शिकायत क्यों...?’


‘कह तो ऐसे रही हो जैसे अपने जीवन के नौ महीने देकर तुमने मुझ पर बहुत अहसान किया है...। क्या निशी तुम्हारी बेटी नहीं है....? क्या उसमें तुम्हारा खून नहीं है…? क्या उसके प्रति तुम्हारा कोई कर्तव्य नहीं है...?’


‘पहले सिर्फ नौ महीने देने की बात की थी और अब कर्तव्य की बात कह रहे हो...। मुझसे गलती तो यह हुई कि क्षणिक आवेश में मैंने तुमसे विवाह कर लिया वरना पता नहीं आज मैं कहाँ होती...?’


नीला से बहस करने से कोई फ़ायदा नहीं है, जानकर भी दिल की बात जुबाँ पर आ ही गई, ‘न जाने कैसी औरत हो तुम…? सिर्फ जिस्म ही औरत का पाया है दिल नहीं... वरना अपनी कोख जाई को ऐसे आया के पास छोड़कर तुम जा ही नहीं सकती थीं।’


‘तुम भी तो पिता हो निशी के, उसकी इतनी ही चिंता है तो स्वयं छुट्टी लेकर उसकी देखभाल क्यों नहीं करते...?’ 


नीला का रुख देखकर विकास ने निशी की देखभाल की जिम्मेदारी स्वयं संभाली...। निशी को पालने के लिये माँ से आग्रह करना चाहा पर नीला का व्यवहार देखकर माँ को बुलाना व्यर्थ लगा। वैसे भी यह एक दो दिन या महीने दो महीने की समस्या तो थी नहीं जो वह सुलझा जातीं...। आखिर वह सुबह क्रैच में बच्ची को छोड़कर आफिस जाने लगा तथा शाम को लौटते हुए उसे ले आता। निशी का सारा काम वही करता, नीला फिर भी निःस्पृह बनी रही...। खाना बनाने तथा अन्य कार्यो के लिये नौकरानी थी ही...। गनीमत थी तो बस इतनी कि नीला रात्रि में घर आ जाती थी।


‘सर, पेशेंट को देने के लिये कुछ दवाइयाँ चाहिए...।’


नर्स की आवाज सुनकर उसके विचारों को ब्रेक लगा वह प्रिस्क्रिप्शन लेकर, नर्स को नीला का ध्यान रखने के लिये कहकर हास्पीटल की मेडिकल शाप में जाने लगा। तभी ड्रेसिंग करने के नर्स आ गई...। उसे देखकर यह सोचकर संतोष की सांस ली कि कम से कम इस अवधि में वह अकेली तो नहीं रहेगी वरना किसी को ध्यान रखने के लिये कहना सिर्फ मन की तसल्ली ही है... इतने सारे पेशेंन्ट में नर्स भला किस-किस का ध्यान रखेगी...।


नर्स नीला की ड्रेसिंग करने लगी। बातों-बातों में उसने नीला से कहा, ‘मेम, आप बहुत ही लकी हैं, जो आपको ऐसे हस्बैंड मिले हैं। जितनी केयर वह आपकी कर रहे हैं उतना मैंने आज तक किसी को करते नहीं देखा है।’


नर्स की बातें सुनकर नीला की आँखें बरसने को आतुर हो उठीं...। आज उसे अपने आज तक के व्यवहार पर लज्जा आने लगी। उसने आज तक न तो मातृ धर्म निभाया न ही पत्नी धर्म। अपनी ही शर्तो पर जीने के प्रयत्न में वह यह भूल गई कि वह कि किसी की पत्नी, बहू और माँ भी है...। उसने तो विकास से अपना रिश्ता तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी वह तो विकास ही था जो इस पंगु होते रिश्ते को निभाये जा रहा है...। बंद पुस्तक का एक-एक पन्ना खुल कर मनमस्तिश्वक में दस्तक देने लगा...  


वह विकास से एक कंपनी के विज्ञापन की शूटिंग करते वक्त मिली थी...। विकास उस नामी गारमेंट कंपनी का मार्केटिंग मैनेजर था...। दोनों ने एक दूसरे में न जाने क्या देखा कि चंद दिनों की मुलाकात में ही अपनी जिंदगी एक दूसरे को सौंपने को तैयार हो गये...। उसे भी विकास जैसा उच्चपदस्थ जीवन साथी तथा सुरक्षित भविष्य चाहिये था...। विकास के मुंबई में ही काम करने के कारण थोड़े बहुत परिवर्तन के अतिरिक्त उसकी दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आया। वह पूर्ववत ही काम करती रही। हाँ इतना अवश्य है वह उसे और उसके परिवार को उतना समय नहीं दे पाई जितना देना चाहिए था...। ऐसा नहीं था कि विकास विवाह के पश्चात उसके काम करने के विरुद्ध था पर वह चाहता था कि संतुलन बनाकर चला जाए पर उसने कभी प्रयत्न ही नहीं किया। उसे महसूस होता था कि अगर वह एक बार झुक गई तो सदा ही उसे उसकी बातें माननी होगी...। बस उसकी यही सोच उसके गृहस्थ जीवन पर ग्रहण लगाती चली गई ।  


समय के साथ ही विकास उस पर बच्चे के लिये जोर डालने लगा...। बच्ची हुई पर उसके पश्चात वह उसकी परवरिश की चुनौती स्वीकार करने को तैयार नहीं हुई...। दरअसल वह गृहस्थी में फँसकर अपना कैरियर दाँव पर नहीं लगाना चाहती थी...। डिलीवरी के दौरान उसे तीन चार महीने काम से दूर रहना पड़ा था। इस दौरान उसका किरदार किसी और को निभाने के लिये दे दियाा गया...। आखिर सीरियल को तो चलाना ही था किसी के जाने से वह रूकता तो नहीं है...। कुछ दिन पश्चात जब वह उन निर्माताओं के पास गई तो उन्होंने यह कहकर लौटा दिया कि जब आपकी आवश्यकता होगी तो बुला लेंगे...। एक निर्माता ने अवश्य अहसान जताते हुए उसे अपने दूसरे सीरियल के लिये अनुबंधित कर लिया था...। 


अब उसके पास सिर्फ कुछ विज्ञापन ही रह गये थे...। तनाव, काम की कमी, टूटती महत्वाकांक्षाओं ने उसके मन में डिप्रेशन ला दिया...। काम पाने के चक्कर में जहाँ वह पूरे-पूरे दिन घर से बाहर रहती वहीं अनचाहे ही सबसे व्यार्थ उलझाने भी लगी थी...। अपनी इमेज बिगड़ती देख उसने स्वयं को सुधारा तथा फिर काम पाने के लिये प्रयत्न करती रही... कहते हैं, जहाँ चाह है वहाँ राह है... धीरे-धीरे फिर काम मिलने लगा...। एक बार फिर लगा कि उसने कुछ भी नहीं खोया है... वह अपना मुकाम फिर प्राप्त कर सकती है जिसकी उसने चाहना की है....। धीरे-धीरे उसका नाम अच्छी अदाकारा में शामिल होने लगा...। ढेरों फेन्स मेल आती। कभी-कभी तो उसके पास उनका उत्तर देने का भी समय नहीं रहता था...।


कभी जिंदगी व्यक्ति की राह में ऐसे-ऐसे रोड़े अटका देती है कि वह लाख प्रयत्न करने पर भी उससे उबर नहीं पाता... यही उसके साथ हुआ। एक दिन उसने अपने बायें स्तन में गाँठ महसूस की...। बार-बार उसे छूकर देखती रही कि वास्तव में गाँठ है या उसका भ्रम है। जब वह गाँठ ही लगी तो वह अनजाने भय से सिहर उठी थी। कभी किसी के साथ कोई राज शेयर न करने की मनःस्थिति के चलते उसने अकेले ही अपनी फैमिली डाक्टर से चैक कराया...। डाक्टर ने गाँठ निकाल कर बायोप्सी के लिये भेज दी। शक की पुश्टि होने पर डाक्टर ने उसे कुछ भी नहीं बताया। डॉक्टर ने उसके पति से बातें करने की इच्छा प्रकट की...। वह नादान नहीं थी। डाक्टर की बातों से मन की शंका सच में परिणित होती लगी। फ़िर भी उसने मन कड़ा कर सच्चाई जानने की इच्छा प्रकट की तो डाक्टर ने सच्चाई उसके सम्मुख रख दी।


डॉक्टर की बात सुनकर नीला के पैरों तले जमीन गई...। दुनिया घूमती प्रतीत हुई... उसकी दशा देखकर डाक्टर उठकर उसके पास आई तथा उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘मैं इसीलिये आपको बताना नहीं चाह रही थी। दरअसल कैंसर नाम ही ऐसा है कि जिसे सुनने मात्र से ही आम इंसान घबड़ा जाता है... जबकि आज के युग में इस बीमारी का इलाज संभव है। अगर समय रहते इसका पता चल जाए तो सर्जरी द्वारा पीड़ित भाग को निकाल देने तथा कुछ सावधानियां बरतने पर, इंसान वर्षो जीवित रह सकता है...। बस आप जल्दी से जल्दी किसी कैंसर स्पेशलिस्ट को दिखाइये जिससे कि सही स्थिति का पता चल जाए तथा सही उपचार हो सके।’


डाक्टर की दिलासा के बावजूद, वह अकल्पनीय दर्द के एहसास से तड़प उठी थी...। अपने जिस सौंन्दर्य पर उसे इतना नाज था जिसके सहारे उसने आकाश के तारे तोड़ लेने के स्वप्न देखे थे, अचानक ऐसे भरभरा कर टूट जाऐंगे, उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था...। अपने कैरियर के साथ विकास का साथ भी छूटने का डर सताने लगा... साथ ही यह भय भी सताने लगा कि अगर यह खबर मीडिया में आ गई तो उसवके सारे सीरियलस तो छूटेंगे ही, किसी को मुँह दिखाने काबिल भी नहीं रह जायेगी...।


वह समझ नहीं पा रही थी कि वह विकास को कैसे बताये... उसे डर था कि कहीं वह यह सब सुनकर उससे दूर न चला जाए...। आखिर पुरूष सौंदर्य का ही तो उपासक होता है। अगर वही नहीं रहा तो वह क्यों उसकी तरफ़ आकर्षित होगा…? वैसे भी उसने उसकी या उसके परिवार की परवाह ही कब की थी…!! अन्य बातें तो दूर अपनी पुत्री के लिये भी उसके मन में कोई मोह नहीं जगा था...। कभी उसे दूध नहीं पिलाया, उसकी पाटी धोई भी तो मजबूरी में... यहाँ तक कि कभी उसे अपने साथ लेकर नहीं सोई...। ऐसी स्थिति में अगर वह उससे किनारा कर ले तो कोई आश्चर्य नहीं...। हो सकता है अब तक वह उसके सौंदर्य के कारण ही उसकी सारी ज्यादातियों के बावजूद उसके साथ निर्वाह वर रहा हो पर जब वही नहीं रहेगा तो वह भला क्यों उसके साथ रहना चाहेगा ?


मन में द्वन्द चल रहा था कि वह विकास बताये या न बताये... अगर वह उसे नहीं बतायेगी तो इलाज कैसे होगा…? उसका अपना कोई नहीं था... माँ का पिछले वर्ष ही देहांत हो गया था। भाई-भाभी की अपनी गृहस्थी है, वह उन पर अपना बोझ कैसे डालती!!  


डाक्टर ने जल्दी से जल्दी किसी कैंसर स्पेशलिस्ट से मिलकर निदान ढ़ूँढ़ने के साथ-साथ यह भी कहा था कि उपचार में जरा सी भी देरी खतरनाक हो सकती है...। न चाहते हुए भी मन कड़ा कर रात के सूनेपन में विकास को बताना ही पड़ा। उसकी बात सुनकर कुछ क्षण तो विकास उसे आश्चर्य से उसे देखता रहा फिर सहानुभूति के स्वर में कहा, ‘इतने दिन तुम यह सब अकेले सहती रहीं, मुझे बताया भी नहीं...।’


‘सारी...तुम्हें खो देने के डर से...।’ बुझे स्वर में नजर चुराते हुए उसने कहा, अनचाहे आँखों से आँसू भी निकल आये थे ।


‘क्या मुझ पर तुम्हारा इतना ही विश्वास है ? पति-पत्नी का रिश्ता क्षणिक या भावावेश में लिया नहीं वरन् जन्मजन्मांतर का होता है। तुम भले ही इस बात पर विश्वास न करो पर कम से कम मेरा तो ऐसा ही मानना है...। अब तुम बिल्कुल भी चिंता न करो, मैं कल ही डाक्टर से बातें करता हूँ... और हाँ प्रयत्न करना कि यह खबर मीडिया तक न पहुँचे, अपने डायरेक्टर, प्रोड्यूसर को कुछ भी मजबूरी बता कर कुछ महीनों की छुट्टी ले लो...।’ विकास ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा था ।


नीला ने वही किया जो विकास ने कहा... कुछ तो नाराज भी हो गये, कुछ ने कहा जब तक किसी दूसरे पात्र का इंतजाम नहीं हो पाता, तब तक आपको काम करना ही होगा...। तब ऐसा महसूस हुआ था कि उसके पास अपने लिये भी समय नहीं है...वह मर रही है और लोगों को काम की पड़ी है।

 

इस बीच विकास ने अपने परिचित डाक्टर से बातें की। उसकी रिर्पोट देखकर उन्होंने उसे टाटा मैमोरियल अस्पताल में दिखाने की सलाह दी। मुंबई में विकास की जानपहचान थी ही, तुरंत डाक्टर से अपाइन्टमेंट भी मिल गया...। विकास ने माँ को सारी स्थिति से अवगत कराते हुए निशी की देखभाल के लिये आने का आग्रह किया, माँ भी सारे गिले शिकवे छोड़कर चली आई थी।


टाटा मैमोरियल अस्पताल में एक बार फिर से सारे टेस्ट हुए। गाँठ काफी फैल गई थी। उस अंग को काट कर निकाल देने के अतिरिक्त अब कोई चारा भी नहीं था। डाक्टरों ने उसके जीवन की रक्षा के लिये अपने कठोर निर्णय से उन्हें अवगत करा दिया...। डाक्टर की बात सुनकर नीला रो पड़ी तथा तथा उनसे मिन्नतें करते हुए कहा, ‘क्या इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है ? प्लीज डाक्टर, कुछ भी कीजिए पर मेरे शरीर का यह भाग अलग मत कीजिए... मैं बदसूरत बनकर जीवन नहीं जीना चाहती।’ 


नीला का आग्रह भरा रूदन सुनकर डाक्टर आशुतोश ने उससे पूछा, ‘आप यह बताइये कि आप जिंदगी चाहती हैं या नहीं...।’


उसे असमंजस में पड़ा देख डाक्टर आशुतोश ने पुनः कहा, ‘जीवन परमात्मा की ऐसी देन है कि कोई इंसान मरना नहीं चाहता...। आपने अँधे, लूले, बहरों को देखा है, ऐसा नहीं है कि उनकी यह दशा जन्मजात ही हो, कभी-कभी कोई बीमारी या एक्सीडेंट भी उन्हें ऐसा बना देती है पर अपनी अपंगता के बावजूद वे भी जीते हैं...फिर आपके शरीर का तो एक ऐसा भाग काट कर अलग करना है जिससे आपके शारीरिक क्रियाकलापों में कोई अंतर नहीं आयेगा। आज तो प्लास्टिक सर्जरी के अतिरिक्त ऐसे अनेक साधन भी उपलब्ध हैं जिन्हें अपनाने से किसी को पता भी नहीं चलेगा कि आपका ऐसा कोई आपरेशन भी हुआ है...। दरअसल ऐसे आपरेशन अब आम हो चुके हैं... बस आपको मानसिक रूप से सबल होना पड़ेगा...। इसके साथ ही जब तक घाव पूरा सूख नहीं जाता तब तक आपको नियम से सारी दवाइयाँ लेनी तथा आवश्यक सावधानियां बरतनी होंगी...। इसके साथ ही हर छह महीने पश्चात रेगुलर चैक अप भी करवाना होगा जिससे आपरेशन के बावजूद अगर कभी कोई कंम्पलीकेशन होता है तो तुरंत सावधानी बरती जा सके।’


नीला को बुरी तरह नर्वस देखकर डाक्टर के साथ विकास ने भी उसे समझाया था...। यहाँ तक कि विकास ने अपने और बच्ची के लिये उसकी जिंदगी की भीख माँगी तो तो वह न चाहते हुए भी सहमत हो गई...। मन को कितना भी समझाती पर उसे अपना जीवन अंधकारमय लगने लगा था... जिस शरीर पर उसे नाज था, उसी पर छुरी चलेगी। उसके शरीर का एक भाग उससे अलग कर दिया जायेगा, इस सोच ने उसके मन में तूफ़ान मचा रखा था...। कैरियर तो दूर, क्या वह उस अवस्था में विकास का सामना कर पायेगी…? किसी दूसरे से तो दूर क्या वह स्वयं से भी नजरें मिला पाने में सक्षम हो पायेगी…? वह रात में भी भयानक स्वप्न देखकर उठ जाती थी उसकी ऐसी हालत देखकर विकास ने उसका मनोबल बढ़ाते हुए कहा था, ‘सच्ची सुंदरता तो मन की होती है नीलू, शरीर तो क्षणिक है फिर दुख और निराशा क्यों…? मैने तुम्हारी सुंदरता से नहीं, तुमसे प्यार किया है, शरीर मेरे लिये गौण है...।’


सब टेस्ट चल रहे थे, दो दिन पश्चात आपरेशन होना था... विकास जिला को कैंसर पेशेंट वार्ड में ले गया... एक दो वर्ष का बच्चा ल्यूकीमिया से पीड़ित था उसका बोन मैरो प्लांट हुआ था... एक महिला का ओवेरियन कैंसर का आपरेशन हुआ था तो एक तीस वर्ष के आदमी को गले का कैंसर था...। अनेकों मरीज अपनी-अपनी तरह से जीवन की लड़ाई लड़ रहे थे...। उन्हें देखकर वह परेशान होने लगी तब विकास उसे बाहर ले आया तथा अस्पताल की केंटीन में ले गया। उसे बिठाकर उसकी मनपसंद डिश का आर्डर कर उसके पास आया तथा उसे समझाते हुए कहा, ‘नीला, मैं तुम्हें कैंसर वार्ड में इसलिये ले गया था जिससे तुम्हें अपना दुख कम महसूस हो...। तुम्हारा आत्मविश्वास बढ़े...आत्मविश्वास ही इंसान को बड़े से बड़ा दुख झेलने की शक्ति देता है।’


आखिर आपरेशन वाला दिन भी आ गया...। नीला के होश में आने पर डाक्टर ने नीला को सफ़ल आपरेशन की सूचना मुस्कराकर दी थी...। डक्टर को मुस्कराते देख नीला को लग रहा था कि पूरी दुनिया उस पर हँस रही है....। यहाँ तक कि हर डाक्टर और नर्स के चेहरों पर भी उसे व्यंग्यात्मक मुस्कान दिखाई देने लगी...। कहते हैं न इंसान जैसा सोचता है, वैसा ही उसे महसूस होता है। आज यही मुस्कान उसे ड्रेसिंग करती नर्स के चेहरे पर दिखाई दी...। एकाएक उसे लगा कि ऐसी जिंदगी से तो बेहतर है वह इस जिंदगी को ही समाप्त कर ले। तभी उसकी नजर बगल के स्टूल पर फ़लों के पास रखे चाकू पर गई...। उसने एक कठोर निर्णय लिया। नर्स के जाते ही उसने चाकू उठा लिया, चाकू उठाकर घटना का अंजाम देने ही जा रही थी कि विकास आ गया।


उसके हाथ में चाकू देखकर विकास ने कहा, ‘भूख लगी है, लाओ मैं फ़ल काट कर देता हूँ...। डाक्टर ने कुछ दवायें लाने के लिये कहा था...। नर्स ड्रेसिंग करने आई तो सोचा इसी बीच दवायें ले आऊँ...। एक खुशख़बरी है, कुछ ही दिनों में तुम्हें डिस्चार्ज कर दिया जायेगा। बस रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी के लिये कभी-कभी आना होगा।’


‘और हाँ, माँ और निशी तुमसे बातें करना चाह रही थीं लो अब कर लो...।’ कहते हुए विकास ने नंबर मिलाकर मोबाइल उसे पकड़ा दिया...उसकी आवाज सुनकर उसकी सासूमाँ ने ख़ुशी के अतिरेक से कहा…


‘कैसी है तू बेटा ? विकास कह रहा था, आपरेशन सफ़ल रहा, ईश्वर करे तू शीघ्र ठीक होकर घर आ जाये, हम सब तुम्हें बहुत मिस कर रहे हैं...। निशी तो रोज ही सुबह शाम तेरे बारे में पूछती रहती है...। मैं उससे कह देती हूँ, तू खूब अच्छी तरह पढ़, खूब अच्छे नंबर ला, तेरी माँ शीघ्र घर आ जायेंगी...। ले तू अब निशी से बातें कर मेरे पास ही बैठी है तथा तुझसे बात करना चाह रही है...।’


बिना उसके उत्तर की अपेक्षा किये उन्होंने फोन निशी को पकड़ा दिया...। फोन पकड़ते ही निशी ने कहा, ‘माँ कैसी हो आप ? मेरा क्लास में दूसरा नंबर आया है। दादी ने कहा था तू क्लास में फर्स्ट आयेगी तो तेरी ममा जल्दी घर आ जायेंगी...। ममा, मैं फर्स्ट तो नहीं आ पाई बट आई प्रामिस ममा, अगली बार मैं अवश्य फर्स्ट आऊँगी...। कभी आपको शिकायत का मौका नहीं दूँगी... प्लीज ममा, आप जल्दी आ जाओ... आपको बहुत मिस कर रही हूँ।’


‘हाँ बेटा, मैं जल्दी आऊँगी और अब कभी तुझे अकेला नहीं छोडूँगी...।’ कहते हुए नीला बहुत देर तक निशी बातें करती रही...। बरबस आँखें बरसने लगी थीं । उसकी ऐसी दशा देखकर विकास ने उसके हाथ से फोन लेकर निशी से कहा,‘ निशी बेटा, तुम्हारी ममा को अभी कमज़ोरी है, अब उसे आराम करने दो, घर आने पर ढेर सारी बातें करना।’


नीला को भावुक होते देख फोन आफ़ कर विकास उसके पास बैठ गया तथा पास रखे पेपर नेपकिन से उसके आँसू पोंछते हुए कहा, ‘रिलैक्स, डाक्टर ने तुम्हें कोई भी चिंता या तनाव लेने से मना किया है... वैसे भी तुम रोती हुई नहीं, मुस्कराती हुई अच्छी लगती हो...।’


सासूमाँ और निशी से बातें करके नीला कोे ऐसा लगा कि अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है...सब उसे पहले की तरह ही चाहते हैं...। कैरियर के चलते अब वह अपने अपनों को स्वयं से दूर नहीं होने देगी...। बहुत सी ऐसी औरतें हैं जो होममेकर बनकर भी ख़ुश हैं...। वह व्यर्थ ही अब तक भटकती रही थी...। जिंदगी ने उसे अवसर दिया है... अपना घर बसाने का, सजाने संवारने का, अब उसे हाथ से निकलने नहीं देगी...। अब उन रिश्तों को सहेजने का प्रयास करेगी जो सदा उसके अपने हैं, उसे बेहद चाहते भी हैं, पर वही उन्हें समझ नहींपाई...।


कहाँ तो कुछ क्षण पूर्व नीला आत्महत्या करने की सोच रही थी... वहीं उसकी एक सकारात्मक सोच ने उसका नजरिया बदल दिया था...। अब उसे जिंदगी अच्छी लगने लगी...अपनों की चाहत ने उसके दिल मे जीने की इच्छा जाग्रत कर दी थी...। किसी ने सच ही कहा है कि आत्महत्या करना कायरता है... जिसमें जिंदगी में आये उतार चढ़ाव को सहने की क्षमता नहीं है वही आत्महत्या करता है....। अगर वह अपने उस कमजोर क्षण में अपनी जाग्रत इच्छा को मूर्त रूप दे देती तो शायद विकास किसी को मुँह दिखाने लायक ही नहीं रहता साथ ही उसकी बच्ची को भी अनाथों जैसा जीवन जीने के लिये मजबूर होना पड़ता, सोचकर वह आत्मग्लानि से भर उठी...।


हफ्ते भर पश्चात अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर पहुँची तो सासूमाँ ने उन्हें देखकर कहा, ‘रूको-रूको अभी घर में प्रवेश मत करना।’


दोनों असमंजस में बाहर ही खड़े रह गये... माँ तुरंत आरती का थाल लेकर आई तथा आरती उतारते हुए कहा, ‘आज मेरी नीला का पुनर्जन्म हुआ है, तुम दोनों का तुम्हारे इस घर में स्वागत है।’ 


नीला कुछ कहना चाहकर भी नहीं कह पाई... आखिर कहती भी तो क्या कहती जिनको उसने सदा हिकारत की नजर से देखा, सदा नफ़रत करती रही । उनकी आँखों में स्वयं के लिये प्यार और चिंता देखकर शर्म से भर उठी थी...। 


पिता का साया उसके सिर से बचपन में ही उठ गया था...। माँ ने उसे और उसके भाई को माता-पिता दोनों का प्यार देने का प्रयत्न किया था पर उसे न जाने ऐसा क्यों लगने लगा था कि माँ भाई को उससे अधिक चाहती हैं अपनी इस सोच के कारण वह विद्रोही होती गई, उनकी उसके प्रति चिंता उसे दिखावटी लगती...। वह जानबूझ कर कुछ ऐसा करने का प्रयास करती जिससे उन्हें दुख पहुँचे...उसने उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर न केवल माॅडलिंग का प्रोफेशन अपनाया वरन् विकास से विवाह भी किया...। अपने दुराग्रह के कारण उसके दिल में किसी के लिये प्यार या भावना जैसी कोई चीज ही नहीं पनप पाई...। वह रिश्तों को प्यार अपनत्व से नहीं वरन् पैसों से तौलने लगी थी...। पैसा ही उसके लिये सब कुछ था।


कहते हैं इंसान अपनों से कितना भी दूर रहने का प्रयत्न करे पर दिल के रिश्ते प्यार की कोंपलों को कभी मरने नहीं देते...। समयांतर के साथ यही उसके साथ हुआ । जब उसकी माँ और भाई को पता चला कि उसकी कोख में जीव ने दस्तक दी है तब वह बिना बताये अपने पुत्र और पुत्रवधू के साथ उससे मिलने चली आई थीं। वह भी राखी के दिन...लगभग छह वर्षों के पश्चात भाई के हाथ में राखी बाँधते समय अनेकों गिले शिकवों के बीच उसके मन का सारा मैल धुल गया था...।


उसकी अपनी माँ तो नहीं रहीं थीं किन्तु आज सासूमाँ की आँखों में उसे अपनी माँ की तरह ही निस्वार्थ प्यार नजर आ रहा था...। आज उनकी आँखों में उसे माँ का वह रूप नजर आ रहा था जिसे आज तक वह नकारती आई थी...। आज उसे एक बार फिर महसूस हो रहा था कि माँ, माँ ही होती है । उसका दिल इतना विशाल होता है कि वह बच्चे की हर गलती क्षमा कर देती है...आज उसे वह सास नहीं माँ लग रही थीं...।


अभी वह सोच ही रही थी कि माँ के पास खड़ी निशी ने अपनी दादी को उनकी आरती उतारते देख कहा, ‘ओफो दादी, आपने चावल भरा गिलास तो रखा ही नहीं...ममा, पापा जरा रूको मैं अभी लेकर आईं।’


आगे बढ़े कदम फिर रूक गये और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये निशी अंदर दौड़ी-दौड़ी गई, नीला को उदास देखकर सासूमाँ ने उससे पुनः कहा, ‘ख़ुश रहना सीख बेटा... कम से कम निशी के लिये ही... वैसे भी बेटा मनुष्य का आत्मबल ही उसे हर बीमारी, हर कठिनाइयों से लड़ने की प्रेरणा देता है।’


इसी बीच निशी गिलास में चावल भर लाई तथा दरवाजे के सामने रखते हुए कहा, ‘ममा, दाहिना पैर पहले बढ़ाना...।’


‘आजकल के बच्चे तो बड़ों के कान भी खींच लेते हैं।’ निशी की ओर देखते हुए सासूमाँ ने कहा। 


‘दादी, मैंने कितनी बार कहा है कि अब मैं बच्ची नहीं, बड़ी हो गई हूँ।’ दस वर्षीया निशी ने ठुनकते हुए कहा।


‘अरे बाबा, अच्छा हुआ तूने याद दिला दिया वरना मैं तो तुझे अभी तक बच्ची ही समझती हूँ।’ 


‘दादी.... फिर बच्ची.... जाओ हम आपसे नहीं बोलते...।’ कहती हुई निशी अंदर चली गई तथा उसके पीछे उसकी दादी उसे मनाने चल दीं।


दादी पोती की नोक-झोंक ने गमगीन माहौल को खुशनुमा बना दिया था। धीरे-धीरे नीला संभलने लगी थी पर दवाइयों की हाई डोज ने उसे बेहद कमजोर कर दिया था विशेषतया तब जब वह कीमोथेरेपी करवा कर आती...। दो तीन दिनों तक तो बुरी हालत रहती...। उल्टी, दस्त, बेचैनी कभी-कभी तो पूरी-पूरी रात ही जागती रह जाती...पर विकास और माँजी का सहयोग उसे हर परेशानी से उबार लेता ।


निशी भी स्कूल से आकर उससे ही चिपकी रहती। अपने स्कूल और अपनी दोस्तों की एक-एक बात आकर उसे बताती...। कभी उससे अपनी ड्राइंग पूरा करने का आग्रह करती तो कभी मैथ की प्राब्लम में उसका सहयोग चाहती तब लगता अपने कैरियर के जुनून ने उससे क्या कुछ नहीं छीना...। निशी को जब उसकी, उसके प्यार की बेहद जरूरत थी तब उसे उसने अपने ममत्व की छाँव के बदले क्रैच में डाल दिया...। वह तो विकास का बड़प्पन था कि उसने निशी के मन में उसकी माँ के लिये जहर नहीं प्रेम ही भरा था...। उसके देर से आने पर जब वह पूछती तो वह पहले ही कह देता, ‘बेटा, ममा थक गई हैं, अब उन्हें परेशान न करो...जो चाहिए वह मुझसे कहो, मैं हूँ ना...।’


तब वह उसकी आवाज में छिपे दर्द को कहाँ पहचान पाई थी...। उसे जो कुछ चाहिए था वह तो मिल ही रहा था... नाम, पैसा, और उससे भी अधिक किसी पुरूष का सुरक्षा कवच...। दूसरों की परेशानियों से उसे कोई मतलब नहीं था... वह सिर्फ अपने लिये जीना चाहती थी पर अब स्थिति दूसरी हो गई थी...। पहले उसे लगता था कि जब तक उसके पास रूप सौन्दर्य है तब तक वह सबको अपनी अँगुलियों पर नचा सकती है... प्यार व्यार सब उसकी नजरों में दिखावा छलावा था। उसने विकास से विवाह भी उसकी सामाजिक स्थिति देखकर किया था न कि किसी प्यार के वशीभूत होकर... जबकि विकास यही समझा था कि वह उससे प्यार करती है...। वह अच्छी अदाकारा थी, उसकी उसी अदा ने विकास जैसे सीधे-सीदे, अपने उसूलों के पक्के इंसान को फ़ांस लिया था...। वह सोचती रही कि उसके रूपजाल में फंसा विकास उसके हर नाज नखरे उठाने को बाध्य है पर वह गलत थी...। प्यार में कोई सौदा नहीं होता...प्यार तो निःस्वार्थ होता है...ऐसा ही प्यार विकास ने उससे किया था जबकि वह सदा अपनी ही शर्तो पर जीती रही...। आज विकास को अपनी चिंता करते देख उसे अपनी उस सोच पर शर्म आने लगी थी तथा जब तब वह अपराधबोध से भर उठती थी।


एक दिन वह कंघी कर रही थी कि कंघी के साथ बालों का पूरा का पूरा गुच्छा उसके हाथ में आ गया...। वह शीशे में अपना चेहरा देखकर चीख पड़ी। उसकी चीख सुनकर विकास आ गया। उसे रोता देखकर उसने कहा, ‘यह तो आम बात है नीलू, डाक्टर ने पहले ही कहा था पर चिंता न करो जैसे ही कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी बंद होगी, नये बाल फिर से आ जाऐंगे।’


इस नई प्राब्लम ने उसे फिर से परेशान कर दिया। यहाँ तक कि उसने आइने में अपना चेहरा देखना ही छोड़ दिया...। कुछ खाने और पहनने ओढ़ने का भी मन नहीं करता था...। विकास, माँजी और निशी उसे हर प्रकार से ख़ुश रखने का हर संभव प्रयत्न करते पर उसे न जाने क्या होता जा रहा था कि वह अपने अंतःकवच से बाहर निकलना ही नहीं चाह रही थी...जिस शरीर पर उसे इतना नाज था वही उसके दुखों का कारण बन गया था...। सब कुछ तो था...प्यारा पति, प्यारी बच्ची और उससे भी अधिक ममतामई सास...पर वही अपने जीवन में आई इस क्रूर सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रही है।


एक दिन जब विकास ने सुबह-सुबह उसे ‘हैप्पी बर्थ डे’ कहकर विश किया तब उसे याद आया कि आज उसका जन्म दिन है वरना पहले अपने हर जन्मदिन को वह विशिष्ट तरीके से मनाया करती थी... पर इस बार तो उसे अपना जन्मदिन ही याद नहीं रहा...सिर्फ इतना कह पाई,‘ अब तो हर जन्मदिन मेरे लिये कड़ुवाहट ही लेकर आयेगा...।’


‘ऐसा नहीं कहते नीलू...इस बार भी तुम्हारा जन्मदिन विशिष्ट तरीके सेे मनाया जायेगा...शाम को हम सब होटल चलेंगे, मैंने एक टेबल बुक करा दी है।’


‘पर मैं होटल में इस हालत में कैसे जा सकती हूँ... क्या तुम मेरा सबके सामने मज़ाक बनाना चाहते हो...?’ नीला ने झल्लाकर कहा ।


जब तक उसकी बात पूरी हो पाती विकास का मोबाइल बज उठा तथा वह उससे इशारे से शाम को मिलते हैं, कहकर आफिस चला गया।


पूरे दिन तनाव में रही... वह विकास को जानती थी, वह जो चाहता है करके ही रहता है...। शायद उसकी इसी विशेषता ने उसे उसकी ओर आकर्षित किया था...। वह भी उससे कम नहीं है...। वह इस हालत में रेस्टोरेंट जाकर सबके सामने वह हँसी का पात्र नहीं बनेगी। जहाँ पहले लोग उसके रूप सौन्दर्य से प्रभावित होकर उसकी ओर खिंचे चले आते थे वहीं अब उनकी नजरों में हिकारत वह भला कैसे सहन कर पायेगी…? नहीं-नहीं वह इस हालत में बाहर नहीं जायेगी...मन ही मन उसने फैसला ले लिया था।


शाम को विकास आफिस से जल्दी आ गया तथा उसे गिफ्ट पैक पकड़ाते हुए कहा, ‘याद है ना आज रात्रि का खाना बाहर है और हाँ, तुम्हारे लिये गिफ्ट लेकर आया हूँ, जरा खोल कर तो देखो...।’


‘कितनी बार कहा है कि मैं इस हालत में बाहर खाना खाने नहीं जाऊँगी...नहीं जाऊँगी।’ झल्लाकर उसने कहा ।


‘अच्छा बाबा ठीक है, नहीं जायेंगे, पर गिफ्ट तो खोलकर देखो...।’ विकास ने कहा। ज्यादा आग्रह कर वह उसे दुखी नहीं करना चाहता था।


‘सुंदर साड़ी के साथ दो पैक और देखकर उसने पूछा,‘ इसमें क्या है....?’


‘स्वयं देख लो...।’


नीलू ने गिफ्ट खोलकर देखा तो उसमें बालों के बिग के साथ ब्रेस्ट कैंसर पेशेंन्ट के लिये बनाया स्पेशल अंगवस्त्र देखकर चौंक गई...।


नीलू को गिफ्ट को आश्चर्य से देखता देखकर विकास ने कहा, ‘तुम्हें सरप्राइज देना था इसलिये तुम्हें बताया नहीं, अगर पसंद न हो तो फिर से बनवा दूँगा...। बाहर न भी जाना हो तो प्लीज एक बार पहनकर तो दिखा दो...।’


 नीला विकास के आग्रह को ठुकरा नहीं पाई तथा पहनने लगी... सब कुछ एकदम सही नाप का था... स्वयं को शीशे में देखा तो पहले वाली नीला को पाकर उसका खोया आत्मविश्वास झलक आया था... हल्के गुलाबी रंग की शिफॉन की जरदोजी वर्क की साड़ी ने उसके रंग रूप में चार चाँद लगा दिए थे।


‘पर यह बालों का विग असली बालों जैसा कैसे बन गया?’ स्वयं को शीशे में देखकर नीला ने आश्चर्यचकित स्वर में कहा ।


‘मेरा मित्र एक विग बनाने वाली कंपनी में काम करता है। उससे जब मैंने तुम्हारी समस्या बताई तो उसने तुम्हारा फ़ोटो लाकर देने के लिये कहा...मैंने तुम्हारा फ़ोटो उसे दे दिया...उसने अपना काम कर दिया।’  


नीला के चेहरे पर ख़ुशी देखकर विकास ने उसे अपनी बाहों में लेकर कहा, ‘अब तो तुम्हें बाहर जाने में कोई परेशानी नहीं होगी...।’


नीला की मौन सहमति प्राप्त पाकर प्रसन्नता से उसने कहा, ‘अब चलें, माँ और निशी बाहर तुम्हारा इंतजार कर रही हैं।’


‘ममा, आज बहुत सुंदर लग रही हो...।’ उसे बाहर आते देख निशी ने कहा।


‘जन्मदिन मुबारक बेटा, सदा ऐसे ही ख़ुशी-ख़ुशी रहा कर...। सच आज बहुत अच्छी लग रही है...जरा रूक, मेरी बेटी को अब किसी की नजर न लगे...।’ कहते हुए माँजी ने उसके कान के पीछे काला टीका लगा दिया।


‘माँजी आप तैयार नहीं हुई...।’ उन्हें साधारण कपड़ों में देखकर नीला ने पूछा।


‘नहीं बेटी, तुम लोग जाओ...।’


‘आप नहीं जायेंगी तो हम भी नहीं जायेंगे...हैं न निशी...।’ बच्चों की तरह मचलते हुए नीला ने कहा।


जिन माँजी के साथ उसका सदा छत्तीस का आंकड़ा रहता था, वही उसे अब बहुत ही ममतामई लगने लगी थीं...। सुख में तो सभी साथ देते हैं पर दुख में भी कोई इतना साथ दे सकता है, वह सोच भी नहीं सकती थी...। सच वह बहुत ही खुशनसीब थी जो ऐसे परिवार की बहू बनकर आई...। उसने सदा बहुओं पर सास के अत्याचार की घटनायें ही सुनी थीं बचपन से मन में पैठी इसी ग्रंथि के कारण वह उनके साथ कभी सहज नहीं हो पाई थी...। वह सदा उन्हें गलत समझाती रही और उन्होंने उसकी बातों को दिल से लगाये बिना ऐसे समय उसे संबल दिया जब उसे उनकी बेहद आवश्यकता थी ।

 

‘दादी, आप भी चलो न, आपके बिना मम्मी का जन्मदिन कैसे मनेगा...?’


सबके साथ जाते हुए नीला सोच रही थी कि अगर परिवार का साथ रहे तो इंसान बड़े से बड़ा दुख भी हँसते-हँसते झेल जाता है। उसके जीवन में भी एक जलजला आया था। परिवार के प्रेम और सहयोग के कारण शीघ्र ही चला भी गया तथा थोड़ी टूट-फूट के साथ भविष्य की ठोस जमीन भी तैयार कर गया।


पार्टी के पश्चात विकास ने नीला की ओर प्रेम भरी नजरों से निहारते हुए कहा, ‘तुम आज बेहद खूबसूरत लग रही हो...थोड़ा स्वास्थ्य में सुधार और होने के पश्चात अगर तुम चाहो तो अपना काम फिर प्रारंभ कर सकती हो...।’


‘तुम मेरा मज़ाक बना रहे हो...!’ अविश्वास से नीला ने उसे देखते हुए कहा।


‘मज़ाक...भला मैं तुमसे मज़ाक क्यों करूँगा... डाक्टर ने कह ही दिया है कि सब कुछ सामान्य है अब तुम अपनी सामान्य जिंदगी जी सकती हो फिर काम करने में क्या बुराई है…? कल ही प्रोडूसर दीनानाथ का फोन आया था, वह तुम्हें अपने एक नये सीरियल में लेना चाहता है शायद तुमने उसे मना कर दिया है, वह मुझसे सिफ़ारिश करवाना चाह रहा था। लगता है वह तुम्हारा बहुत बड़ा प्रशंसक है...।’  


‘हाँ, उनका फोन मेरे पास भी दो तीन बार आ चुका है पर मैंने याह सोचकर मनाकर दिया था कि ऐसे शरीर को लेकर कैसे दर्शकों के सम्मुख जाऊँगी पर आज मेरा आत्मविश्वास लौट आया है पर फिर भी मैं अभी काम नहीं करना चाहूँगी...। बहुत नाम और प्रसिद्धि पा ली है अब बस मैं तुम्हारे और निशी के लिये जीना चाहती हूँ...। निशी के बड़े होने के बाद अगर कभी मन किया, तब सोचूँगी पर अभी तो कदापि नहीं...।’ अपने निर्णय से अवगत कराती नीला का चेहरा संतुष्टि के एहसास से दमक उठा था।


‘पर क्या तब तक देर नहीं हो जायेगी...तुम्हीं तो कहा करती थी कि कलाकार का जीवन छोटा होता है...।’ विकास ने उसकी तरफ़ निहारते हुए कहा।


‘कहा था पर तब मैंने अपने परिवार और प्यार के बारे में नहीं सोचा था और न ही कभी इन रिश्तों की गर्माहट को महसूस किया था...। आज जब मैं परिवार की महत्ता के बारे में जान गई हूँ तब  लगता है कि मैंने यह फैसला पहले क्यों नहीं लिया…? निशी के बचपन का वह मासूम रूदन या किलकारियां क्यों मेरे पैरों में बेड़ियां नहीं डाल सकी…? जो हुआ सो हुआ पर अब मैं अपना पूरा समय निशी को समर्पित करने के साथ... उसकी प्यारी-प्यारी बातों एवं उसके मन में उठते विभिन्न प्रश्नों का समाधान करते हुए बिताना चाहती हूँ ।’ नीला ने उसके आगोश में समाते हुए दृढ़ स्वर में कहा।

   

नीला के निर्णय को सुनकर विकास सोच रहा था ...अच्छा हुआ या बुरा, यह तो वह नहीं जानता पर इतना अवश्य है कि इस घटना ने उसके बिखरते परिवार को एक कर दिया है...। किसी ने सच ही कहा है कि हर अँधेरे के बाद सुबह होती है...। नीला को आगोश में लिये वह सुबह की उजली किरण का इंतजार करने लगा...।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama