जिंदगी में बदलाव
जिंदगी में बदलाव
सरिता पटना शहर में रहती थी। सरिता पढ़ने में बहुत अच्छी थी। वह पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ घर के कामों में अपनी मम्मी की मदद किया करती थी। उसे लोगों की मदद करना बहुत पसंद था। वह सभी लोगों से अच्छे से बातें किया करती थी इसलिए उसके आस-पास के लोग उसे बहुत प्यार करते थे। एक दिन सरिता अपने बड़े भाई के साथ बाज़ार गई थी ,वही पर एक ग़रीब लड़की खड़ी थी जो की बहुत दिनों से भूखी थी। उसे कोई भी व्यक्ति खाने के लिए नहीं दे रहा था। उसी वक्त सरिता की नजर उस ग़रीब लड़की पर पड़ती है। सरिता उस लड़की के पास जाकर अपने थैले से बिस्कुट निकाल कर उसे खाने के लिए देती है। उसके बाद सरिता वहाँ से चले जाती है। रास्ते में वह देखती है कि जिस ग़रीब लड़की को उसने बिस्कुट खाने के लिए दी थी वह लड़की उसके पीछे -पीछे चली आ रही थी ,फिर सरिता वही पर खड़ी हो जाती है और उस लड़की
से पूछती है कि तुम मेरे पीछे क्यों आ रही हो ?
वह लड़की उस से कहती है कि मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। मैं अकेले ही इधर -उधर भटकती रहती हूँ। कभी सड़क के किनारे तो कभी बारिश में भींग कर, अपना समय गुजारती हूँ। मुझे कोई भी इंसान पेट भर खाने के लिए नहीं देता है ,यहाँ तक की मुझे कोई इंसान काम भी नहीं देता है। काम मांगने पर मुझे वहाँ से भगा देते है और मुझ से कहते है ज़रा ढंग के कपड़े पहन कर आओ। यदि मेरे पास सारे सुख सुविधाएँ होते तो क्या मैं यूँही रास्ते पर खड़े होकर भीख मांगती। यह सब बातें सुन कर सरिता के आँखों में आँसू आ जाते है। वह उस लड़की को अपने साथ अपने घर में ले जाती है। सरिता के माता-पिता सामाजिक कार्य करते थे।
सरिता के अंदर भी सामाजिक कार्य करने की भावना पहले से ही थी इसलिए वह उस लड़की के अंदर की भावनाओं को समझ जाती है और उसे अपने साथ ,अपने घर लाती है | यह देख कर उसके माता -पिता खुश हो जाते है की कम उम्र के होने के बावजूद सरिता को सही और गलत का फर्क पता चल गया। सरिता के माता -पिता अपनी बच्ची के साथ -साथ उस लड़की को भी पढ़ाते है साथ ही उसका नामकरण भी करते है क्योंकि उस लड़की का कोई नाम नहीं था उसे समाज में " ये , अरे " इस नाम से बुलाते थे लेकिन अब उसका भी एक नाम है - " संध्या "
इस तरह से संध्या के जिंदगी में बदलाव आ जाते है। यदि हमारे हाथों से किसी इंसान या ग़रीब लोगो की भलाई हो रही हो तो हमें कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए। अपने कदम हमेशा आगे की तरफ ही बढ़ाने चाहिए। किसी की मदद करते वक्त यह बिलकुल नहीं सोचना चाहिए की इसके बदले हमे क्या प्राप्त होगा।
