Beena Phulera

Romance

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Beena Phulera

Romance

जिंदा एहसास

जिंदा एहसास

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सूर्य अपनेनी ढलान पर है, शाम की अंतिम गाड़ी जिसमें प्रायः वही लोग आते हैं जो यहाँ वाशिंदे हो या फिर पास ही रेलवे स्टेशन की ओर जाने वाले, पुलियाँ के पास खड़ा दिनेश सूरज की उन किरणों को निहार रहा था जिन्हें अब सायंकाल की प्रेयसी खीच रही थी अपनी ओर ऊँची पहाड़ी की चोटी में स्वर्णिम रश्मिरथी सिर पर कलश रख कर धूलिअर्घ की बेला में ,दिन औऱ रात का इतना सुंदर मिलन कभी नही देखा था! दिनेश ने अचानक हॉर्न की आवाज ने उसे अपनी ओर खींच लिया , गाड़ी ठीक वही पर रुकी गांव के कुछ लोग उतर रहे थे, अचानक उसकी पीठ से कुछ टकराया एक बड़ा बैग उसके पैरों में गिर पड़ा ,और उसके पीछे काले रंग के कुर्ते में सुनहरी कढ़ाई उस पर सफेद दुप्पटे पर चमकते सितारों में लिपटी एक लड़की उसके सामने खड़ी जो उस बैग को खीच रही थी ,दिनेश ने पलट कर देखा उंसको लगा आसमान अपनी तारों की बारात लेकर झिलमिल करता उसके कदमों की ओर गिर पड़ा हैं उसने हड़बड़ा कर उसका बैग उठाया जैसे वह उसी का इंतजार कर रहा हो ।

कितनी तंग जगह पर उतार दिया रजनी ने दुप्पटा समेटते हुए कहाँ।" नही यही इसका रोज का अड्डा है मैं गलत जगह खड़ा था शायद" ,दिनेश ने रजनी की ओर देख कर कहाँ रजनी सकुचाई घबड़ाई सी लग रही थी ,शाम हो गयी थी उसने पर्स में से पता निकाल कर पढ़ने की कोशिश की, "लॉज-18 पुलियाँ के पास" ...ये कहाँ पर होगा ? दिनेश मुस्करा कर बोला "इसका पता तो नही, पर लगता हैं आप अब हमारे मेहमान औऱ आपका ठिकाना हमारे घर में ही है, रजनी घबड़ाई हुई इधर- उधर देख रही थी दिनेश ने बात संभाली, आइये आपको आपके घर ले चलते हैं, रजनी का सामान लेकर दिनेश घर की ओर चल रहा था आज पूर्णमासी थी रास्ते मे लोग अर्घ दे रहे थे चन्द्रमा को, दिनेश इतरा रहा था जैसे पूर्णमासी का चाँद उसके साथ हो औऱ लोग उन दोनों के आगमन पर खुश हो रहे हो ,रजनी मंदिम गति से उसके साथ चल रही थी।

200 मीटर की इस यात्रा में दिनेश औऱ रजनी दोनों चुपचाप थे, बस उनके जज़्बात बातें कर रहे थे , खडंजे से टकरा कर रजनी ठोकर खाकर गिर पड़ी ,दिनेश ने सामान फेंक उसे दोनों हाथों से उठाया आज से पहले कभी इतना कोमल स्पर्श उसने नही महसूस किया था।

थोड़ी देर पहले का वो प्राकृतिक मिलन उसके हृदय में उतर आया जैसे उस पहाड़ी पर दिन रात नही बल्कि उन दोंनो का मिलन हुआ हो गो धूलि में।

रजनी भी दिनेश के हाथों के स्पर्श से छुईमुई की तरह सिमट गई ,उसके लाल कपोल लज्जा की पंखुड़ियों से ढ़क गए, पलकों से ढ़की आँखे प्रेम की बूदों से लबालब हो उठी।शाम हो गयी थी दोनों ने एक दूसरे से नजरों में ही बातें कर ली, जो दिलों ने सुन ली थी इस घटित घटना से दोनों अनजान थे बिना किसी पूर्वाभाश के जीवन में घटित घटनाओं को लोग दुर्घटना कहते हैं परंतु इसे क्या कहे , दिनेश ने धीरे से कहा आपका नाम? "रजनी "। जैसे वीणा के तार झकृत हुए हो "मैं दिनेश "दिनेश ने अपना नाम बताया, वो देखो तुम्हारा घर आम ,अमरूद के पेड़ों से ढका जैसे तुम्हारी जुल्फों से ढका तुम्हारा चेहरा हो "और आप कहा" ...रजनी के वाक्य पुर्ण होने से पहले दिनेश ने कहाँ "हम भी आपके ही घर मे रह लेंगे "औऱ दोनो मुस्करा कर हँस पड़े, घर पास गया था ।दिनेश ने जोर से कहा डब्बू मेहमान आये हैं, ये सामान है।

रजनी अपनी बड़ी चचेरी बहिन के यहां आई थी । अरे बिट्टो आयी हैं ,उसकी चचेरी बहिन ने उंसको प्यार से बुलाया ,जीजाजी अपनत्व जताते बोल पड़े अरे "बिट्टो रानी ..! आज सूरज पश्चिम दिशा से तो नही आया ?" तीनो खिलखिला कर हँस पड़े , "हाँ जीजू पापा किसी काम से गये हैं तो आपके पास छोड़ गए लोटते समय ले जाएंगे मुझे "। बहुत बढ़िया किया ये तो उन्होंने अब कुछ दिन यही रहोगी तुम हमारे साथ ,"हाँ जीजू कहने औऱ करने में अंतर होता हैं भगा दोगें दो ही दिन में पता है सब" अरे तुम्हारी दीदी को एतराज न हो तो हम तुम्हें भी यही रख लें जीजू ने मजाकिया मूड में कहाँ।

"किसने रास्ता बताया तुमको वो जो मेरे" .... अरे दिन्नु के साथ आई अपने दीदी ने सपष्ट किया । "वो तो लड़कियों के नाम से चौकड़ी भरता है ! तुमको कैसे ले आया "? "आप को जानते होंगे जीजू ..."

" पगली "उनका ही तो मकान है ये ,बहुत शरीफ लड़का हैं, लिखता भी है,अरे...!" हाँ मैं तुमको मिलाता हूँ रुको"... दिनेश जी सुनिए आइये न अंदर दिनेश तो जैसे प्रतीक्षा में था जी आया इनसे मिलो ये हमारी प्रिय साली हैं बहुत अच्छी कविता लिखती हैं और बिट्टू ये हमारे मकान मालिक हैं लेखक व पत्रकारिता भी करते हैं इनके सराफत के किस्से मशहूर हैं, जीजाजी की बातों में दोनों का ध्यान नही था, उन दोनों की नजरें बातें कर रही थी, दिल जोर से धड़क रहे थे। दिनेश ज्यादा देर बैठ नही पाया, बिट्टू भी खुद को संभाल नही पा रही थी ।

पूरी रात पूरा चाँद आँगन में पड़ा रहा, दिनेश उसे निहारता रहा जो उसके करीब आ गया था रजनी के अंदर पहली बार किसी एसे एहसास ने जन्म लिया था । दिनेश ने मन के सारे जज्वात एक लंबे से कागज में सब उलट दिए ,प्रातः रजनी से मिलने की कोशिश करने लगा मिलन के संयोग पूर्व निर्धारित होते हैं वियोग की तरह, रजनी का कुछ सामान छूट गया था बस में ,दीदी ने दिन्नु को बुलाया और कहा दिनेश तुमको उस गाड़ी का न0 पता है बिट्टो का सामान छूट गया था छः बजे सुबह लौटती हैं वो गाड़ी ।दिनेश मौके की तलाश में था जी आप इनको भेज दो मेरे साथ ,मैं ले आता हूँ जानता हूँ वो गाड़ी आती होगी ।

रजनी दिनेश के साथ चली गयी। दिनेश का साथ उसे बहुत अलग एहसास दिला रहा था उठकर प्रातःकालीन पूजा में लगे लोग उन्हें एसे देख रहे थे जैसे कोई नवेली दुल्हन मंदिर जा रही हो ,सामने से आ रहीं दिनेश के साथ पढ़ने वाली कविता ने तो ताना ही मार दिया हाय दिनेश क्या बात। हैं आज तो !

गाड़ी के हॉर्न पर दिनेश दौड़ कर सामान ले आया" थैंक्यू" शब्द से रजनी ने फिर से दिनेश के दिल के तार हिला दिए।

"यह लम्बा रास्ता है यहाँ से चले कुछ देर बातें करते" दिनेश ने रजनी की ओर देखकर कहाँ रजनी ने फिर सहमति में अपनी नजरों का इस्तेमाल किया ,पास ही एक ऊँची चट्टानमें बैठ गए दोंनो, कल रात दिनेश ने जिस रजनी को एक सुनहरी परी की तरह आसमान से नीचे उतरते देखा था वही रजनी आज भोर के दिनेश को सफेद कुर्ते में अपने सामने की पहाड़ी से उतर कर अपने करीब आते देख रही थी जो अपने प्रेम की गंध घोलता उसके जेहन में समा रहा था। आज से कुछ साल पहले ऐसे ही सफेद घोड़े में सफेद कुर्ता पहने हाथ मे चाबुक लिए वो लड़का जो जबरदस्ती खींचकर ले जाता था अगले मोड़ में उसे छोड़ देता था, उस भयानक सपने को सामने देख कर दुविधा में पड़ी रजनी कुछ समझ नही पाई थी, कि दिनेश ने उसके बालों को हटा कर उस के गालो में अपने थरथराते होंठ रख दिये जिस के स्पर्श से रजनी का तन वदन तपने लगा कुछ पल को फिर से दोनों एक दूसरे की बाहों में सिमट गये थे दिनेश उसे छोड़ना नही चाहता था । रजनी झटके से खुद को उस भँवर से निकाल कर खड़ी हो गयी ,दिन निकल आया हमें चलना चाहिए।" रज्जू "अब कब मिलेंगे हम अपने घर हमेशा के लिए आ जाओ ना "बाकी मैने इस खत में लिखा है पढ़ लेना मैं जल्दी ही कुछ नॉकरी कर लूँगा, रजनी ने जैसे नज़रों से उसे आश्वस्त किया हो । दोनों मिलन ओर विछोह के दर्द से तड़पते घर की ओर चले पड़े ।

रजनी दिन में दो बजे की गाड़ी से चली गयी थी ।वो खत उसके हाँथ से वही छूट गया ,जिसे जीजू ने पढ़ लिया था रजनी जॉब में आ गयी थी उसकी शादी के लिए रिश्तेदारों ने बहुत रिश्ते भेजे ,कुछ तो उसे सीधे ही प्रपोज कर रहे थे पर रजनी को दिनेश ने बंधक बना दिया था। पहले प्यार के एहसास से , पिताजी से कहने का साहस नही था उसमें, एक दिन जीजू घर आये रजनी से सारी बातें जान कर पिताजी से बात की उन्होंने ,परंतु दिनेश की बेरोजगारी ने दो दिलो को पास नही आने दिया । उसे दिनेश पर भरोसा था वह खुद पहल करेगा । दो साल बीत गए पहले प्यार का एहसास हिलोरे मार रहा था रजनी के अंदर , संस्कार उसे बंधक बना रहे थे ,पिताजी ने जवाब भिजवाया चिन्ह साम्य नही हो रहा है खड़कास्ट है कह देना लड़ते रहेंगे जिंदगी भर वरना ......

रजनी का घर कही और बस गया दो साल बाद वह

अपने आँचल में दिनेश के प्यार को एहसासों में लपेट डोली में बैठ कर समंदर पार चली गयी , खुद को दिनेश का दोषी समझती औऱ उसे लगता दिनेश उसके बिना पूर्ण जीवन नही जी पायेगा ,जब अकेली होती उन क्षणों को याद कर रो पड़ती, उसे कभी भूल नही पाई उसके स्पर्श के एह्साह को अब अपने पतिं में महसूस करने लगती , रजनी दिनेश को अपने अंदर ही अंदर समा चुकी थी ऐहसासों में जी रही थी वो , एक बार उसे प्रत्यक्ष देखने की तमन्ना जरूर मन में थी उसके, परंतु अपने जिम्मेदारी के बोझ तले दबी कभी नजरों को फिराया ही नही कही ये बचपन का सच्चा प्यार भी न जाने एक ही बार मे क्यों अमिट हो जाता हैं और परछाई बनकर आजीवन पीछा करता हैं,।

आज रजनी औऱ दिनेश एक सम्मेलन में अचानक एक मोड़ पर फिर कुछ अलग अंदाज में मिले , अभिवादन परिचय " मैं रजनी पंत "इतना ही कह पाई मंच से रजनी उसकी नजर दिनेश पर पड़ी, उसे वो गजल याद आ गयी जो उसने कभी दर्द के डूबे समंदर में लिखी थी । कभी किसी को सुनाई नही थी ,रजनी की गजल के अंतिम पंक्तियों ने सभी को भाव विभोर कर दिया, दिनेश से रहा नही गया उसने रजनी के गले में अपने फूलों की माला डाल दी ,रजनी के आँखों से समंदर भर रहा था सभी खड़े हो गये सम्मान में , ग्रुप फ़ोटो खिंची जा रही थी दिनेश चुपचाप उसके बगल में आकर खड़ा हो गया पीछे से रजनी का हाथ पकड़ कर, रजनी के चेहरे की हवाइयां उड़ रही थी ।

भीड़ के हटने पर रजनी ने शिकायत भरी नजरों से दिनेश की ओर देखा जिसमें हजार प्रश्न थे ,दिनेश के पास उसके प्रश्नों का उत्तर नही था। रजनी उसे आज भी उतना ही चाहती थी जितना उसने उस दिन पहले एहसास में महसूस किया था ।

दो कदम के फासले में खड़ी रज्जो की फाइल नीचे गिर गयी हाथों से रज्जो निर्जीव खड़ी थी । उसे लगा दिनेश अपनी रज्जो को आज भी वैसे ही गले लगा लेगा, परंतु दिनेश ने रजनी की फाइल उठा कर कहा । "और कहा हो तुम आजकल रजनी .."? रजनी ने धीरे से जवाब दिया "आपके आस पास ही हूँ ।" आपने कभी खबर भी नही ली । दिनेश बहुत तटस्थ भाव से बोला पता नही तुम कहाँ चली गयी थी ,तुम्हारे जाने के बाद

मेरी जिंदगी में कविता आ गयी थी ,उससे प्यार हो गया था मुझे तो यार ,,क्या....? तो मेरे साथ ...हा रजनी शायद वो उम्र का बहाव या एक एट्रेक्शन रहा होगा । रजनी को दिनेश की इन बातों ने एक जोरदार चाटा उसी जगह पर जड़ दिया ,जिस गाल में पहले प्यार का एहसास जिंदा था उसका चेहरा लाल से सफेद हो गया खुली आँखे भर आयी उसने उस चेहरे को गौर से देखा उसे वो भोला भाला दिनेश दिखाई नही दिया , जिसे वो आज भी अपने एहसासों में छुपाए हुए थी ,लड़खड़ाते कदमों से लौट रही थी, रजनी बहुत हल्की होकर , क्या बचपन का प्यार भी कोई भूल सकता है? शाम होने को थी वही गोधूलि का समय ....

दिनेश उसे आवाज दे रहा था ,रजनी ....

वह ढलती शाम की तरह पहाड़ी के ढलान में उतर गई

आँचल में जिंदा एहसासों को समेटती ....!




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