जीवन की मुस्कान
जीवन की मुस्कान
बरसात का मौसम यानी रिमझिम गिरता सावन और होने लगती है दिल में एक अजीब सी गुदगुदी। मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू सांसो में महकने लगती है। बरसात का मौसम किसी के लिए खुशहाली लाता है, तो किसी के लिए मस्ती। और मस्ती भरा मन आसमान में घिरी काली घटाएं देखते ही मयूर बनकर नाचने लगता है। और पंख लगाकर उड़ने लगता है। ऐसे ही उड़ते मेरे मन ने अबकी बार परिवार और अनामिका की शिकायत दूर करने के लिए ऑफिस की 3 दिन की छुट्टी में दोस्त के साथ किसी हिल स्टेशन जाने का प्रोग्राम बना लिया। मेरे इस प्रोग्राम से अनामिका और बच्चे बहुत खुश थे। अनामिका ने तो हफ्ते भर पहले ही सारी तैयारियां भी शुरू कर दी। उस दिन घर में खुशी का माहौल था। हम पूरी पैकिंग करके दोस्त की राह देख रहे थे। वो अपनी कार लेकर हमें लेने आने वाला था। सुबह के 11 बज चुके थे। तभी डॉरबैल बजी, अनामिका ने लपककर दरवाजा खोला। सामने मां खड़ी थी। वे बिना सूचना के गांव से कुछ दिन हमारे साथ रहने आयी थी। हमने बिना किसी से कुछ कहे घूमने का प्रोग्राम कैन्सिल कर दिया, हालांकि मां ने कहा भी था तुम लोग घूम आओ, 3 दिन की ही तो बात है मैं अकेली रह लूंगी। मैंने दोस्त को हमारे कैन्सिल प्रोग्राम की फोन पर सूचना दे दी। वे लोग घूमने चले गये।
शाम के 4 बज रहे थे। हम सब घर पर बैठे चाय पी रहे थे, लेकिन अनामिका के मन में अभी थोड़ी उदासी थी। वह बोल रही थी वे लोग तो पहुंच गये होंगे। तभी मेरे फोन की घंटी बजी। मैंने चाय पीते-पीते फोन अटैण्ड किया, अचानक मेरे हाथ से चाय का कप छूट गया। चार घण्टे पहले जिस दोस्त की कार में बैठकर हम जाने वाले थे, उसका एक्सीडैण्ट हो गया था। आज वो हमारे बीच नहीं है, लेकिन मां ने आकर मेरी और मेरे परिवार की जान बचा ली थी। क्योंकि जब भी चलती है आंधी मुसीबत की मां की ममता मुझे आंचल में छिपा लेती है।
