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जीवन की मजबूती

जीवन की मजबूती

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चाँदी और लोहा आपस में झगड़ रहे थे। चाँदी बोली, " मैं बड़ी हूँ। मैं तेरे से महंगी हूँ। लोग मुझे तुझसे ज्यादा चाहते हैं, मैं लोगों के गले हाथ, पैरों व अलमारी की शोभा बढ़ाती हूँ और तू तो हर कहीं पड़ा रहता है।"

चाँदी की बात सुन लोहा बोला," काहे की बड़ी है, तेरी चमक केवल एक लोक दिखावा है, मुझे पता है तू अन्दर से बिल्कुल कमजोर है, खोखली है। हल्की सी चोट भी सहन नहीं कर पाती और मोम की तरह पिघल जाती हो। देखो मुझे मैं कुरूप ज़रूर हूँ ,पर अन्दर से कितना मजबूत हूँ। मुझे आग में तपाकर कितना पीटा जाता है, उफ्फ ! तक नहीं करता और तो और धरती का सीना फाड़ सबका पेट भरता हूँ। लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाता हूँ, और क्या बताऊँ अन्य क्या-क्या कार्य करता हूँ। जीवन में मज़बूती का होना जरूरी है।

और तो और अगर मुझे पारस पत्थर से तराशा जाए तो खरा सोना बन निकलूँगा। तू तो केवल चाँदी ही रहेगी।"


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