"जीत के बाद"
"जीत के बाद"
"अरे अमिता आज इधर कैसे"
पलटकर अमिता देखती है तो सामने दरवाज़े पर मधु को खड़ा देख कर चौक जाती है। तुरंत संभलकर बोलती है ...
"अरे मधु तुम यहाँ रहती हो, कभी बताया नहीं"
"भई अमिता अब तुम्हें पुराने दोस्तों से क्या वास्ता, न कभी खैर खबर ली ना हाल चाल जाने, बड़े अफ़सर से शादी के बाद तुम तो हम सब को भूल ही गई"
"अरे नहीं नहीं मधु ऐसा कुछ भी नहीं, बस घर गृहस्थी के चक्कर में फुर्सत ही कहाँ मिलती है, बच्चों की देखभाल, पति देव की सेवा बस इसी में दिन पूरा हो जाता है"
"अरे अब दरवाज़े पर ही खड़ी रहोगी या ग़रीब की चाय भी पिलाओगी, चलो आओ आओ अंदर तो आओ"
अचानक मिली बचपन की सहेली का आग्रह नहीं टाल सकी अमिता। चाय की घूंट भरते ही मधु फिर पूछती है
"अच्छा अमिता तुमने बताया नहीं, हमारी इस गली में तुम्हारा कैसे आना हुआ ?"
सकपकाई सी अमिता से बताया नहीं जा रहा था कि वो अलका का घर ढूंढने आई थी। जिस अलका ने उसकी बसी बसाई गृहस्थी में आग लगा दी है। उसी के कारण उसके पति उससे दूर हो गए और घर टूटने के कगार पर आ गया। अमिता कैसे कहे कि उसके पति का अपनी सहायिका से चक्कर चल रहा है जिसके कारण पति पत्नी में तनाव बढ़ता जा रहा है। बहुत कम बोलने वाले सच्चे अच्छे काबिल इंसान के रूप में जाने, जाने वाले उसके अफ़सर पति कैसे इस अलका के प्रेम जाल में फँस गए ।
"अरे कहाँ खो गई अमिता, मैंने कुछ गलत सवाल पूछ लिया क्या ? हाथ हिलाते हुए मधु ने कहा"
बुदबुदाते हुए अमिता के मुंह से निकल गया ...
"वो ....वो अलका ...अलका ..."
"ओह ... तो तुम अलका दी को ढूंढ रही हो ...
अमिता कुछ बोलती उससे पहले ही मधु बोलने लगी ...
"क्या बताऊँ अमिता, इस लड़की की क़िस्मत पे रोना आता है, तुम्हें मालूम है इतनी काबिल और होशियार ये लड़की, पूरे राज्य में टॉपर रहने वाली आज किस दौर से गुज़र रही है । अपने बूढ़े बीमार लकवा ग्रस्त पिता की देखभाल भी कर रही है और सरकारी विभाग में जिम्मेवारी के पद पे काम भी कर रही है। इसके पिता जाने माने 'प्रोफेसर' जिनके पढ़ाये हुए अनेक शिष्य आज ऊँचे ऊँचे पदों पे विराजमान है। अभी कुछ दिनों से प्रोफ़ेसर साहब की तबियत बहुत ज्यादा खराब चल रही है, तो अलका ऑफ़िस भी नहीं जा रही थी, घर से ही काम निपटा रही थी तो ऑफ़िस से कई लोगों का आना जाना लगा रहता है। पर देखो ये कैसी दुनिया है ? न जाने किसने पुलिस में इनकी शिकायत कर दी कि ये गलत काम करती है और बहुत आदमियों का इनके यहां आना जाना रहता है। सुना है कोई बड़े अफ़सर हैं जो इसके पिता के शिष्य भी रहे वो ही इसके बॉस हैं। वो तो अक्सर ही यहां आते जाते रहते हैं। अपने गुरु के प्रति इतनी कृतज्ञता तो बनती है ना। लेकिन सोचो उस शिकायत करने वाले को क्या मिला जिसने इस मजबूर लड़की पर इतना घिनोना इल्ज़ाम लगाया। सच में ये दुनिया बहुत खराब है। लोग जाने क्यों अच्छे लोगों के पीछे पड़े रहते हैं।
अलका की सारी हक़ीक़त जान कर अमिता का दिल कर रहा था कि वो चीख चीख कर रोये और कहे कि हां वो मैं ही हूँ जिसने एक मासूम लड़की पर इतना घिनोना इल्ज़ाम लगाया। अपनी जीत की ख़ातिर मैंने एक निष्कलंक मासूम लड़की का जीवन बर्बाद कर दिया।
तुम्हें कैसे कहूँ मधु जीवन शह और मात का खेल नहीं .... त्याग समर्पण और कृतज्ञता भी है जिसे मैं समझ न पाई ।
और बड़ी मुश्किल से अपने आँसू रोकते हुए अमिता अपने घर लौट गई ...!!
