जी उठी वो
जी उठी वो
मीरा अपने घर के बाहर खड़ी थी। उसने देखा कि बहुत सारे लोग उसके घर आ रहे हैं। सबने सफेद कपड़े पहने हुए हैं। मीरा ने सोचा,"मैं घर के दरवाजे पे खड़ी हूँ। ये सब लोग न तो मेरी तरफ़ देख रहे हैं,न ही मुझ से बात कर रहे हैं। सीधा घर में घुसे जा रहे हैं। अंदर जा कर देखती हूँ कि माजरा क्या है ?"
अपने आप से बातें करते-करते मीरा घर के अंदर दाखिल होती है। अंदर आकर देखती है कि घर में बहुत सारे लोग जमा हैं। सब ने सफेद कपड़े पहने हुए हैं।
अचानक से उसने अपने बच्चों के रोने की आवाज़ सुनी। वो भाग कर अपने कमरे की तरफ गई। उसने देखा कि कमरे में एक बॉडी को नीचे लिटाया हुआ है और उसे सफेद कपड़े से ढका हुआ है। उसके पति कमरे के एक कोने में बैठ कर रो रहे हैं और बच्चे जो़र-ज़ोर से रोते हुए कह रहे थे,"मम्मा उठो न। "
मीरा हैरान रह गई। "वह तो यहां है। बच्चे ऐसा क्यों बोल रहे हैं ?"
वह उस बॉडी के पास गई और उसके मुँह से कपड़ा हटा कर देखा तो सन्न रह गई।
"ये तो मेरी बॉडी है। तो फिर मैं कौन हूँ ? ? ओह ये तो मेरी आत्मा है। ये कैसे हो सकता है ?
मैं ऐसे नहीं जा सकती। मैंने तो अभी अपने बच्चों का अच्छे से पालन -पोषण करना था। उन्हे अच्छे इंसान बनाना था। मैं ऐसे नहीं जा सकती। मेरे बच्चों को मेरी जरूरत थी। इनका क्या कसूर था। "
फिर उसके कानों में उसकी पड़ोसन गीता की आवाज़ पड़ी," इतनी अच्छी थी मीरा। पता नहीं क्यों आत्महत्या कर ली उसने ?"
अरे ये तो वही गीता थी जो सारे पड़ोस में उसके बारे में उल्टी -पुल्टी बातें करती रहती थी।
अगली आवाज़ उसकी सास की थी,"कितनी सुघड़ थी हमारी मीरा। सारे घर को इतने अच्छे से संभाला हुआ था। "
क्या हमारी मीरा ! ! हंसी आ गई मीरा की आत्मा को। ...आज तक तो उसे पराई बेटी कह कर ही धिक्कारती आई थी और क्या कहा ....... सुघड़.. कल रात को ही तो कह रही थीं उससे कि कोई काम ढंग से नहीं होता तुमसे।
तरस गई थी वो प्यार के दो शब्द सुनने के लिए। सोच में पड़ गई मीरा की आत्मा ..."क्या इस दुनिया में तारीफ़ सुनने के लिए.... प्यार के दो शब्द सुनने के लिए मरना पड़ता है। क्या जिंदा इंसान से प्यार के दो शब्द नहीं रहे जा सकते कि वो आराम से जी सके ? ?"
इन्ही विचारों में गुम थी कि पंडित जी की आवाज़ आई," अंतिम संस्कार का समय हो गया है। इनका आखिरी कपड़ा जो कि मायके की तरफ़ से होता है,ले के आइए।"
इतने में देवरानी बोली कि अभी मायके वाले पहुंचे नहीं हैं और बुदबुदाने लगी," कभी टाईम से नहीं आते। आज तो टाईम से आ जाते़। सुबह से चाय तक नहीं पी जेठानी के मातम के चक्कर में। "
मीरा फिर से हैरान... "हे भगवान् ! ! ये कैसे दस्तूर बनाए हैं तूने। माता-पिता शादी के इतने साल तक देते रहे । जिस घर में ब्याह कर आई... इतने साल जिस घर के लिए जीती रही,जिस घर के लोगों के सारे काम करती रही उस घर से उसके लिए अंतिम कपड़ा भी उसे नसीब नहीं होगा। उसके मायके वाले इतने दूर से आ रहे हैं। कैसे तय कर पा रहे होंगे वह यह सफ़र.....। वो भी अपनी बेटी को आखिरी बार देखने के लिए !"
लो भई ! आ गए मीरा के मायके वाले। जल्दी कीजिए कपड़ा दीजिए। अंतिम संस्कार का समय हो गया है।
उसकी माँ फ़फ़क पड़ी। भाग कर मीरा की बॉडी पर गिर गई।
उसके बच्चों को देखकर बिल्ख पड़ी,"क्यों किया पगली तुमने ऐसा ? इन मासूम बच्चों के बारे में तो सोच लेती। सबकी कमी पूरी हो जाएगी लेकिन हमारी बेटी की और तेरे बच्चों की माँ की कमी कभी पूरी नहीं होगी। "
मीरा को फिर से याद आया ...गई थी वो माँ के पास। कहा था माँ-पापा से... "नहीं सहन होता अब माँ !थक गई हूँ मैं...। "माँ-पापा ने समझा कर वापिस भेज दिया था. "लोग क्या कहेंगे...हम कब तक जिंदा रहने वाले हैं... क्या भरोसा... कहां भटकेगी बच्चों को लेकर...अकेली औरत को कोई सहारा नहीं देता... लड़की की जिस घर में डोली जाती है वहां से उसकी अरथी ही उठती है। "
अब पापा रो रहे हैं...कह रहे हैं"...काश ! तुम्हें उस दिन वापिस नहीं भेजा होता...।"
पर इस काश का तो अब कोई फायदा नहीं है पापा !
पंडित जी ने कपड़ा ओढाया, औरतों ने उसका श्रृंगार किया,पति ने माँग में सिंदूर भरा।
औरतें बातें कर रही थीं,"सुहागन गई है। कितनी किस्मत वाली है। "
अब कंधों पर उठाने के लिए तैयार थे पति देव...
जिस ने हमेशा पैरों की जूती समझा... उसका वजूद ही मिटा दिया... कभी ऊपर उठने नहीं दिया... आज वो पति देव कंधों पर उठाने के लिए तैयार हैं।
काश ! कभी जीते जी उसे बाहों मे उठा लिया होता !
जैसे ही उसे उठाने के लिए तैयार हुए...बच्चे उससे चिपक गए।
"दूर हो जाओ हमारी मम्मा से...हम कहीं नहीं जाने देंगे मम्मा को... मम्मा उठो न !"
उठ कर बैठ गई मीरा...
ये क्या !आस -पास कोई नहीं था। पसीने से लथ-पथ थी वो। बच्चे उससे चिपक कर सो रहे थे। मतलब यह सब सपना था। सपना ही था ये लेकिन आज वो जागी नहीं जी उठी थी।
जी उठी वो !
हां... जी उठी वो !
अपने बच्चों के लिए, अपने स्वाभिमान के लिए, अन्याय से लड़ने के लिए, अपनी पहचान बनाने के लिए, अपने सपनों को पूरा करने के लिए..जी उठी वो...हां...आज जी उठी वो...।