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Sangya Nagpal

Inspirational

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Sangya Nagpal

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माँ मैं तुम्हारी माँ बन जाऊँगी

माँ मैं तुम्हारी माँ बन जाऊँगी

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माँ शब्द बोलते ही जैसे मूँह में मिश्री घुल जाती है। माँ शब्द है ही इतना मीठा। माँ दुनिया का सबसे प्यारा रिश्ता है। लड़कियों के लिए ये रिश्ता कुछ ज़्यादा महत्तव रखता है। लड़कों को तो औरत के हर एक रिश्ते में माँ का अक्स मिल जाता है। वो माँ,बहन,पत्नी,बेटी हर एक रूप में माँ का अवतार ले कर देखभाल करती है,नसीहत भी देती है और प्यार भरी डाँट भी लगा देती है लेकिन लड़कियों को अपने जीवन में माँ केवल एक बार ही मिलती है। वो ढूंढती है अपनी माँ का अक्स लेकिन माँ के जैसा स्नेह भरा हाथ रखने वाला कोई नहीं मिलता।

  माँ के साथ जितना चाहे हँस के बात कर लो वो जान ही जाती है कि आज उसकी लाडो उदास है। बिना जाहिर किए अपनी आँखों के कोर पोंछते हुए नसीहत भी दे डालती है कि अपना ध्यान रखा करो ठंड बढ़ गई है। बेटी का दिल भी समझ जाता है कि माँ के दिल तक वो नमी पहुंच गई है जो बात करते-करते आँखों के कोर से गाल तक आ गई थी।

माँ तो आखिर माँ होती है अब मैं भी ये जान गई हूँ मैं। इसलिए तो जब उदास होती हूँ तो फोन ही नहीं करती। तुम चाहे लाख कहो माँ,"तुम तो अपनी माँ को भूल ही गई हो। "

भूली नहीं हूँ मैं तुम्हें माँ ! अब मैं भी माँ बन गई हूँ। तुम्हारा अक्स ढूंढते-ढूंढते मैं खुद ही तुम्हारा अक्स बन गई हूँ। चुपके से आँखों के कोर पोंछने मुझे भी आ गए हैं। तुम बहुत याद आती हो माँ जब सुबह उठने का मन नहीं होता। दिल करता है कि कोई चाय का कप लेकर सिरहाने खड़ा हो और कहे,"जल्दी उठ चाय ठंडी हो रही है। " तब मन में ये ख्याल आता है कि माँ तुम्हारा भी तो मन करता होगा न सुबह-सुबह बिस्तर में चाय पीने का। इस बार मैं छुट्टियों में आऊँगी न तो तुम्हें बिस्तर में चाय पकड़ाऊँगी । ये मत कहना,"आराम कर ले दो दिन। काम करते-करते ही तो आई है। "

माँ तुम बहुत याद आती हो जब सब को खाना खिला कर जब खुद ठंडा खाना खाती हूँ तब सोचती हूँ कि तुमने भी हमेशा ठंडी रोटी ही खाई माँ। इस बार मैं तुम्हें अपने हाथ की गरम रोटी खिलाऊँगी।

तुम याद आती हो माँ जब मैं अपनी लाडो के बालों में तेल लगाती हूँ और कहती हूँ,"इधर आ,तेल लगवा बालों में। क्या हाल कर रखा है बालों का। "इस बार मैं अपने सिर की मालिश के साथ-साथ तुम्हारे बालों में भी तेल लगाऊँगी माँ। नानी को गए तो बरसों बीत गए,तुम्हारा भी दिल करता होगा माँ की छोह महसूस करने का।

अब और क्या-क्या बताऊँ माँ । कोई ऐसी बात ही नहीं जहां तुम याद न आती हो। ये लिखते-लिखते आँखों की नमी गालों तक आ गई है पर मैंने पोंछ लिया है माँ तुम्हारे जैसे। अब तो बच्चे भी कहने लगे हैं कि मैं उनकी नानी जैसे हो गई हूँ।

बस माँ और नहीं लिख पाऊँगी । माँ का अंत तो भगवान् भी नहीं पा सकता मेरी क्या औकात है। माँ को भी माँ की कमी महसूस होती है बस इतना जानती हूँ।

तो इस बार आप भी छुट्टियों में अपनी माँ की माँ बन कर जा रही हैं न।


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