झूठा ईनाम
झूठा ईनाम
मैं क्या बता सकती हूँ आपको अपने जीवन के बारे में ? कुछ होना भी तो चाहिए और मेरे पास एक छोटी सी याद ही है जो मेरे मन की तसल्ली के लिए काफी है कि जीवन में एक बार ही सही मुझे एक झूठा इनाम मिला था।
वह मेरे मोहल्ले का स्कूल था, नानी के घर के ठीक पीछे। मुझे वहाँ पर पहुँचने के लिए मुझे बीस मिनट लगते थे। मैं पहले साइकिल के पीछे वाले कैरियर पर बैठाई जाती थी। फिर मेरी नानी मुझे पकड़ती थी ताकि मैं गिर ना जाऊँ। फिर धीरे धीरे साइकिल वाले भैया जो अपने मोहल्ले के ही होते थे, साइकिल चलाकर मुझे स्कूल तक ले जाया करते थे। फिर नानी मुझे स्कूल के अंदर तक ले जाकर बैठा आती थी।
स्कूल का नाम था राधा विद्या मंदिर। एक स्थानीय स्तर का स्कूल जो उसी साल बन्द होने जा रहा था। दो कमरो में चलने वाला वह स्कूल मेरे लिए बहुत कुछ अलग था।
वहाँ सब बच्चे एक से कपड़ों में आते थे (मेरा मतलब यूनिफॉर्म से है) लेकिन मैं नहीं क्योंकि मैं कुछ विशेष थी। मुझे यह विशेषता कभी पसंद नहीं आयी और फिर भी मैं इस विशेषता का आनंद लेने को विवश थी।
वहाँ पर सभी बच्चे जमीन पर कपड़े की दरी बिछा कर बैठा करते थे लेकिन मेरे लिए एक विशेष सिंहासन का प्रबंध किया गया था। एक छोटी मेज और बाँस का मूढ़ा जिस पर लाल रंग का कपड़ा चढ़ा हुआ होता था। वहाँ बैठकर ऐसा लगता था मानो किसी ने मेरे जीवन का दायरा बाँध दिया है।
मैं अपने स्कूल की सबसे प्रिय छात्रा थी और सबसे होशियार भी। वहाँ पढ़ाने वाले मास्टर जी मुझे बहुत स्नेह करते थे और बच्चे मेरी मदद करते थे।
उस दिन स्कूल का वार्षिकोत्सव था। सभी बच्चे एक ही कमरे इकट्ठा हुए थे। सभी के चेहरों पर एक अलग ही खुशी झलक रही थी। आज सभी छात्रों को उनके द्वारा किए गए कार्यों के अनुसार कुछ न कुछ इनाम मिलने वाला था।
कुछ समय बाद छात्रों में इनाम वितरण समारोह शुरू हुआ। सभी को कुछ न कुछ मिल रहा था। मुझे कोई उम्मीद नहीं थी कि मुझे भी कोई इनाम दिया जा सकता है।
कुछ समय बाद जब मेरा नाम इनाम के लिए पुकारा गया तो मुझसे ज्यादा आश्चर्यचकित और कोई व्यक्ति नही था। "मुझे किस काम के लिए इनाम दिया जा सकता विद्यालय की सबसे शांत छात्रा के साथ-साथ जब मेरा नाम लिया गया तो मुझे एक झटका सा लगा। मैं स्कूल में सबसे बातूनी लड़कियों में से एक थी लेकिन अध्यापकों के सामने आते ही एकदम चुप हो जाती थी।
जब मैंने कुछ आगे बढ़ कर सोचा तो मुझे याद आया कि जब बच्चे लंच टाइम में कक्षा के अंदर शोर मचाया करते थे तो मैं उस समय अपना बची हुई पढ़ाई पूरी किया करती थी।
मैं जानती थी कि इस तरह की कोई भी श्रेणी इनाम देने के लिये नही होती थी इसलिए मुझे पता था कि मुझे खुश करने के लिए यह श्रेणी का चुनाव किया गया है। मुझे उस वक्त खुशी हुई या नहीं कह नही सकती लेकिन मुझे जो इनाम मिला था उसे लेकर मैं बहुत ज्यादा खुश थी।
मुझे एक पेन्सिल बॉक्स दिया था जिसके ऊपर एक प्लास्टिक का कवर था और जिसके अंदर एक छोटी सी भूलभुलैया थी और तीन छोटी छोटी गोलियाँ जिन्हें उनके नियत स्थान पर पहुँचाना होता था।
उस दिन मुझे इस से ज्यादा कुछ भी समझ नहीं आया था कि यह इनाम मेरी योग्यता के लिए नहीं बल्कि मुझे खुश करने के लिए दिया जा रहा है लेकिन आज मुझे इस बात की खुशी है कि उस समय मेरे अधयापक मेरे बारे मे इतना सोचते थे और तसल्ली इस बात की है कि जिंदगी में एक बार ही सही मुझे भी एक इनाम मिला था फिर चाहे वह झूठा ही क्यों न हो।