जागी आँखों का स्वप्न्न

जागी आँखों का स्वप्न्न

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सुबह चाय बना कर मनीषा किचन से निकली ही थी कि दरवाजे के नीचे अखबार झाँकता नजर आया। चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पढ़ने का मजा कुछ और ही रहता है। किंतु पति और बच्चों के हाथ से निकल कर नुचे-तुड़े अखबार को पढ़कर ऐसा लगता है जैसे कि सारी की सारी खबरें ही बासी हो गई हैं। इसी के साथ अखबार पढ़ने का सारा मजा किरकिरा हो जाता है।

आज छुट्टी का दिन है छुट्टी का दिन उसके लिए खास अहमियत रखता है। पूरे हफ्ते के बचे कामों को निपटाना साफ सफाई करना तथा कुछ स्पेशल बनाना अर्थात हर दिन से भी ज्यादा व्यस्तता पर आज फ्री है एकदम फ्री ...क्योंकि मलय ऑफिशियल टूर पर तथा बच्चे दो दिन के लिए अपने चाचा चाची के घर गये हैं।

 ताजा अखबार के साथ चाय की चुस्कियां लेते लेते हो मनीषा की नजर एक विज्ञापन पड़ी...विवाहित महिलाओं के लिए एक कॉस्मेटिक कंपनी सौंदर्यप्रतियोगिता अर्थात श्रीमती 2020 का आयोजन कर रही है जिसके लिए आवेदन पत्र मांगे हैं। 

अचानक मनीषा के मन में बीते कल का सपना जागृत हो उठा। जब वह किशोरावस्था के उतार-चढ़ाव से अभिभूत रूपसी षोडशी थी। पाँच फीट,आठ इंच की दूधिया रंग के दूधिया सौंदर्य से ओतप्रोत वह जिधर से भी निकल जाती, लड़के तो लड़के लड़कियाँ भी उसकी ओर टकटकी लगा कर देखती रह जाती थीं। कंटीले नैन नक्श के साथ शरीर के कटाव भी उतने ही खूबसूरत थे। वह कोई भी ड्रेस पहन लेती , सौंदर्य छलक छलक पढ़ता था।

उसकी अभिन्न सखी स्मिता का कहना था कि उसे सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेना चाहिए। यही राय उसकी क्लास टीचर विनीता की थी। उन्होंने उसे शहर में आयोजित सौंदर्य प्रतियोगिता' मिस लखनऊ 'में भाग लेने के लिए प्रेरित भी किया था। जब उसने विनीता मैडम की बात अपनी माँ से कही तो वह उबल पड़ी थीं। 

वह आम रूढ़िवादी सोच वाली नारी थीं। वह अपनी पुत्री के किशोरावस्था के उबाल को सहेजकर उसे दुनिया की नजरों से बचाकर रखना चाहती थीं। उन्होंने यह कहकर साफ मना कर दिया था ना बाबा न...सौंदर्य भी कोई दिखाने की चीज होती है। वह तो ढका छुपा ही अच्छा लगता है। ना जाने यह लड़कियाँ कैसे इतने लोगों के सामने अर्धनग्न अवस्था में परेड करती हैं।  

तब मनीषा को अपनी माँ की संकुचित विचारधारा पर क्रोध भी आया था। वह विवश थी... जिस समाज में वह रहती थी, उसके नियम कानूनों को उल्लंघन करने तथा अपने माता-पिता के विरुद्ध जाने का उसमें साहस नहीं था। जब वह अपनी कुछ अत्याधुनिक सखियों को जींस जैकेट तथा मिनी स्कर्ट में घूमते तथा अपने बॉयफ्रेंड के साथ डेटिंग पर जाते देखती तब उसके मुँह से आह निकल जाती थी। उसे लगता था कि वह जीवन के वास्तविक आनंद से वंचित है पर माँ के कठोर अनुशासन ने उसे कभी इस तरह के कपड़े पहनने की इजाजत नहीं दी थी।

 माँ का मानना था कि केवल उल्टे सीधे कपड़े पहन लेने मात्र से ही कोई आधुनिक नहीं बन जाता। आधुनिक बनने के लिए हमें अपने विचारों में भी परिवर्तन लाना होगा। अपनी कथनी और करनी में सामंजस्य बिठाना होगा जो हम जैसे मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए असंभव है। मैं या तेरे पिता एक बार ऐसे आयोजनों में मुझे भाग लेने की इजाजत दे भी दें किंतु क्या हमारा समाज तुझे उस रूप में स्वीकार कर पाएगा ? क्या बाद में तेरे या तेरे भाई के विवाह में अड़चन नहीं आयेगी ? लोगों के व्यंग्य बाण क्या हमें चैन से रहने देंगे ? तेरा आचरण कहीं हमारे परिवार को मुश्किल में ना डाल दे। वैसे भी दो मुंहा व्यवहार करने वाले व्यक्ति जीवन में कभी मानसिक शांति नहीं प्राप्त कर सकते। हमारे संस्कार एवं विचार हमें असामाजिक एवं अमर्यादित आचरण करने की आज्ञा नहीं देते। वैसे मेरे विचार से ये सौंदर्य प्रतियोगिताएं स्त्रियों का शोषण ही करती है मानवर्धन तो कतई नहीं करतीं

 समय के साथ उसके विवाह के लिए माता-पिता की दौड़-धूप प्रारंभ हुई पर उसका लंबा कद और उसका अद्वितीय सौंदर्य ही उसका दुश्मन बन बैठा । आखिर माता-पिता की मेहनत रंग लाई , मलय के रूप में उसे जीवन साथी मिल ही गया। कहने को मलय थे आधुनिक पर सुंदर पत्नी के साहचर्य ने उन्हें आवश्यकता से अधिक ईर्ष्यालु बना दिया था। यद्यपि वह जहाँ भी जाते, उसे सदा साथ लेकर जाते किंतु जब अपने किसी मित्र को उससे बात करते देखते तो वह अनायास ही असहज हो उठते थे। शायद ईर्ष्या की चिंगारी ना चाहते हुए भी उन्हें अपने जाल में फ़ांस लेने में कामयाब हो जाती थी किंतु क्षणांश में उसे काटकर फेकने को आतुर भी होते थे। यही उनकी खासियत थी जो उसे पसंद थी।

मलय ने मनीषा पर कभी किसी बात का अंकुश नहीं लगाया था तथा उसे आत्मनिर्भर बनाने में यथासंभव सहयोग दिया था। उनके ही प्रयत्नों का फल था कि उसने विवाह के पश्चात पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया तथा एम.फिल करने के पश्चात डिग्री कॉलेज में लेक्चरर के पद पर नियुक्त हो गई। आज वह अपने विभाग की हेड है, मान सम्मान है, जिसका श्रेय मलय को ही जाता है।

घंटी की आवाज सुनकर मनीष बाहर गई... देखा दूध वाला है। दूध ऊबालते हुए ही उसने अपने लिए नाश्ता बनाया। वह नाश्ता कर ही रही थी कि काम करने वाली आ गई।

 किसी के ना रहने पर कोई काम ही नहीं नजर नहीं आ रहा था वरना छुट्टी के दिन बच्चे तरह-तरह की फरमाइश कर पूरे हफ्ते की वसूली करना चाहते हैं और वह भी खुशी-खुशी उनकी फरमाइश को पूरा कर संतोष का अनुभव किया करती है। समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें अंततः उसने टीवी खोल लिया पर उसमें भी उसका कोई मनपसंद कार्यक्रम नहीं आ रहा था अतः टी. वी. बंदकर वह पत्रिका लेकर लेट गई पर उसमें भी उसका मन नहीं लगा।  

पता नहीं क्यों आज उसका मन भटक रहा था।इस विज्ञापन ने उसके मन में हलचल मचा दी थी। आज भी उसकी सुंदरता के चर्चे सबकी जुबान पर हैं। उसे याद आया पिछले वर्ष कॉलेज में होली के अवसर विद्यार्थियों द्वारा आयोजित ''बुरा न मानो होली है ' समारोह में दिया गया अपना टाइटल …' 40 की ही हो पर अभी जवान लगती हो ,श्रीमती पर अभी कुंवारी कली लगती हो।।'

 न जाने यह टाइटिल किसके दिमाग की उपज था किंतु उसके सौंदर्य को उकेरता यह टाइटल उसे अंदर ही अंदर गुदगुदा गया था। वह शर्म से पानी पानी हो गई थी। उसकी कुछ सहयोगी मित्र उसे छोड़ रही थीं तथा कुछ जल भुन कर मुँह बिचकाने लगी थीं। वह स्वयं भी नहीं समझ पा रही थी कि क्या करें ? भले ही इस टाइटिल द्वारा उसके सौंदर्य की प्रशंसा हुई हो किन्तु जिसके भी दिमाग की उपज था, उसने गुरु और शिष्य की मर्यादा का उल्लंघन तो किया ही था साथ ही जाने अनजाने लोगों को उस पर कमेंट करने का मौका भी दे गया दे दिया था और तो और वह स्वयं ही इस टाइटिल को पढ़कर इतना असहज महसूस कर रही थी कि इस टाइटल को घर में भी नहीं दिखा पाई थी। ना जाने मलय और बच्चों की इसे पढ़कर क्या प्रतिक्रिया हो !!

वह दिन भी याद आया जब वे अपने मित्र के पुत्र के स्वागत समारोह में आयोजित पार्टी में गए थे। वह और उसकी पुत्री संजना साथ-साथ खा रही थी।

' तुम्हारी कोई बड़ी बहन भी है, तुमने कभी बताया नहीं।' संजना की मित्र ने संजना के पास उससे आकर पूछा।

' यह मेरी बहन नहीं मेरी माँ हैं। ' संजना ने गर्वोन्मुक्त स्वर में उत्तर दिया था।

'ओह सॉरी आंटी , मुझे लगा कि...।' कहते हुए वह हकलाने लगी थी।

' सॉरी की क्या बात है ? मेरी माँ हैं ही इतनी सुंदर कि लोग अक्सर कंफ्यूज हो जाते हैं।' संजना ने मुस्कुराकर कहा था।

अपनी प्रशंसा सुनना किसी अच्छा नहीं लगता फिर वह अपवाद कैसे हो सकती है। खुशी तो उसे इस बात की थी कि उसके दोनों बच्चे अनिकेत और संजना रूप और रंग में उस पर गए हैं। उसने भी उन्हें माँ का प्यार देने के साथ-साथ एक मित्र की तरह उनकी समस्याओं को समझा और सुलझाया है।

 योगाभ्यास तथा सीमित खान-पान के कारण आज भी उसका सौंदर्य बरकरार है। वह दो बच्चों की माँ है। अब भला किसी को इस तरह की प्रतियोगिताओं में उसके भाग लेने पर क्या आपत्ति हो सकती है !! आज अगर उसे अवसर मिल रहा है तो अवश्य अपना बीता स्वप्न पूरा करने का प्रयास करेगी... वजन अवश्य कुछ बढ़ गया है किंतु इतना भी नहीं कि कम न किया जा सके। कुछ दिनों की डाइटिंग तथा योगाभ्यास से उसे भी नियंत्रित कर ही लेगी।

योगाभ्यास मनीषा की नियमित आदतों में सम्मिलित है किंतु चटपटा तथा मीठा खाने की आदत के कारण वजन पर कभी अंकुश नहीं लगा पाई है। क्या-क्या उसे इस तरह की प्रतियोगिताओं में भाग लेना शोभा देगा ? अंतर्मन ने उसे कचोटा।

 मन अशांत था। मन में तर्क वितर्क चल रहे थे और वह उनमें उलझ कर रह गई थी। आश्चर्य तो उसे इस बात का था कि उस जैसी सफल एवं जीवन से संतुष्ट स्त्री के मन में भी , मैन की दबी या दबाई गई कोई इच्छा अवसर पाकर इतनी तीव्रता से दंश दे सकती है। 

मलय से उसने विज्ञापन का जिक्र किया तो वह बोले , 'तुम्हारी जैसी इच्छा पर यह मत भूलना कि तुम दो बच्चों की माँ ही नहीं वरन एक प्रतिष्ठित कॉलेज के एक प्रतिष्ठित विभाग की हेड भी हो। हो सकता है कि अनेकों विद्यार्थियों की तुम आदर्श रही हो। कहीं ऐसा ना हो तुम्हारा नया रूप तुम्हारे पुराने रूप की धज्जियां उड़ा दे।'

मलय ने मना तो नहीं किया था लेकिन प्रोत्साहित भी नहीं किया था। बच्चे खासतौर पर अनिकेत ने उसके मनोबल को बढ़ाया था पर पता नहीं क्यों संजना उसके प्रस्ताव को सुनकर मौन रह गई थी। 

सबकी भावनाओं को नजरअंदाज कर मनीषा का उस खूबसूरत पल की तैयारी में लग गई। स्वयं के वजन को नियंत्रित करने के चक्कर में उसने पूरे घर पर भी नियंत्रित डाइट चार्ट थोप दिया। कुछ दिन तो सब मौन रहे पर धीरे-धीरे सबके आक्रोश का उसे किसी न किसी रूप में सामना करना पड़ने लगा । 

एक तरह से घर की शांति भंग होने के कगार पर खड़ी थी पर मन मानने को तैयार ही नहीं था। रात का खाना खाने बैठे थे। वह सब्जी परोस रही थी कि अचानक संजना बोली, ' बहुत हो गया माँ, यह डाइटिंग वाइटिंग, हमसे ऐसी उबली सब्जियां नहीं खाई जाती हैं। प्रतियोगिता में आपको भाग लेना है हमें नहीं।'

' बेटा, माँ से ऐसी बातें नहीं करते ' मलय ने संजना को समझाते हुए कहा।

' डैड माँ अब माँ नहीं , ब्यूटी क्वीन बनना चाहती हैं। उनको जो भी बनना हो बने पर सजा हमें क्यों ? संजना के स्वर की कड़वाहट उसे छुपी न रह पाई।

 बाद में मलय ने उसका मनोबल बढ़ाते हुए कहा ' संजना की बात का बुरा मत मानना। बच्चे तो बच्चे हैं ...चटपटा खाने का मन तो करता ही होगा। ऐसा करो कल से एक सब्जी अलग से बच्चों के लिए बना दिया करो।'

शायद मलय ठीक ही कह रहे थे। बच्चों को खाने के लिए चटपटा तो चाहिए ही। कल से वह उनके लिए अलग से कोई डिश बना दिया करेगी। दिल पर बार बार सजना के शब्द हथौड़े की तरह प्रहार कर रहे थे। अब माँ नहीं , ब्यूटी क्वीन बनना चाहती हैं। क्या उसकी चाहत गलत है ? पहले उसकी माँ और अब संजना का असहयोग सिर्फ चेहरे बदल गए हैं।

आज की घटना के पश्चात वह समझ नहीं पा रही थी कि उसका निर्णय ठीक है या नहीं वह उन लोगों में से नहीं थी जो एक कदम आगे बढ़ाकर फिर पीछे हट जाते हैं। फॉर्म तो भर कर भेज भेज ही दिया था। अभी तो चार महीने बाकी हैं जो होगा देखा जाएगा, सोच कर उसने सहज होने की कोशिश की।

एक दिन कॉल बैल की आवाज सुनकर दरवाजा खोला ही था कि एक युवक ने आगे बढकर उसके पैर छुए तथा पूछा, ' मैम आपने पहचाना !! मैं पल्लव।'

' अरे, पल्लव तुम, पहचानूँगी क्यों नहीं ? कहाँ, क्या कर रहे हो आजकल ?'

' मैम मल्टीनैशनल कंपनी में बतौर प्रोडक्शन मैनेजर काम कर रहा हूँ। यहाँ एक कार्य के सिलसिले में आया था तो आपसे मिले बिना रह नहीं पाया आखिर आपके मार्गदर्शन से ही तो मैं यहमुकाम हासिल कर सका हूँ।

' बेटा काबलियत तो आपमें थी। मैंने तो बस राह दिखाई थी।'

' मैम ,यह तो आपका बड़प्पन है वरना मुझ जैसे आवारा, बदमाश लड़के को रहा पढ़ाना आसान काम नहीं था।'

पल्लव चला गया था पर अपने पीछे अंतहीन प्रश्न छोड़ गया था। आज भी अनेकों विद्यार्थियों के दिल में उसके लिए सम्मानीय स्थान है आदर्श है वह उनकी, उसे गर्व है अपनी विशेषता पर ...।

संजना और उसके मध्य दूरी बढ़ती जा रही थी जिसके कारण वह बेहद तनाव में थी। यद्यपि संजना उसकी पुत्री है किंतु उसके मन में शायद ईर्ष्या रूपी अंकुर ने पनपना प्रारंभ कर दिया था जिसके कारण जहाँ वह पहले उसे अपनी माँ को अपना हमराज अपनी अभिन्न सखी समझती रही थी ,वहीं अब वह उसे अपना प्रतिद्वंदी समझने लगी है। कहीं न कहीं अनजाने में वह हीन भावना का शिकार भी होती जा रही है। कशमकश में दिन बीत रहे थे। 

' क्या हुआ तुम्हें ? तुम चिल्ला क्यों रही हो ?' मलय ने उसे झकझोर कर उठाते हुए कहा। 

मनीषा उठी तो वह पूरी तरह पसीने से लथपथ थी। वह मलय को अजीब नज़रों से देखने लगी।

' क्या बात है ? क्या कोई बुरा सपना देखा।'

' हाँ….।'

'अब सो जाओ। अभी बहुत रात बाकी है।' मलय ने उसे पानी का ग्लास पकड़ते हुए कहा।

 पानी पीकर मनीषा सोने की कोशिश करने लगी। वैसे तो उसे स्वप्न कम ही याद रहते थे पर यह स्वप्न पूरी तरह याद था …

 वह सौंदर्य प्रतियोगिता का एक- एक पड़ाव पार कर सौंदर्य प्रतियोगिता के अंतिम पड़ाव पर पहुँच चुकी थी। उसे जैसे ही विनर का ताज पहनाया गया मलय और अनिकेत ने हाथ हिलाकर उसे बधाई दी पर सजना कहीं नजर नहीं आई। वह उसे ढूँढने का प्रयास कर ही रही थी कि एकाएक कैमरों की फ्लैश लाइट में मलय और अनिकेत के चेहरे दूर होते प्रतीत होने लगे। वह घबराकर उन्हें आवाज लगाने लगी। इसी बीच मलय ने उसे झकझोर कर जगा दिया। वह समझ नहीं पा रही थी कि इस स्वप्न का क्या अर्थ है ? कहीं वह अपनी इस महत्वाकांक्षा के चलते अपने हरे-भरे घर संसार में आग तो लगाने नहीं जा रही है !! इसी उधेड़बुन में उलझकर करवटें बदलते हुए पूरी रात बीत गई। वह कोई निर्णय ले पाने में स्वयं को असमर्थ पा रही थी।

सच तो यह था कि इस प्रतियोगिता ने उसका सुख चैन छीन लिया था। दूसरे दिन भर कॉलेज पहुँची ही थी कि चपरासी ने आकर कहा कि उसे प्रिंसिपल साहब ने बुलाया है। जैसे ही वह उनके कमरे में पहुँची उन्होंने गर्मजोशी से उसका स्वागत करते हुए कहा …

' आइए आइए मनीषा जी... आपको एक खुशखबरी देनी है। आपके आउटस्टैंडिंग परफारमेंस के कारण बेस्ट टीचर ऑफ द ईयर का पुरस्कार देने के लिए आपका नाम चयनित हुआ है। यह पुरस्कार ' टीचरस डे ' पर महामहिम राष्ट्रपति महोदय के कर कमलों द्वारा दिल्ली में आपको दिया जाएगा। वास्तव में आपने इस कॉलेज का ही नहीं वरन पूरे शहर का नाम रोशन कर दिया है। सबसे बड़ी बात यह पुरस्कार पाने वाली आप सबसे कम उम्र की अध्यापिका हैं।' 

मनीषा जब तक अपनी कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाती तब तक अन्य सहयोगियों ने उससे मिठाई मांगनी प्रारंभ कर दी। आखिर उसने सबको मिठाई मंगवाकर खिलाई। 

 मनीषा को इस बात का तो पता था कि उसका नाम इस पुरस्कार हेतु भेजा गया है लेकिन उसका चयन होगा इसकी उसे आशा नहीं थी। सचमुच उसके लिए बड़ी खुशी का दिन था। लौटते हुए उसने घर ले जाने के लिए भी मिठाई खरीद ली  

मलय अनिकेत और संजना को जब इस बात का पता चला तो वह बहुत खुश हुए। यहाँ तक कि सजना ने भी अपना मौन तोड़ते हुए उसे बधाई दी। सबकी आँखों में खुशी और सम्मान देखकर मनीषा को महसूस हो रहा था कि आज वह जिस मुकाम पर है , उसका जो मान सम्मान है वह क्या सौंदर्य प्रतियोगिता जैसे आयोजनों में भाग लेने से गिरेगा नहीं ... फिर इस बात की क्या गारंटी है कि वह ताज उसे मिलेगा ही अचानक उसने एक निर्णय ले लिया …।

' अब इस पुरस्कार के पश्चात सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेने की मेरी कोई इच्छा नहीं रही है अतः मैं इस प्रतियोगिता में भाग लेने का अपना विचार जाती हूँ।' अचानक मनीषा ने कहा।

उसकी बात सुनकर जहाँ मलय और अनिकेत आश्चर्य से उसे देख रहे थे वहीं संजना ने उसके गले से लिपटते हुए कहा , ' आप कितनी अच्छी हो माँ... हमें भी ब्यूटी क्वीन नहीं माँ चाहिए। आज मुझे मेरी माँ वापस मिल गई।' 

संजना की बात सुनकर खुशी से मनीषा की आँखें छलछला आईं। संजना के चेहरे पर फिर पहले वाली मुस्कुराहट देखकर मनीषा को अपने निर्णय पर कोई अफसोस नहीं हुआ। वैसे भी उसे जो सम्मान मिलने वाला है वह उन सैकड़ों ताजों से अधिक मूल्यवान है जो उसे सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेने पर मिलता या ना भी मिलता। पुरस्कार या सम्मान से भी ज्यादा उसके लिए संजना के चेहरे पर आई वह मुस्कुराहट है जो पिछले कुछ दिनों से कहीं खो सी गई थी।

कैसी माँ है वह ?-जो बेटी के मन में चलते द्वंद को नहीं समझ पाई। क्या अपनी बच्ची की खुशी के लिए वह अपनी इच्छा का दमन नहीं कर सकती थी। वह इतनी स्वार्थी कैसे हो गई थी कि अपनी एक इच्छा की पूर्ति के लिए उसने घर भर में तनाव पैदा कर दिया था।

जो हुआ सो हुआ पर वह आगे से ऐसा कोई निर्णय नहीं लेगी जिससे उसके अपने दुखी हों। उसकी वर्षों से बनाई इमेज को धब्बा लगे । वह उसका जागी आँखों का सपना था , एक प्रवंचना थी पर यह हकीकत है। आज से वह स्वप्न में नहीं हकीकत में जीएगी। स्वप्न्न क्षणांश के लिए भले ही सुख दे दें पर जो वास्तविकता में जीता है , वही सफल होता है।

उसे जो पुरस्कार मिल रहा है वह उसकी वर्षों की मेहनत का फल तथा आंतरिक गुणों का प्रतीक है तथा जिसके लिए वह तैयारी कर रही थी वह व्यक्ति के क्षणिक सौंदर्य का प्रतीक है। हर वर्ष ही इस तरह के आयोजन होते हैं किंतु कितनों को इनके नाम याद होंगे जबकि मदर टेरेसा ,इंदिरा गांधी ,हेलन केलर , फ्लोरेंस नाइटिंगेल जैसे लोगों के नाम अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं जिन्होंने इस पुरुष सत्तात्मक समाज में अपना स्थान अपनी मेहनत, लगन तथा दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर बनाया था। आज उसे जीवन की वास्तविक सफलता तथा क्षणिक सफलता में अंतर स्पष्ट नजर आ रहा था अगर ऐसा न होता तो क्या आज उपरोक्त विभूतियों का नाम लोग इतने सम्मान से लेते !! 

मनीषा ने स्वयं को सपनों की दुनिया से मुक्त करते हुए मिठाई का डिब्बा खोल कर मिठाई का एक टुकड़ा संजना को खिलाते हुए मलय और अनिकेत को दिया तथा एक टुकड़ा उसने अपने मुँह में डाल दिया क्योंकि अब वह जो ताज हनना चाहती है उसको पहनने के लिए उसे न डाइटिंग की आवश्यकता थी और ना ही कसरतों की। इसके लिए निस्वार्थ कर्म की आवश्यकता है जिसके लिए वह सतत प्रयत्नशील रही है और रहेगी। भले ही उसका स्वप्न अधूरा रह गया हो पर खुशी इस बात की है कि   उसके इस निर्णय से उसका खोया परिवार, उसकी ख़ुशियाँ उसकी रूठी पुत्री एक बार फिर उसे मिल गई है।


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