इश्क और समाज

इश्क और समाज

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नेहा और रवि एक ही कंपनी में जॉब करते थे। दोनों का एक ही डिपार्टमेंट में होने के कारण अक्सर वर्कशॉप या ऑफिस टूर पर साथ में जाना होता इसलिए दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी। ऑफिस के कलीग अक्सर उन्हें छेड़ते कि दोनों के बीच जरूर कुछ चल रहा है। पर वे दोनों हमेशा यही कहते कि वे सिर्फ अच्छे दोस्त हैं उसके आगे कुछ नहीं। ऑफिस के बाद अक्सर ही साथ में कॉफी पीने पास के रेस्तरां में जाते। साथ में कॉफी पीते और प्रोफेशनल के साथ व्यक्तिगत बात भी शेयर करते।

नेहा ने महसूस किया कि रवि साफ दिल और नेक लड़का है। धीरे धीरे नेहा को लगने लगा कि वो रवि को चाहने लगी है। रवि स्मार्ट होने के साथ साथ समझदार भी था। रवि में उसे हर अच्छाई नजर आने लगी जैसे जीवनसाथी की उसने कल्पना की थी। पर रवि के मन की बात वह नहीं जानती थी। कहीं उसके मन की बात पता चलने पर रवि दोस्ती ही न तोड़ दे इस डर से उसने कभी रवि से कुछ न कहा।

एक दिन रवि अचानक मम्मी पापा के साथ नेहा के घर पहुँच गया। उसे परिवार के साथ आया देख नेहा चौक गई आखिर मम्मी पापा को लेकर क्यों आया होगा? चाय पीते हुए रवि की मम्मी बोली "रवि अक्सर मुझसे नेहा की तारीफ करता है मुझे भी नेहा बहुत पसंद है अगर आप लोगो की रजामंदी हो तो मैं नेहा को अपने घर की बहू बनाना चाहती हू।"

मम्मी पापा ने नेहा की और देखा तो वो शर्माते हुए अंदर चली गई। आखिर यही तो वो चाहती थी पर उसे यह नहीं पता था कि रवि भी उसे पसंद करता है।

अब मम्मी पापा को भला क्यों इंकार होता ? घर बैठे इतना अच्छा लड़का मिल रहा था और नेहा भी खुश थी।

अगले दिन उसने रवि से कहा " तुमने कभी मुझसे अपने मन की बात नहीं की और सीधा रिश्ता लेकर आ गए।"

रवि ने हँसते हुए कहा "मुझे भी डर था कि कही तुम मेरे प्यार को अस्वीकार न कर दो इसलिए सीधे मम्मी पापा को लेकर आना ही मुझे ठीक लगा"

शादी तय हो जाने के बाद दोनों बहुत खुश थे। दो महीने बाद दोनों की शादी थी। दोनों ने शॉपिंग करना शुरू कर दिया था। ऑफिस के बाद दोनों शॉपिंग पर साथ ही जाते थे। एक दिन नेहा ने ऑफिस जाने के लिए स्कूटी से घर के कुछ दूर ही निकली थी कि पीछे से आ रही बस ने उसे टक्कर मार दी, नेहा उछलकर दूर जा गिरी और बेहोश हो गई। जब होश आया तो खुद को आई.सी.यू. में पाया। सिर में गंभीर चोटें आई थीं और दोनों पैर भी फैक्चर थे। एक पैर की हड्डी टूट गई थी। ऑपरेशन के बाद उसे बिस्तर पर हिलने के लिये भी मनाही थी। नेहा का मन इस स्थिति को स्वीकार ही नहीं कर रहा था।

अभी कुछ दिन पहले तो वो शादी की तैयारियों में बिजी थी और कहाँ अब असहाय अवस्था में बिस्तर पर पड़ी थी। उसका मन बहुत दुःखी था। कुछ दिनो बाद उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई पर उसे रेगुलर एक्सरसाइज और फिजियोथेरेपी की जरूरत थी। सुबह से शाम तक रवि उसके साथ ही रहता और उसे समझाता की उसे हिम्मत नहीं हारना चाहिए। पर नेहा पर किसी भी बात का असर न होता। लगातार बिस्तर पर रहने से वह चिड़चिड़ी भी हो गई थी| उसे लगता था कि वह अब कभी नहीं चल पाएगी। इसलिए वह अपनी एक्सरसाइज भी ठीक से न करती। रवि ने खूब समझाया कि अगर वह ठीक से फिजियोथेरेपी नहीं लेगी तो कई महीनों तक बिस्तर से नहीं उठ पाएगी।

जब नेहा में कोई सुधार न दिखा तो उसने ठान लिया कि वह किसी भी तरह उसे ठीक करवा कर ही दम लेगा इसके लिए रवि ने कठोर निर्णय लेते हुए नेहा से साफ कह दिया कि अगर वह पूरी तरह ठीक से न चल पाई तो वो उससे शादी नहीं करेगा वो किसी अपाहिज लड़की से शादी कर अपनी जिंदगी खराब नहीं करेगा। 

नेहा ये सुन कर शून्य हो गई। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि रवि उसके साथ ऐसा व्यवहार करेगा। उसको रवि पर बहुत गुस्सा आ रहा था, "आखिर वह खुद को समझता क्या है? उसका जरा सा खराब वक़्त क्या आया तो शादी तोड़ने की धमकी दे डाली। किसी ने सच ही कहा है इन्सान की पहचान दुःख में ही होती है, कल तक यही रवि बड़ी बड़ी बाते करता था। उसके साथ भविष्य के सपने बुनता था पर एक हादसे में उसने असलियत दिखा दी। अब वो रवि को दिखा देंगी की वो कमजोर नहीं है और पूरी ठीक होने के बाद खुद ही शादी से मना कर देगी"

अब नेहा में आश्चर्यजनक परिवर्तन आ रहा था उसे जल्द से जल्द ठीक होने की इच्छाशक्ति जाग गई थी वह अपनी एक्सरसाइज पर ज्यादा समय देने लगी। पूरे ठीक होने में उसे एक महीने लग गए। इस बीच रवि ने उसे एक बार भी फ़ोन नहीं किया। एक दिन रवि घर आया वो मम्मी पापा से बाते कर रहा था तभी नेहा चलकर उसके पास आती है। नेहा को एकदम ठीक ठाक देख उसकी आंखें चमक गई। वह बोला "बधाई हो नेहा, मैंने कहा था न दृढ़ इच्छाशक्ति से तुम जल्द ही चल पाओगी तुम्हे चलते हुए देखकर मैं बहुत खुश हूं।

नेहा बोली "सॉरी रवि पर अब मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती। मैं ऐसे इंसान से शादी नहीं करना चाहती जो केवल सुख का साथी हो दुःख का नहीं। जब तुमने शादी की शर्त रखी थी मैंने तभी सोच लिया था कि मैं तुम्हे ठीक होकर दिखाऊँगी।"

रवि कुछ कहता उससे पहले ही नेहा के मम्मी पापा बोल उठे "नेहा तुमने रवि को गलत समझा है| रवि कभी तुमसे शादी नहीं तोड़ना चाहता था। इसने जो भी किया तुम्हे प्रोत्साहन देने के लिए कहा। जब तुम पूरी निराश हो चुकी थी इसलिए रवि ने तुमसे ये सब कहा। ये सब उसने हमारी सलाह से ही किया है। रवि रोज रात को फ़ोन पर हमसे तुम्हारा हालचाल पूछता था। उसने तुमसे कोई भी शर्त नहीं रखी। रवि ने जो भी किया तुम्हे प्रोत्साहित करने के लिए किया। रवि तुमसे सच्चा प्यार करता है।

नेहा एकटक रवि को देखे जा रही थी। उसकी आंखें भर आईं आगे बढ़कर उसने रवि को गले से लगा लिया।

दोस्तों, ये तो सच है कि इंसान की पहचान दुख में ही होती है। यदि कोई दुख में हमारा साथ न दे तो हम उससे दूरी बना लेते हैं। पर हमें किसी की वास्तविक स्थिति जाने बगैर किसी के प्रति अपने मन में गलत धारणा नहीं बनानी चाहिए। हो सकता है कि सामने वाला भी उस समय किसी विषम परिस्थिति से गुजर रहा हो जिस कारण वह हमारी सहायता नहीं कर पाया हो।


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