इण्डियन फ़िल्म्स 3.4

इण्डियन फ़िल्म्स 3.4

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हाल ही में मुझे काफ़ी लम्बे समय के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा था। वापस लौटने के बाद मेरे मन में ख़याल आया कि चिल्लाते हुए टी।वी। , शाम की उत्तेजित टेलिफ़ोन की “तो!”,यारोस्लाव और अक्साना के कुत्तों के बिना मैं ‘बोर’ हो गया था। मैं समझ गया कि ये सब लोग उससे भी ज़्यादा मुझे प्यारे है, जितने की मैं कल्पना करता था, और मैंने उनके बारे में कहानी लिखने का फ़ैसला किया।

स्टेशन से घर आने के बाद कोई कमी मुझे खटक रही थ, जब तक आन्या ने दरवाज़े की घण्टी बजाकर ये नहीं कहा ,कि कल बाज़ार में मश्रूम्स का अचार खरीदने जाएँगे। मैं कचरे की बाल्टी रखने बाहर निकल, और यारोस्लाव ने प्रॉमिस किया कि कल ही वो और च्योर्नी मिलकर टूटा हुआ काँच लगा देंगे, जो अभी-अभी च्योर्नी के सिर की मार से टूट गया था, इस टूटे हुए काँच के बीच से मैंने अक्साना को देखा, जो अपने बेली को बुला रही थी, और ल्येना विदूनोवा को भी देखा, जो स्टोर्स से सामान का हरा थैला ला रही थी। “सब ठीक है,” मैंने अपने अंदर की आवाज़ सुनी, “तू घर पहुँच गया है”।

और अप्रैल-मई में, जब गर्मी पड़ने लगेगी, अक्साना और ल्येना शाम को हमारी बिल्डिंग के पास वाली छोटी सी बेंच पर बैठा करेंगी और, मुझे देखते ही, ज़िद करेंगी कि मैं गिटार लाकर बजाऊँ। मैं बजाऊँगा,और तब अक्साना सोच में डूबकर कहेगी:

“क्या गाता है! – और अब तक शादी नहीं हुई!”

मेरे दिल में ये ख़याल आया कि, वाकई में, ऐसा सोचना सही नहीं है, मगर मई की हवा इस ख़याल को हरे-हरे कम्पाऊण्ड्स की गहराई में ले जाती है, और वो वहीं खो जाता है, कभी वापस न लौटने के लिए, जैसे कभी मन में आया ही नहीं था।


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