इमरजेंसी वार्ड में एक दिन
इमरजेंसी वार्ड में एक दिन
नमस्कार मित्रों,
इमरजेंसी शब्द ही ऐसा है, जो कान में झंकृत होते ही शरीर में सिहरन और मन में एक अनहोनी का डर पैदा कर जाता है।
बात सन् 2017 नवम्बर माह की है। हमारे एक मित्र की पत्नी गर्भ से थीं। प्रसव पीड़ा सुबह आठ बजे से शुरू हो गया। वो पत्नी को लेकर तहसील के ही एक सरकारी अस्पताल गये और वहाँ डॉक्टर ने उन्हें भर्ती कर लिया।
प्रसव के लिए उनको दवा दे दी। दर्द शुरू हुआ पर बच्चा प्रसव नली में फंस गया। देखते-देखते सुबह से शाम हो गयी। जब हमें पता चला कि वो पत्नी को अस्पताल में भर्ती कराए हुए हैं, तो मैं अस्पताल पहुँच गया।
रात के दस बज गये थे, अभी तक बच्चा अन्दर ही फंसा हुआ था। अब मन व्यथित हो रहा था, तमाम तरह की चिंताएं अपने आगोश में ले रही थी। सभी आगन्तुक चुपचाप खड़े थे। मुझसे रहा नहीं गया, तो मैंने डाक्टर से पूछा, "डिलीवरी कब तक हो जाएगी? "
डाक्टर - दो घंटा लगेगा।
मैने फिर पूछा, "क्या नार्मल डिलीवरी की संभावना है? यदि है, तो कितने प्रतिशत चांस है? "
डाक्टर ने कहा, "नार्मल की सम्भावना केवल तीस प्रतिशत है, बच्चा फंस गया है। "
अब तो जैसे लगा कि कलेजा ही बैठ जायेगा क्योंकि एसी परिस्थिति को मैं अपने जीवन में झेल चुका था, जिसमें मेरा बच्चा मर गया था। मैने खुद को सम्भालते हुए डाक्टर से कहा, "जिला अस्पताल तक पहुंचने तक हालत ठीक तो रहेगा। "
डाक्टर - कुछ कहा नहीं जा सकता।
मैंने मित्र राम से कहा - जब आपरेशन कराना है तो यहीं प्राइवेट अस्पताल में करा लेते हैं। ग्यारह साल बाद तो बच्चा गर्भ में आया है, कहीं कुछ हो गया तो फिर जीवन भर पश्चात्ताप में जीना पड़ेगा ।
वो मान गये, उनकी पत्नी को रैफर कराकर एक प्राइवेट अस्पताल रात 11 बजे लेकर पहुंच गए। डाक्टर उनको तुरत आपरेशन थियेटर में ले जाने को कहकर खुद तैयारी में लग गयी। इधर हम सभी बाहर खड़े राम जी पर पिले पड़े थे कि अब तक वहाँ रहना ही नहीं चाहिए था। वो चुपचाप सुन रहे थे।
खैर थोड़ी देर बाद जिसका इंतजार था, उसकी आवाज कानों में पड़ी। सबके चेहरे खिल उठे, बधाइयों का क्रम शुरू हुआ। धीरे-धीरे सब अपने घर आ गए ।जब आश्वस्त हो गए कि बच्चा और बच्चे की माँ' दोनों स्वस्थ हैं तो मैं भी घर आ गया।
सुबह के पांच बजे गरम पानी व चाय लेकर अस्पताल पहुँच गया। बच्चे को देखा ,सोया हुआ था। उसकी माँ भी स्वस्थ थी ,देखकर मन प्रसन्न हो गया। शाम को किसी कार्यवश मैं अस्पताल नहीं पहुंच सका।
उसी दिन रात करीब एक बजे मोबाइल की घंटी बजी, मैं सोचा इतनी रात कौन काॅल कर सकता है? मोबाइल उठाया और देखा तो राम जी की काॅल है। रिसीव किया तो उधर से उनकी भर्राई सी आवाज आई। तिवारी जी आइए ना, मामला बहुत सीरियस है बाबू का।
मेरा तो दिल घबराने लगा, एक गिलास ठंढा पानी पत्नी ने दिया। पानी पीकर मैं कपड़े पहनकर अस्पताल चल दिया।
वहाँ पहुंचा तो बच्चे को देखकर ही दिमाग खराब हो गया। बच्चे की पूरी शरीर में अकड़न आ रही थी और वह रोये जा रहा था। तुरंत एम्बुलेंस किया और बच्चे को लेकर जिला अस्पताल पहुँच गए।
जब बच्चे को डाक्टर ने देखा, तो कहा इसे जल्द से जल्द इमरजेंसी वार्ड में शामिल करो। इलाज शुरू हुई, अभी एक दिन के जन्मे बच्चे के नाक और मुंह में पाइप लगा देखकर मन विचलित हो उठा। अभी मैं इन सबसे निकलने की कोशिश ही कर रहा था कि राम जी मुझसे लिपट कर रोने लगे।
वो कहे जा रहे थे कि कौन सा पाप किया था कि यह दिन भी देखना पड़ा। मैंने उनको ढाढस बंधाते हुए कहा कि धैर्य रखिए ऊपर वाले से प्रार्थना कीजिये, वह बड़ा कार साज है। कुछ नहीं होगा। उस रात हमने इमरजेंसी वार्ड में भय और दहशत में बिताई थी क्योंकि उस रात तीन -तीन दिन के चार बच्चों के शव देखे थे। लेकिन ईश्वर ने हमारी प्रार्थना सुनी। उस समय हम दोनों के खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब डाक्टर ने आकर चार दिन बाद यह कहा कि बच्चा बिल्कुल स्वस्थ है। भगवान तेरा लाख-लाख शुक्र है।
ईश्वर किसी को भी ऐसा दिन ना दिखाए।
।।जय श्री कृष्णा।।