"ईश्वर का मनुष्य को खत"
"ईश्वर का मनुष्य को खत"
मेरे प्रिय,
सुबह तुम जैसे ही सो कर उठे मैं तुम्हारे बिस्तर के पास ही खड़ा था। मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ बात करोगे , कल या पिछले हफ्ते हुई किसी बात या घटना के लिए मेरा शुक्रिया अदा करोगे । लेकिन तुम फटाफट तैयार होकर चाय पीने चले गए और मेरी तरफ देखा भी नहीं । फिर मैंनेे सोचा कि तुम नहाकर मुझे याद अवश्य करोगे , पर तुम इसी उलझन में लगे रहे कि- आज कौन से कपड़े पहनने है। फिर तुम जब नाश्ता कर रहे थे और आफिस के कागज इकट्ठा करने के लिए घर के इधर - उधर दौड़ रहे थे तो मुझे लगा कि शायद अब तुम्हेें मेरा खयाल आयेंंगा लैकिन ऐसा नहीं हुुआ। फिर जब तुम आफिस जाने के लिए गाड़ी में बैठे तो मैं समझ गया कि इस खाली समय में तुम मुुुझसे बातचीज करोगेें पर तुमने थोड़ी देर पेेपर पढा़ और फिर मोबाइल चलाने लग गए और मैं खड़ा का खड़ा ही रह गया। मैं तुम्हें बताना चाहता था कि दिन का कुछ हिस्सा तुम मेरे साथ बिताकर कर तो देखो तुम्हारे काम और भी आसानी और अच्छे से होने लगेेंगे लेकिन तुमनें मुझसे बात ही नहीं की। एक मौका ऐसा भी आया जब तुुम बिल्कुल खाली बैैैठे थे पूरे 15 मिनट तुम यूँ ही बैठे रहे लेकिन तब भी तुुुम्हे मेरा खयाल नहीं आया। दोपहर के खाने के समय जब तुम इधर- उधर देख रहे थे तो मुुझेे लगा कि तुम
खाना खाने से पहले एक पल के लिए ही सही मेरे बारे में अवश्य सोचोंगे लैकिन ऐसा भी नहीं हुआ।
अपना काम निपटा कर जब तुम घर लौट रहे थे तब मुझे लगा कि अब तुम बिल्कुल फ्री हो गए हो दिन का अब भी काफी समय बचा है अब इस बचे हुए समय मेंं हमारी बातचीज हो ही जायेेेंगी लेकिन घर पहुंचने के बाद तुम रोजमर्रा के कामों में व्यस्त हो गए और फिर तुमने टीवी खोल ली और घंटो टीवी देखते रहे, शाम को जब टहलने गए तब भी मुझे आशा थी कि तुम एक बार ही सही मेेेरी तरफ जरूर देखोगे लैकिन नहीं। फिर रात्रि का खाना खाकर दोस्तों के
साथ मोबाइल पर गपशप करने में लग गए अंत में पत्नी और बच्चों को शुभ रात्रि कहा तब मुझे पूर्ण विश्वास था कि अब तुम मेेेेरा ध्यान अवश्य करोगे, मेरा धन्यवाद करोगे पर तुम तो चादर ओढ़कर सो गए मेरा बड़ा मन था कि मैं भी तुुुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा बनूँ ,तुमसे बात करूँ, तुुुम्हारे साथ कुुछ वक़्त बिताऊं,
तुम्हारी कुछ सुनु, तुम्हें कुछ सुनाऊँँ, कुछ मागदर्शन करूँ तुम्हारा, ताकि तुम्हें समझ आये कि तुम किसलिए इस धरती पर आये हो और किन कामों में उलझ गये हो ।लेकिन तुुुुम्हें तो समय ही नहीं मिला और मैं मन मारकर ही रह गया। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ ।हर रोज मैं इस बात का इंतज़ार करता हूँ कि तुम मुझे अपना दुख बताओगें ,अपनी छोटी छोटी खुशियों के लिए मुझे भी धन्यवाद करोगें, मेरा आभार व्यक्त करोगें। पर तुुम तभी आते हो जब तुम्हें कुछ चाहिए होता है , तुम जल्दी में आते हो फटाफट अपनी मांगेे मेरेे सामने रख कर चले जाते हों, और तब भी तुम पूर्ण समर्पण के साथ मेरी तरफ देखते भी नहीं, ध्यान तुम्हारा तब भी संसार की मोह माया में ही लगा रहता है और मैंं इंतजार करता ही रह जाता हूं । खैर कोई बात नहीं शायद कल तुम्हें याद आ जाये ऐसा मुझे विश्वास है और मुझे तुममे आस्था है। आखिर
कार मेंरा दूूसरा नाम आस्था और विश्वास ही तो है।
हे महान मनुुज!
अगर तुम अपनी सारी शिकायतें और दुख-दर्द लोगों को बोलने की बजाय मुझे अपने जीवन का वकील मानकर मुझसे बोलोगे तो यकीन मानिए तुम्हारे सारे दुख और गम ज्यादा देर तक तुम्हें नहींं सता पायेेंगे और तुम एक खुशहाल जीवन जी सकोगें।
तुम हर पल मुझे याद करते हुए मुझे सदा जीवित जानकर प्रेम, सत्य ,अहिंसा और धर्म की राह पर चलकर जीवन का आनंद उठाओगे तो तुम सबका जीवन सार्थक हो जाएगा और संसार में कहीं भी अपराध नहीं होंंगे।
बहुत-बहुत धन्यवाद !
तुम्हारा ईश्वर !
