RAKESH SRIVASTAVA

Tragedy

2.5  

RAKESH SRIVASTAVA

Tragedy

इच्छा-मृत्यु

इच्छा-मृत्यु

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एक दिन सुबह, जब मैं सैर करने निकला तो एक लड़की ने अटकते हुए आवाज़ दी – “अंकल जी !”मैं उस अनजान, पतली-दुबली और जिसकी उम्र करीब चौदह-पंद्रह साल होगी, लड़की की तरफ मुखातिब होते हुए बोला – “क्या बात है?”

देखने में गरीब परिवार की लग रही थी और डरी हुई भी थी। 

उसने, अपने गले को साफ़ कर, ऊँगली से इशारा कर के बोली – “वो मुझे कुत्तों से डर लगता है।”

मेरी नज़र उसके इशारे की तरफ मुड़ी। मुझे सुनसान सड़क के किनारे कुछ दूरी पर तीन-चार आवारा कुत्ते दिखे और मैं उसके साथ कुछ दूर चला। जब उसे लगा की कुत्तों से अब कोई ख़तरा नहीं है तो वह दौड़ कर पास के एक मकान में चली गई। 

तब से अक्सर वो लड़की मुझे वहीँ मिल जाती थी। बात-चीत से पता चला कि उसका नाम सरला है और वो उस घर में नौकरानी का काम करती है। 

एक दिन जब मैं सैर करने उसी रास्ते से जा रहा था तो वहाँ कुछ लोग इकट्ठा थे। मैं उनमें से एक को जानता था। 

मैंने कहा – “शर्मा जी ! आज सुबह-सुबह यहाँ आप लोग इकट्ठा क्यूँ हुए हैं, सब खैरियत तो है। 

तब शर्मा जी ने कहा – “ श्रीवास्तव जी ! क्या बताएं, घोर कलयुग आ गया है। मिश्रा जी के यहाँ सरला नाम की बच्ची घर का काम करने आती थी। कल सुबह कुछ दरिंदों ने उसकी इज्ज़त लूटी और जख़्मी कर अर्द्ध-नग्न अवस्था में इस सड़क के किनारे छोड़ कर भाग गए।”

मुझे यह सुनकर बहुत दुःख हुआ और साथ में अफ़सोस भी कि कल मैं सैर करने क्यों नहीं आया था। मुझे शर्मा जी से ही पता चला की सरला का इलाज सिविल अस्पताल में चल रहा है। मैं भागता हुआ उसके पास पहुँचा। 

मुझे देख कर उसने बिलखते हुए कहा – “ अंकल जी ! आप मुझे कल सुबह क्यों नहीं मिले। जब वे कुत्ते मुझ पर झपटे तो मुझे आपकी बहुत याद आ रही थी और जब वह दरिंदे मुझे अर्द्धचेतन अवस्था में छोड़ कर भाग गए तो मेरे मन में इच्छा-मृत्यु की कामना उठ रही थी कि काश सच में गली के कुत्तें कल मुझे नोच खाते तो कितना अच्छा होता।”

उसकी बातों को सुनने के बाद मेरी आँखों में आँसू आ गए पर उसको देने के लिए मेरे पास सांत्वना के शब्द भी नहीं थे। 


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