हमारे शिक्षक और हमारा जीवन
हमारे शिक्षक और हमारा जीवन
विद्यार्थी और शिक्षकों के बीच का तालमेल बड़ा अच्छा था।
पूरे स्कूल में अनुशासन होता था । बच्चे भी अनुशासन मे रहते। शिक्षक क्या बोलना चाहते है, विद्यार्थी पहले ही अनुमान लगा लेते थे, हमारे शिक्षक एक नारियल के समान जो कि बाहर से तो कठोर ओर अंदर से नरम थे,
शैतान बच्चे भी अनुशासित रहते थे, अनुशासन का उल्लंघन करने पर सजा सुनाई जाती थी , दूसरी ओर शिक्षक बड़ी नरम मिजाज की होती
विद्यार्थी को किसी प्रकार कि जरूरत के लिए हमेशा तैयार रहते।
विधालय मे कई वाषिर्क उत्सव बङि धुम धाम से मनाए जाते, कुछ विद्यार्थी यो कि परिस्थिती ठीक न होने के कारण वह पैसे नही भर पाते, पर शिक्षक खुद अपने जेब से पैसा खर्च कर विद्यार्थी को मजे करवाते, स्कूल में चाहे आनंदमेला हो या कोई भी प्रोग्राम हो उसमें निस्वार्थ भाव से हमारे टीचर हमें बहुत इंजॉय करवाती इसमें विद्यार्थी और शिक्षक के बीच में एक प्रेम झलकता था आज इस तालमेल में कमी आ गई है।
हमारी टीचर ने जो निस्वार्थ भाव से शिक्षा बाटी है, हम उनकी शिक्षा से लाभान्वित हुए हैं।
हम उनकी तरह तो नहीं बन सकते पर कुछ अच्छा कार्य करके लोगो को शिक्षित करना चाहते हैं।