Nakul Gautam

Romance

5.0  

Nakul Gautam

Romance

हिल स्टेशन

हिल स्टेशन

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270


 बर्फ़ से ढके देवदार के पेड़ चांदनी रात में चमक रहे थे। पूरा शहर रात में बत्तियों से जगमगा रहा था।


"मैं एक अरसे से तुम्हारे साथ इस जगह शहर में एक हसीं शाम गुज़ारना चाहता था। पूरी उम्र गुज़र गयी पर कभी जेब ने साथ नहीं दिया। आज की यह शाम मेरे लिए वाक़ई बहुत ख़ास है।" शर्मा जी की आँखें नम होने लगीं।


पत्नी भी उनके काँधे पर सिर रख कर उनकी बातें सुन रही थी ।


"कितने बरस बीत गए। याद है ब्याह के बाद हम यहाँ घूमने आये थे। होटलों की कीमतें बहुत अधिक थीं, तो शहर से बाहर किसी सराय में रुकना पड़ा था।"


"हाँ! और आपने गोंद की डिबिया को नारियल तेल की शीशी समझ कर"... दोनों ज़ोर से हँस पड़े।


शोर सुनकर नर्स ने दरवाज़ा खोला। "आप लोग सो जाइए। कहीं ब्लड प्रेशर बढ़ गया तो कल सर्जरी नहीं हो पायेगी।"


नर्स हिदायत देकर चली गयी। सब कमरों की बत्तियाँ बन्द हो चुकी हैं। सिर्फ़ शर्मा जी के कमरे की बत्ती जली हुई है। अस्पताल के अँधेरे, सुनसान गलियारे इनकी गुफ्तगू दूर तक सुनाई दे रही है।


" चलो इसी बहाने हमारी ये इच्छा तो पूरी हुई"। शर्मा जी ने पत्नी का हाथ थाम कर कहा। दोनों इसी तरह देर रात तक खिड़की से बाहर देखते रहे।



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