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अनुरोध श्रीवास्तव

Action

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अनुरोध श्रीवास्तव

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हौसले की उड़ान

हौसले की उड़ान

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   टेलीविजन पर खबरें चलते देखकर भावना अवाक सी रह गयी, बीस साल पहले का मंजर एकाएक उसकी आँखों के सामने घूम गया। पति भारतीय सेना में कैप्टन थे। छः फुट से ऊपर का शरीर चौडी छाती तलवार के जैसी मूछें और रोबीला चेहरा अपने नाम को साकार कर रहा था। नाम था प्रताप, हाँ वो महाराणा प्रताप के समान ही देशभक्त और वीर था। भावना की शादी हुए अभी छः माह ही हुए थे।

पति पन्द्रह दिन की छुट्टी लेकर घर आये थे। भावना की कोख में प्रताप का अंश अंकुरित हो चुका था। पति को घर आये अभी चार दिन ही हुए थे कि कारगिल की जंग छिड़ गयी और सैनिकों की छुट्टियाँ निरस्त घोषित कर दी गयीं। प्रताप की तैनाती कश्मीर में ही थी। तत्काल वो जंग के लिए रवाना हो गया। भावना का मन बहुत घबराया था मन कर रहा था कि पति को न जाने दे रोक ले लेकिन जानती थी कि जाना जरूरी है। प्रताप वादा करके गया था कि मैं वापस जरूर आऊँगा।

कारगिल की चोटियों पर प्रताप की रेजीमेंट बहुत ही बहादुरी से लड़ी और मोर्चे को फतह किया। प्रताप अदम्य साहस का परिचय देते हुए आगे बढ़कर दुश्मन सेना का सफाया कर रहा कि साथी सिपाही ग्रेनेड हमले में घायल हो गया प्रताप उसको सहारा देने लगे। साथी सिपाही ने कहा कि मेरी चिन्ता छोड़कर मोर्चा सम्हालो परन्तु प्रताप अपनी टुकड़ी के हर सिपाही को दिलोजान से चाहता था। इतने में एक ग्रेनेड प्रताप को भी लगा, चढ़ाई वाले रास्ते से पहाड़ों की अतल गहराइयों में समाहित होने से पहले प्रताप नें ग्रेनेड फेंकने वाले दुश्मन को ढेर कर दिया था लेकिन प्रताप भी शहीद हो चुका था। उसकी बॉडी भी घाटियों से नहीं निकाली जा सकी थी। घर पर उसका सामान और सेना की चिट्ठी ही लेकर सैनिक आये थे और उसे भावना के सुपुर्द किया था। प्रताप ने भावना से वापस आने का किया वादा नहीं निभाया था बल्कि भारत माँ से किया वादा निभाया था। बाद में कारगिल विजय के उपलक्ष्य में प्रताप को मरणोपरान्त परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। प्रताप की तरफ से यह सम्मान भावना नें ग्रहण किया था।

भावना अब एक सुन्दर सी बच्ची की माँ बन चुकी थी लोग कहते थे कि बच्ची बिलकुल अपने पिता पर गयी है। भावना नें बच्ची का नाम स्वाति रखा था। बच्ची के जन्म से सास ससुर बहुत खुश नहीं थे, मलाल था कि वंश आगे कैसे बढ़ेगा। भावना नें ही समझाया कि आज के जमाने में बेटियाँ बेटों से कम नहीं। सास ससुर बूढ़े भी हो रहे थे एवं अपने इकलौते पुत्र के वियोग में दिन प्रतिदिन ढलते ही जा रहे थे।

भावना के ऊपर बच्ची की परवरिश के साथ-साथ सास ससुर की भी जिम्मेदारी थी। वो एकाएक नवयौवना से प्रौढ़ा बन चुकी थी। बच्ची धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी वह वाकई अपने पिता पर गयी थी। उसका सपना था वह बड़ी होकर पिता के समान सैनिक बने। भावना कष्ट सहकर भी बेटी का लालन पालन बड़े ही अच्छे ढ़ग से कर रही थी। उसनें मन ही मन निश्चय किया था बेटी को बहादुर सैनिक बनायेगी।

 वह दिन भी आ गया, स्वाति ने वायुसेना ज्वाइन किया था वो पायलट बनी थी। इतनी कम उम्र में युद्धक जेट ऐसे कौशल से उड़ाती थी कि बड़े से बड़ा अधिकारी हैरान रह जाता था। भारत नें पुलवामा हमले के जबाब में एयर स्ट्राइक की थी पाकिस्तान बौखलाया हुआ था। एक दिन सीमा पर पाकिस्तानी युद्धक विमान मंडराने लगे विंग कमाण्डर स्वाति को भी अपनी स्क्वाड्रन के साथ विमानों को रोकने की जिम्मेदारी दी गयी।

स्वाति पाकिस्तानी विमानों को खदेड़ती बहुत दूर निकल गयी और कब पाकिस्तान की सीमा में दाखिल हो गयी पता ही न चला। उसने पाकिस्तान के विमान को सूट कर दिया लेकिन यह क्या उसका विमान भी क्रैस हो चुका था। उसने इजेक्ट किया और पैराशूट के सहारे नीचे उतरी लेकिन वह पाकिस्तान की सीमा में पाकिस्तानी सैनिकों की गिरफ्त में थी। मीडिया द्वारा टेलीविजन चैनलों पर यह ख़बर प्रसारित हो रही थी।

 भावना के मन में विचार आ रहे थे जा रहे थे। क्या होगा मेरी बेटी के साथ भावना संज्ञा शून्य सी होती जा रही थी। स्वाति का हाल सरबजीत जैसा होगा या जाधव जैसा। भारत सरकार लगातार अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बना रही थी, जेनेवा समझौते के तहत अपनें जाँबाज पायलट को वापस लाने हेतु। आखिरकार भारत सरकार का प्रयास रंग लाया और सात दिनों बाद स्वाति भारत वापस आ सकी। स्वाति राष्ट्रीय हीरो बन चुकी थी, उसनें स्वयं को बेटों से बढ़कर साबित किया था। उसने भारत माँ के साथ-साथ अपनी माँ से किया वादा भी निभाया था।


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