अनुरोध श्रीवास्तव

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ओली की अयोध्या

ओली की अयोध्या

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अभी हाल ही में नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली नें बयान दिया कि असली अयोध्या तो नेपाल में है। उनके अनुसार नेपाल के वीरभूमि जनपद का एक अयोध्या नामक गाँव ही असली अयोध्या है। इसके समर्थन में उनके तर्क हैं कि यह अयोध्या उस जनकपुर के नज़दीक है जहाँ श्री राम का विवाह हुआ था। उनके अनुसार उस जमानें में सूचना तंत्र भी विकसित नहीं था कि जनकपुर से अयोध्या स्वयंबर की सूचना त्वरित रूप से पहुँचती। दूसरे जब जनकपुर नेपाल में है तो अयोध्या भी नेपाल में होनी चाहिए। ओली साहब के अनुसार दोनों राज्य दो देशों मे नहीं हो सकते।

अब ओली साहब को कौन समझाये कि स्वयम्बर आयोजन के दौरान श्री राम और लक्ष्मण जी तत्कालीन समय प्रसिद्धि ए्वं महान ऋषि विश्वामित्र जी के साथ ऋषियों की और उनके यज्ञ कर्म की सुरक्षा में रत थे, और सम्भवतः अयोध्या और जनकपुर के बीच थे। दूसरी बात स्वयम्बर का आयोजन एक दिन का विषय नहीं होता, तैयारियाँ पहले से होती थी और आसपास के राजवंशों को विशेष वाहक से सूचना दी जाती थी। तीसरी बात महर्षि विश्वामित्र महाराज जनक के भी आदरणीय थे, उन्होनें महर्षि को विशेष आग्रह के साथ बुलाया था और श्री राम, लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ जनकपुर गये थे। ये तो रही दूरी और संदेस की बात। अब कौन बताये कि उस जमानें में नेपाल का कहीं अस्तित्व ही नहीं था। नेपाल भी उसी भारतखण्ड़ के आर्यावर्त का हिस्सा था जिसका हिस्सा कोशल था जिसकी राजधानी अयोध्या थी। सनातन कालगणना के अनुसार वर्तमान में कलयुग चल रहा है जिसके पाँच हजार वर्ष पूर्ण हो चुके हैं, इसके पहले द्वापर युग आठ लाख चौसठ हजार वर्ष का था। भगवान श्री राम उसके पूर्व त्रेता युग में हुए थे।

ओली साहब का बयान ऐसे वक्त आया है जब भारत और चीन के बीच तनाव का माहौल है। नेपाल के रिश्ते भारत और चीन दोनों से मधुर रहे हें। वैसे ये जगजाहिर बात है कि चीन विस्तारवादी प्रवृत्ति का है। इसी बीच ओली सरकार नें नेपाल का नया नक्शा संसद से पारित कर तीन स्थानों पर भारतीय इलाकों को नेपाल का हिस्सा दिखा दिया है (जिसमें चीन के शह की बू आती है ) अब अगर अयोध्या सम्बन्धी ओली साहब के बयान के राजनीतिक और कूटनीतिक अर्थ निकाले जाँय तो ओली साहब का कहना है कि भारत नें नेपाल के साँस्कृतिक प्रतीक को हड़प लिया है। जब कि सुगौली संधि के पूर्व जनकपुर भी तत्कालीन भारतीय क्षेत्र में था। ओली साहब या तो भारत-नेपाल की साझा विरासत साझा संस्कृति , साझा पूर्वज को समझ नहीं पा रहे या समझना नहीं चाहते। वैसे राम भारत और नेपाल के नागरिकों समेत समस्त सनातन धर्मी के हृदय में हैं , और जहाँ राम वहीं अयोध्या।

ठीक है नेपाल में अयोध्या नामक स्थान(ग्राम/कस्बा) है। अभी कुछ वर्षों पहले किसी पाकिस्तानी विद्वान नें दावा किया था कि असली अयोध्या पाकिस्तान में है। विलकुल हो सकता है क्योंकि यह सभी क्षेत्र श्रीराम, उनके पूर्वजों और वंशजों के राज्य के अधीन थे। लेकिन श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या होने के लिए विशेष स्थिति होनी चाहिए। अयोध्या से सटे उत्तर पुण्य, पावन सलिला माँ सरयू का अर्धचन्द्राकार रूप से प्रवाहित होना आवश्यक शर्त है। और माँ सरयू के उत्तर पाँच छः कोस पर सरयू के समानांतर माँ सरस्वती की सप्त धाराओं में से एक मनोरमा का प्रवाहित होना भी आवश्यक है जिसके किनारे मखभूमि(मखौड़ा) होना चाहिए जहाँ पुत्रकामेष्टि यज्ञ हुआ था। फिर वहीं कहीं यज्ञ के मुख्य आचार्य महर्षि श्रृँगी का आश्रम और वर्तमान में उस आश्रम में उनकी पत्नी तथा श्रीराम की बड़ी बहन माता शांता की पिण्ड़ी (श्रृँगीनारी आश्रम ) भी होना चाहिए। फिर अयोध्या के दक्षिण तमसा नदी और नन्दीग्राम स्थल भी होने चाहिए। ये सब भौगोलिक स्थल महर्षि बाल्मीकि के रामायण गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस एवं अन्य ग्रन्थों में ये भौगोलिक स्थल वर्णित एवं वर्तमान में भी हैं। फिर अयोध्या दुनिया का आदिकालीन नगर एवं कोशल महराज इच्छवाकु द्वारा स्थापित आदि राज्य की राजधानी थी। जो कई कालखण्ड़ों में कई बार बसी है। ये स्तर आज भी अयोध्या में देखे जा सकते हैं।

मगर ओली साहब तो ओली साहब हैं उन्हें कौन रोक सकता है। अन्त में अपनें एक शेर से बात समाप्त करता हूँ….

झूँठ को कद्दावर, सच को बौना साबित कर दे, सियासत का मिजाज ही कुछ ऐसा है।।



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