गुप्तचर भाग-1
गुप्तचर भाग-1
कथा के मुख्य पात्र-
राजा अंनत- कलिंग राज्य के राजा।
राजपुरोहित-कलिंग राज्य के पुरोहित।
मार्गशीर्ष- राजा के विश्वास पात्र एवं राज्य के उपसेनापति।
सिध्रदना- मार्गशीर्ष की बालसखा और एक कुशल वीरांगना।
अज्ञात व्यक्ति- मगध साम्राज्य के गुप्तचर का सहायक।
गुप्तचर- ????????
"चित्रोत्पला(महानदी) के तट पर राजपरिवार के शिवपूजन का प्रबंध कीजिए।"राजपुरोहित जी ने दास-दासियों को आदेश दिया।
"जो आज्ञा राजपुरोहित जी"कहकर दास दासियों ने राजपुरोहित जी को प्रणाम किया और चले गए।
"महाराज यह आयोजन सर्वदा गुप्त रखा जाना चाहिए।आपके मुख्य विश्वासपात्र मंत्रियो एवं विशेष व्यक्तियों को ही इसका ज्ञान होना चाहिए।राजपरिवार के किसी सदस्य को इसका ज्ञान न हो तो ही उचित होगा।किसी सामान्य व्यक्ति को इसका आभास तक भी नही होना चाहिए।"राजपुरोहित जी निर्देश देते हुए विदा ली।
कलिंग के सम्राट अनंत सम्राट अशोक की युद्ध की घोषणा से चिंतित थे।सम्राट अशोक के साम्राज्य विस्तार मे उनका राज्य किस प्रकार स्वयं को सुरक्षित रख सकता है?,यह उनकी चिंता का प्रमुख कारण था।उनकी प्रजा को इस युद्ध का भय नहीं था क्योंकि सभी को ज्ञात था कि इस युद्ध को स्थगित करना उनके लिए असंभव है
और बिना लड़े हारना अपने आत्मसम्मान के विरूद्ध षड़यन्त्र होता इसीलिए कलिंग की प्रजा ने अपने राजा का सहयोग करने का निश्चय किया।पूर्णिमा की अर्धरात्रि मे इस शिवपूजन का आयोजन राज्य पर आए संकट को मिटाने और अपना आत्मबल बढ़ाने के लिए किया जाना था।इन सब का उत्तरदायित्व निर्वाह करना था कलिंग के सेनापति के पुत्र को जिसका नाम था-मार्गशीर्ष।
बाल्यकाल से ही मार्गशीर्ष एक तीव्र बुद्धि का स्वामी था।अपने पिता के सानिध्य में उसने युद्धकला का प्रशिक्षण प्राप्त किया था राजनीतिक कूटनीतिक
शास्त्रीय ज्ञान और विद्या में पारंगत था।वह एक आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होने के साथ-साथ एक सज्जन युवक और कलिंग का उपसेनापति और एक सजग नागरिक था।पूर्णिमा को आयोजित होने वाले इस गुप्त शिवपूजन के आयोजन का समस्त भार उसने अपने कंधों पर लिया था।इसके प्रबंध का प्रत्येक कार्य वह अपनी देखरेख में सम्पन्न कराने हेतु दृढ़संकल्पित था।
दो दिन बाद राज्य में घोषणा कर दी गई कि महाराज अपने सैन्यबल एवं कुछ मंत्रियों के साथ दूसरे देश से सहयोग-सन्धि प्रस्ताव लेकर जा रहे है।इस प्रकार महाराज अनंत ने योजनानुसार राज्य से प्रस्थान किया।अभी पूजन के नियत स्थान पर पहुँचने मे एक सप्ताह शेष था।रात्रि का समय था।मार्गशीर्ष की आँखों में नींद नहीं थी।वह इस युद्ध के परिणाम स्वरूप जन्म लेने वाली परिस्थितियों के विषय में विचार कर रहा था।सम्राट अशोक की क्रूरता की कथाएं कितनी वास्तविक थीं, उसका अनुमान लगाना कठिन था।"तो क्या मेरी मातृभूमि अपनी स्वतंत्रता खो देगी?"
मार्गशीर्ष अभी विचारमग्न ही था कि उसने एक सरसराहट सुनी।वह सतर्क हो गया।उसे कुछ दिनों से सन्देह हो रहा था कि कोई उनके शिविर का पीछा कर रहा था।वह अपनी तलवार लेकर धीरे-धीरे उस दिशा में बढ़ा लेकिन वहाँ पर कोई नही था।वहाँ पर किसी को ना पाकर मार्गशीर्ष वापस लौट आया लेकिन अब उसकी चिंता और बढ़ गई।
क्रमश