गुनाह
गुनाह


पुलिस- ( कैदी को कमरे ला कर डालता है जहा पर वकिल है) ये नीचे बैठ माफ़ किजिए सर इसे मालूम नहीं आप कौन हो, कुछ चाहिये तो बताना सर मैं बाहर ही खड़ा हूँ।
कैदी- वो पुलिस वाला कह रहा था कि आप बहुत बड़े वकील होआप मेरी केस ले रहे हो शुक्रिया साहब अल्लाह आपको हमेशा खुश रखे। ( रोते रोते पैर पकड़ने जाता है)
वकील- चलो उठो ये सब नौटंकी बंद करो।मैं तुम्हारी केस नहीं लड़ सकता इतने छोटे केस के लिये टाईम नहीं है मेरे पास। मैं बस तुम्हारी मदत करने आया हूँ।(उसे उठाकर खुर्ची पर बैठा देता है) जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ है या तुमने कुछ किया है वो सब मुझे सच सच बताओ।
कैदी- साहब मैंने कुछ किया नहीं मैं मामूली सा फूल बेचना वाला हूँ। उस दिन भी रोज़ कि तरह फूल बेच रहा था एक आदमी गाडी से निकला और आगे जाते वक़्त मेरा धका उन्हें लगा, कुछ देर बाद वो आये और चीखने लगे कि इसने मेरे पैसे चुराए।100 रुपये के लिये मैं 2 साल से जेल मै कैद हूँ। जो गुनाह मैंने किया भी नहीं उसकी सज़ा काट रहा हूँसाहब मैं घर मै अकेला ही कमाता था, जैल मैं आने के बाद में पैसे नहीं भेज पाया मेरे अब्बू कि हालत बोहोत खराब हो गई और पैसे ना होने के कारण वो भी नहीं रहे।
पुलिस भी बोहोत मारते है मुझे यंहा से बाहर जाना है अदालत मैं जज साहब बस तारीख आगे बढ़ाते हैं। किसी के पास टाईम हि नहीं हम जैसे लोगो के लिये जिन्होंने मुझ पर इल्ज़ाम डाला है वो भी नहीं आते क्योंकि उनके लिये 100rs तो बस उनकी छोटी बच्ची का जेब खर्च होगा लेकिन मुझे वो - ( रोने लगता है)
वकील : इतना काफि है मैंने तुम्हारी फाईल पढ़ी है मुझे भी लगता है, कोई चोर पॉकेट मैं से सिर्फ़ 100rs क्यों निकालेगा जबकी उसके हाथ में पूरा पॉकेट लगा था। बोहोत बुरा बर्ताव किया जा रहा है तुम्हारे साथ तुम्हारा गुनाह इतना ही था कि तुम कमज़ोर हो, अशिक्षित हो। तुम्हें आज़ादी चाहिए?
कैदी- हाँ।
वकील- कल तुम जज साहब के सामने कहो कि मैंने चोरी कि है।
कैदी- (आश्चर्य से) साहब मैंने नहीं कि चोरी मैं झूट क्यों कहूँ? मुझे इंसाफ चाहिए।
वकील- देखो फिर से वही ड्रामा शुरू मत करो। ये 7 minutes जो तुम्हारे साथ बात कर रहा हूं उस 7min में मैं 10 नये केस लेता हूँ।×मेरे पास टाइम कि बहोत कमी है अब तुम सोचो तुम्हें इंसाफ चाहिए या आज़ादी? दोनों अलग चीज़ें हैं।
कैदी- मगर इंसाफ ?
वकील- इंसाफ इंसाफ जैसी कोई चीज़ नहीं होती। हमारा सिस्टम कानून के हिसाब से चलता है तुम कितना भी बड़ा गुनाह क्यों ना करो अगर कानून का सही इस्तेमाल किया तो तुम आज़ाद हो। इंसाफ एक मिथ्या है बस, कानून सच्चाई है और जो एक मिथ्या है मैं उसका वादा कैसे कर सकता हूँ। ( उठता है) अब यह तुम्हारा फैसला हैं।
कैदी- मैं अपना गुनाह कबूल करता हूँ।
जज साहब- 100 रुपये की चोरी करने के गुनाह में मैं मुजरिम को 3 महीने की सज़ा सुनाता हूँ, लेकिन मुजरिम 2 साल से जेल मैं हैं वो अपनी सज़ा पहले से काट चुका है इसलिये मैं उसकी रिहाई को मंज़ूर करता हूँ।