गुलमोहर एक सेतु

गुलमोहर एक सेतु

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माँ को गुलमोहर का पेड़ बहुत पसंद है। उनकी इच्छा है की अपने आँगन में गुलमोहर का पेड़ होना चाहिए लेकिन गुलमोहर का पौधा लाए कहा से ? नर्सरी में ज्यादा पोधे थे मगर उस समय गुलमोहर नहीं था। पत्नी ने सास की इच्छा को जान लिया। उसका अपने रिश्तेदार के यहाँ शहर जाना हुआ तो उसे सास की गुलमोहर वाली बात याद आ गई। उसने पौधे बेचने वाले से एक गुलमोहर का पौधा खरीद लिया। बस में बैठकर उसे अपनी गोद में रख कर संभाल कर घर ले आई। घर पर स्वयं ने गढ्ढा खोदकर उसे रोपा और पानी  दिया। 

करीब चार साल बाद नन्हा पौधा जो की बड़ा हो चुका और उसमे पहली गर्मी में फूल खिले, पूरा गुलमोहर सुर्ख रंगो से मनमोहक लग आँखों को सुकून प्रदान कर रहा था।

माँ खाना खाते समय गुलमोहर को देखती तो उसे ऐसा लगता मानो वो बगीचे में बैठ कर खाना खा रही हो। मन की ख्वाहिश पूरी होने से जहां मन को सुकून मिल रहा था वही बहू ने अपनी सेवा भाव को पौधारोपण के जरिए उसे पूरा किया। अब आलम ये है की जब सास बहू में कुछ भी अनबन होती तो गुलमोहर के पेड़ को देखकर छोटी छोटी गलतियां माफ़ हो जाती है।

रिश्तों को सुलझाने में किसी माध्यम की जरुरत होती है। ठीक उसी तरह आज उनके बीच माध्यम गुलमोहर का पेड़ एक सेतु का कार्य कर रहा है। 


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