KK Kashyap

Inspirational

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KK Kashyap

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गुल्लक माटी की

गुल्लक माटी की

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अपने जीवन से जुडी एक सरल-सादी,भोलेपन की छोटी सी कहानी , " क्या मेरा साया साथ है , एक एहसास केवल, पर इसे पकड़ ना सका", I है ना एक  अधबुझा अपनत्व का हिस्सा, जिसे अतीत के गहरे जीवन-सफर ने अपने गर्द से धुंधला कर दियाI  फिर भी है तो ये प्यार ही I जी भाई और बहन का एक अनोखा रिश्ता---

                                                                       प्रेम-प्यार की डोरी -  "रक्षा-बंधन".

                                             कुछ  बीते मीठे पल जैसे रेत पर बने पदचिन्ह, एक  बोध अतीत का I

हम छोटे हुआ करते थे I हमें  खर्चे के लिए रोज पिताश्री से ताम्बे का एक पैसा मिला करता था  I पर बहन को दो पैसे I   ऐसा हर पिता करता है, अपनी बेटी के लिए I  क्यूंकि पिता के अंतर्मन को कहीं आभास होता हैकि एक ना एक दिन तो बिटिया को परायी होना ही है I  पता नहीं विधि ने बेचारी के भाग्य मे कितना सुख लिखा है I कम से कम पिता कुछ तो सुख उस की झोली मे डाल ही दे I ऐसा हर पिता अपनी बेटी के लिए सोचता है I

हम भाइयों का एक पैसा जल्दी खर्च हो जाता था I पर बहन कुछ कंजूसी से खर्च करती थी I  इसी वजय से उस के पास पैसे रहते थे I  हम भाई-बहन की आदद थी रोज फालसे खाने की I  बहन अपने पैसे फालसे के लिए जरूर खर्च करती थी I बहन हम सभी सात भाइयों की अकेली बहन थी I सभी की चहती, माता-पिता  की दुलारी, हम सभी भाई उस से बहुत ही प्यार करते थे I

 एक दिन कुछ ऐसा हुआ, फालसे वाला नहीं आया I  उस के आने से पहले  पीलवे वाला आ गया और आवाज लगाने लगा," पीलवे ले लो, पीलवे ले लो, मीठे-ठन्डे पीलवे ले लो" I  ये नाम मैंने पहली बार सुना था I येही कारण  पीलवे के स्वाद की लालसा मन में जाग गयी I पर पैसे तो थे नहीं पास I क्या किया जाए ? 

 झट ख़याल आया, क्यूं ना बड़ी बहन को फुसलाया जाए I  बस फिर क्या, चला बहन के पास  I बहुत ही मधुर-लेय में मैंने कहा, " बहन आज फालसे वाला नहीं आया, पीलवे वाला आया है", I दिखने मे  फालसे से ज्यादा अच्छे पीले- पीले हैं और मीठे भी लगते  हैं I बहन बोली, "पता नहीं कैसे होंगे, पीलवे ?  चल हट फालसे वाले को आने देI   पर मेरी इच्छा तो पीलवे के स्वाद लेने की थी I

फिर से कुछ हिम्मत दिखाई और कहा , " बहन एक बार खा कर तो देख ले, वैसे भी सभी ले रहे हैं I  चटकारे मार- मार कर खा भी रहे हैं I मतलब की पीलवे अच्छे हैं I  चटकारे का नाम सुन कर किस का मन नहीं लुभाता, कुछ-कुछ मेरी बहन पर भी असर हुआ I बेचारी भोली मेरी रसभरी बातों मे आ गयी और एक पैस के पीलवे ले ही लिए I

जब हम ने खाये तो इस का स्वाद  कुछ अटपटा सा लगा I  मुँह मेरा कसैला सा हो गया I बहन का मुँह का स्वाद भी बिगड़ गया था I  उस ने गुस्से मे आ कर सारे पीलवे फेंक दिए और मुझ पर गुस्सा करने लगी I मुझे भी दुःख हुआ I  पर बहन को चिल्लाते देख, कुछ मज़ा भी आया I बेचारी सारे दिन एक पैसे के लिए कलपती रही I उस दिन के बाद से हम सभी भाई अपनी बहन को पीलवे कह कर छेड़ते थे और हँसा करते थे I

पिता जी ने बेचारी की बहुत ही छोटी उम्र मे शादी कर दी I  तब तो वह केवल 15 साल की ही होगी I  बहन परायी हो गयी I  पर मुझे उस की और पीलवे की याद आती थी I मुझे कंचे खेलने की बहुत आदत थी I  मैं जो कंचे खेल में जीत लेता, उन्हें  साथ ही साथ अपने दोस्तों को बेच भी देता I इस तरहां से मैंने एक माटी की गुल्लक  मे ढेर सारे पैसे इकट्ठे कर लिए थे I पहली बार बहन, जीजा जी के साथ रक्षा बंधन के त्यौहार में घर  पर आयी I सभी भाइयों को माता-पिता ने कुछ न कुछ पैसे दे दिए, बहन को नेक देने के लिए I पर मुझे घर की माली हालत का आभास था, क्यूँ कि मै हरदम माता के पल्लू से ही चिपका रहता था I इसी लिए मुझे माता-पिता से पैसे लेने में संकोच रहा I

मैंने अपनी बहन को नेक देने के लिए अपनी माटी की गुल्लक फोड़ दी I जब पैसे की गिनती की तो लगभग 5 रूपए  निकले, जिसे  मैंने अपनी बड़ी बहन को नेक के रूप मे भेट कर दिए I  मेरी गुल्लक अब टूट चुकी थी I  बहन बहुत ही खुश हुई I  इस तरहां मैंने अपनी बहन के एक पैसे का ऋण रक्षा बंधन के दिन चुकता किया I

पर पीलवे की घटना आज भी मेरे मानस पटल पर तारो ताज़ा बनी रहती है I पाठको बहन छोटी हो या फिर बड़ी I  चाहे  मुँह बोली ही क्यूँ ना हो I  उस के स्नेह  को अवश्य ही पाने की कोशिश करनी चाहिए I  मेरी बहन ने बदले मे बहुत ही प्यार लुटाया, जो आज भी मेरे साथ है I  क्यूंकि मेरी माया गुल्लक आज भी कभी खाली नहीं रहती I  इति  

                                                                                                                                                   कलमकार                                                                                                                                                                                                                ( के0 के0 कश्यप )                                                                                                                                                                                                               मौलिक रचना

 



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