गुल्लक माटी की
गुल्लक माटी की
अपने जीवन से जुडी एक सरल-सादी,भोलेपन की छोटी सी कहानी , " क्या मेरा साया साथ है , एक एहसास केवल, पर इसे पकड़ ना सका", I है ना एक अधबुझा अपनत्व का हिस्सा, जिसे अतीत के गहरे जीवन-सफर ने अपने गर्द से धुंधला कर दियाI फिर भी है तो ये प्यार ही I जी भाई और बहन का एक अनोखा रिश्ता---
प्रेम-प्यार की डोरी - "रक्षा-बंधन".
कुछ बीते मीठे पल जैसे रेत पर बने पदचिन्ह, एक बोध अतीत का I
हम छोटे हुआ करते थे I हमें खर्चे के लिए रोज पिताश्री से ताम्बे का एक पैसा मिला करता था I पर बहन को दो पैसे I ऐसा हर पिता करता है, अपनी बेटी के लिए I क्यूंकि पिता के अंतर्मन को कहीं आभास होता हैकि एक ना एक दिन तो बिटिया को परायी होना ही है I पता नहीं विधि ने बेचारी के भाग्य मे कितना सुख लिखा है I कम से कम पिता कुछ तो सुख उस की झोली मे डाल ही दे I ऐसा हर पिता अपनी बेटी के लिए सोचता है I
हम भाइयों का एक पैसा जल्दी खर्च हो जाता था I पर बहन कुछ कंजूसी से खर्च करती थी I इसी वजय से उस के पास पैसे रहते थे I हम भाई-बहन की आदद थी रोज फालसे खाने की I बहन अपने पैसे फालसे के लिए जरूर खर्च करती थी I बहन हम सभी सात भाइयों की अकेली बहन थी I सभी की चहती, माता-पिता की दुलारी, हम सभी भाई उस से बहुत ही प्यार करते थे I
एक दिन कुछ ऐसा हुआ, फालसे वाला नहीं आया I उस के आने से पहले पीलवे वाला आ गया और आवाज लगाने लगा," पीलवे ले लो, पीलवे ले लो, मीठे-ठन्डे पीलवे ले लो" I ये नाम मैंने पहली बार सुना था I येही कारण पीलवे के स्वाद की लालसा मन में जाग गयी I पर पैसे तो थे नहीं पास I क्या किया जाए ?
झट ख़याल आया, क्यूं ना बड़ी बहन को फुसलाया जाए I बस फिर क्या, चला बहन के पास I बहुत ही मधुर-लेय में मैंने कहा, " बहन आज फालसे वाला नहीं आया, पीलवे वाला आया है", I दिखने मे फालसे से ज्यादा अच्छे पीले- पीले हैं और मीठे भी लगते हैं I बहन बोली, "पता नहीं कैसे होंगे, पीलवे ? चल हट फालसे वाले को आने देI पर मेरी इच्छा तो पीलवे के स्वाद लेने की थी I
फिर से कुछ हिम्मत दिखाई और कहा , " बहन एक बार खा कर तो देख ले, वैसे भी सभी ले रहे हैं I चटकारे मार- मार कर खा भी रहे हैं I मतलब की पीलवे अच्छे हैं I चटकारे का नाम सुन कर किस का मन नहीं लुभाता, कुछ-कुछ मेरी बहन पर भी असर हुआ I बेचारी भोली मेरी रसभरी बातों मे आ गयी और एक पैस के पीलवे ले ही लिए I
जब हम ने खाये तो इस का स्वाद कुछ अटपटा सा लगा I मुँह मेरा कसैला सा हो गया I बहन का मुँह का स्वाद भी बिगड़ गया था I उस ने गुस्से मे आ कर सारे पीलवे फेंक दिए और मुझ पर गुस्सा करने लगी I मुझे भी दुःख हुआ I पर बहन को चिल्लाते देख, कुछ मज़ा भी आया I बेचारी सारे दिन एक पैसे के लिए कलपती रही I उस दिन के बाद से हम सभी भाई अपनी बहन को पीलवे कह कर छेड़ते थे और हँसा करते थे I
पिता जी ने बेचारी की बहुत ही छोटी उम्र मे शादी कर दी I तब तो वह केवल 15 साल की ही होगी I बहन परायी हो गयी I पर मुझे उस की और पीलवे की याद आती थी I मुझे कंचे खेलने की बहुत आदत थी I मैं जो कंचे खेल में जीत लेता, उन्हें साथ ही साथ अपने दोस्तों को बेच भी देता I इस तरहां से मैंने एक माटी की गुल्लक मे ढेर सारे पैसे इकट्ठे कर लिए थे I पहली बार बहन, जीजा जी के साथ रक्षा बंधन के त्यौहार में घर पर आयी I सभी भाइयों को माता-पिता ने कुछ न कुछ पैसे दे दिए, बहन को नेक देने के लिए I पर मुझे घर की माली हालत का आभास था, क्यूँ कि मै हरदम माता के पल्लू से ही चिपका रहता था I इसी लिए मुझे माता-पिता से पैसे लेने में संकोच रहा I
मैंने अपनी बहन को नेक देने के लिए अपनी माटी की गुल्लक फोड़ दी I जब पैसे की गिनती की तो लगभग 5 रूपए निकले, जिसे मैंने अपनी बड़ी बहन को नेक के रूप मे भेट कर दिए I मेरी गुल्लक अब टूट चुकी थी I बहन बहुत ही खुश हुई I इस तरहां मैंने अपनी बहन के एक पैसे का ऋण रक्षा बंधन के दिन चुकता किया I
पर पीलवे की घटना आज भी मेरे मानस पटल पर तारो ताज़ा बनी रहती है I पाठको बहन छोटी हो या फिर बड़ी I चाहे मुँह बोली ही क्यूँ ना हो I उस के स्नेह को अवश्य ही पाने की कोशिश करनी चाहिए I मेरी बहन ने बदले मे बहुत ही प्यार लुटाया, जो आज भी मेरे साथ है I क्यूंकि मेरी माया गुल्लक आज भी कभी खाली नहीं रहती I इति
कलमकार ( के0 के0 कश्यप ) मौलिक रचना