TARUN JOSHI

Romance

4.5  

TARUN JOSHI

Romance

गुलाब का वो फूल

गुलाब का वो फूल

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ज़रा ज़रा महकता है ...महकता है आज तो मेरा तन बदन मैं प्यासी हूँ ….मुझे भर ले ...अपनी बाहों में ….ज़रा ज़रा...

अनिकांत जब से नहाकर आये हैं बस लगातार यही गाना गुनगुना रहे हैं ...उनकी बीवी एकटक उन्हें देख रही हैं ..देख रही है और हैरान हो रही है क्योंकि वो उन्हें बहुत करीब से जानती है और जो लोग उन्हें करीब से जानते हैं उन्हें एहसास है कि अनिकांत को फ़िल्मी गानों से कितनी नफरत है। सिर्फ फिल्मों से ही नहीं बल्कि पूरे फ़िल्मी कल्चर से .. विधायक के पद पर बैठे हुए इंसान को संजीदा होना ही चाहिए ...वे अक्सर कहते थे ..अनिकांत इंदौर शहर की एक विधानसभा सीट से विधायक हैं ...माने हुए जन-प्रतिनिधि हैं। केंद्र सरकार तक उनकी ख़बरें पहुँचती हैं ...स्वभाव से बेहद संजीदा हैं ...या यूँ कहना चाहिए कि कुछ कुछ खडूस हैं। वे और उनकी पार्टी भारतीय संस्कृति को बचाए रखने के कट्टर प्रशंसक हैं तो स्वाभाविक रूप से फ़िल्मी गानों के विरोधी भी हैं। उम्र का असर उनके शरीर पर दिखने लगा है ...सर के ज्यादातर बाल सफ़ेद हो चुके हैं ..पत्नी आए दिन उम्र का ताना मारती है ...कहती रहती हैं बाल काले कर लेने चाहिए ..पर वे हमेशा टाल देते हैं। कहते हैं कि मेरा व्यक्तित्व मेरा हुलिया नहीं है बल्कि मेरे द्वारा किये गए जनता के काम है। एक सफ़ेद कुरता पायजामा...कुरते की जेब में Mont Blanc का पेन ...और बेतरतीब से बिखरे हुए बाल ! शायद ही कोई नेता आज के जमाने में इतना तपस्वी जीवन जीता हो। लाखों रूपए के अरमानी के सूट ...महँगी rowlex की घड़ियाँ ...कीमती जूते सब अलमारी में पड़े धूल फाँक रहे हैं। कोई कितना भी कह ले पर अनिकांत से कोई नहीं जीत सकता...वाद विवाद में तो अनिकांत से वैसे भी कोई नहीं जीत सकता ...विधान सभा से लेकर ...टीवी तक ...सड़कों से संसद तक उनका वाक् चातुर्य प्रसिद्ध है। अक्सर तीखे सवाल पूछे जाने के लिए जाने जाते हैं।

खैर वापस आज की सुबह पर लौटते हैं ...अनिकांत पूरी तल्लीनता से गाने गा रहे हैं ...और उनकी पत्नी उर्मिला ..यानी कि उर्मि एकटक उन्हें देख रही है। अचानक उन्हें महसूस हुआ कि उनके पति अनिकांत जी का चेहरा कुछ बदला बदला सा दिख रहा था ...अरे आज इन्होंने अपने बाल कलर कर लिए हैं ..अपनी उम्र से सात साल छोटे दिख रहे हैं अनिकांत! - उर्मि ने मन ही मन सोचा।

“अरे ! आपने बाल काले कर लिए “ - उर्मि ने हैरान होकर पूछा 

अनिकांत ने कुछ कहा नहीं ...बस मुस्कुरा दिए उसकी ओर देख कर !

फिर अचानक से बोले - “ उर्मि मेरा इटालियन परफ्यूम निकाल कर रख देना ...कल काम आएगा।”

चेहरा ताकती रह गयी उर्मि अपने पति का ...पूछना चाहती थी उनसे कि अचानक क्या हो गया है ? पर उन्हें देख कर लग रहा था कि आज वो किसी भी तरह के सवाल जवाब के मूड में नहीं हैं ! एक अलग ही रूप था उनका जो उन्होंने आज देखा था ..अभी तक वे बस गाने गाये जा रहे थे। उनके चेहरे की चमक और गाने की तल्लीनता देख कर उर्मि उन्हें टोकना नहीं चाहती थी।

10 - 15 मिनट तक शीशे के सामने खड़े होकर खुद को निहारने के बाद ….उन्होंने अपना चिर परिचित सफ़ेद कुरता पजय्मा पहना और अपने ऑफ़िस चले गए ..उर्मि हैरान थी ….जिज्ञासा उसे जीने नहीं दे रही थी ..मगर करती भी तो क्या करती ? यह मस्ती भरा मूड कई दिनों बाद देखा था अनिकांत ने ….बैठे बैठे सोफे पर ही दोपहर के बारह बज गए उर्मि को।

अचानक उनका फोन बज उठा ….अनिकांत का फोन था..

“सुनो उर्मि ! कल मेरे कॉलेज का री-यूनियन है ….सभी पुराने दोस्त मिलेंगे ….फैमिली के साथ जाना है ….थोड़ा वक़्त निकाल कर रखना ...बाद में फोन करता हूँ ! “ 

और फोन काट दिया।

अच्छा ! तो इसके लिए इतना श्रृंगार हो रहा है ...उर्मि ने मुस्कुराकर कहा ...पर कॉलेज के री यूनियन के लिए ...इतना श्रृंगार तो पिछले महीने जब दिल्ली गए थे प्राइम मिनिस्टर ऑफिस में ...तब भी नहीं किया था।

उधर अपने केबिन में अनिकांत बिना वजह मुस्कुरा रहे हैं ...आज के सारे अपॉइंटमेंट्स कैंसिल कर दिए हैं उन्होंने …

“खुद अनन्या मैडम ने फोन किया था “ - जोर से बोल उठे अनिकांत ...फिर होठ भींच लिए ...चोर नज़रों से इधर उधर देखने लगे ...कि कहीं किसी ने सुन तो नहीं लिया ….फिर चैन की सांस ली ...कमरे में उनके अलावा और कोई नहीं था।

अनन्या मैडम ….दरअसल उनकी टीचर नहीं थी बल्कि कॉलेज की सीनियर थी। जब उन्होंने ग्रेजुएशन में एडमिशन लिया था तब वो उसी कॉलेज से PHD कर रही थी ...फिलोसोफी में ...फिलोसोफी मतलब दर्शन शास्त्र ...ग़जब की पकड़ उनकी विषय पर ...और भाषा पर। कॉलेज का नियम था कि ग्रेजुएशन की कक्षाएं पीएचडी के शोधार्थी लेते थे इसलिए उनका दर्शन शास्त्र और दर्शन दोनों उनके ज़िम्मे था।

अनिकांत ने उन्हें पहले लेक्चर में देखा था और अपना दिल और दिमाग सब कुछ उन्हें दे बैठे थे। एक अजीब सी नफासत थी उनके अंदाज़ में ….बिलकुल गोरा चेहरा …..तरतीब से कटे भूरे बाल ….हलके गुलाबी रंग की लिपस्टिक ….गाहे बगाहे जब हँसती थी तो उनकी झक सफ़ेद दंतपंक्ति नज़र आती थी ….कई बार उन्हें बस देखते रह जाते थे अनिकांत एकटक ! कई बार उनका ध्यान वापस लाने के लिए चाक का टुकड़ा फेंक कर मारा था अनन्या ने। वो सारे चाक के टुकड़े आज तक सहेज कर रखे थे अनिकांत ने एक डिब्बे मनोट्स लेने ,डाउट सोल्व करने के बहाने एक गुलाबी सी दोस्ती करने में कामयाब भी हो गए थे अनिकांत ….अनन्या भी अब उनके साथ वक़्त बिताना पसंद करने लगी थी।

उम्र में सात साल का फर्क था ...उम्र और समझदारी दोनों में बड़ी थी अनन्या ! अक्सर अनिकांत को बच्चा कहकर चिढाती थी ...वो झेंप से जाते थे। वो कब अनिकांत को अनी कहने लगी थी ….दोनों को पता ही नहीं चला ...उस दौर में फ़िल्मी गानों का बहुत प्रचलन था….वे भी जवान थे अक्सर कॉलेज के जलसों में गाने गाते थे तब सबसे ज्यादा तालियाँ अनन्या ही बजाती थी …ज़रा ज़रा वाला गाना जब भी अनिकांत गाते थे तब ‘वंस मोर अनी!’ कहकर चिल्लाने लगती थी...अनन्या की सहेलियाँ अक्सर उसे समझाती थी कि यह हरकतें बिलकुल भी ठीक नहीं हैं ….टीचर और स्टूडेंट के बीच एक कांच की दीवार हमेशा रहनी चाहिए ….सात साल ही सही पर वो तुमसे छोटा है ...तुम्हारा स्टूडेंट है। यह सुनकर अनन्या भी हँस देती थी ….” उससे शादी करने की बात थोड़े ही कह रही हूँ ….बस गाने की तारीफ कर रही हूँ ! ”

दरवाजे पर एक दस्तक हुई और अनिकांत जी यादों के झरोखे से निकलकर वर्तमान में आ गए ...उनका चपरासी था ….शाम की चाय लाया था ...चाय का वक़्त भी हो गया था ….पूरा दिन ऑफ़िस में बैठकर ऐसे ही बीत गया ….पता ही नहीं चला !

घर आकर थोड़ी देर सोफे पर बैठे ...फिर अपनी पत्नी को पुकारा 

 “ उर्मि ! ओ उर्मि ! “

“हाँ बोलिए ! “

कल आ रही हो न वहाँ पर ...प्रश्नवाचक नज़रों से उन्होंने उसे देखा 

“हाँ अब आपका इतना आग्रह है तो ज़रूर चलूंगी” -शरारती सी मुस्कान के साथ उर्मि ने कहा 

“सुनो ! यह पहन लेना कल “- ऐसा कहकर उन्होंने उसके हाथ में एक डिब्बा थमा दिया और चले गए अपने कमरे में ...उनके जाने के बाद उर्मि ने खोलकर देखा...डायमंड नेकलेस था उसमें 

तुरंत जाकर थैंक्स बोलना चाहती थी उर्मि ….तब तक अनिकांत सो चुके थे एक अलग ही मुस्कान होठों पर लेकर ...इस नींद को नहीं तोड़ना चाहती थी ….यह मुस्कान अपने पति के चेहरे पर देखने के लिए कुछ भी कर सकती थी उर्मि ….वो भी मुस्कुराकर उनके बगल में ही आकर लेट गयी ….धीरे धीरे नींद ने दोनों को अपने आगोश में ले लिया।

अगली सुबह उर्मि से भी जल्दी उठ गए थे अनिकांत ...चाय की दो प्यालियाँ लेकर आए थे ...और धीरे से आवाज़ लगाकर उठाया  

“ अब यह ज्यादा हो रहा है “- उर्मि ने मन ही मन कहा ...यह तो अनिकांत ने पिछले 5 - 6 साल में कभी नहीं किया था अनिकांत ने …

पूछना चाहती थी उर्मि उनसे कि क्या बात है आज ...सूरज पश्चिम से कैसे निकला है पर नहीं पूछ पायी….तब तक खुद ही बोल पड़े अनिकांत ….” बड़े दिनों बाद आज खुद के हाथों की चाय पीने का मन किया ...इसलिए ...बस ज्यादा मत सोचो ! “..….”तो मैं कुछ कह थोड़े ही रही हूँ “ - शरारती सी मुस्कान बिखेर दी उर्मि ने …

फिर अचानक से बोल उठे अनिकांत‘ “शाम को चार बजे चलना है ! ”

और फिर चाय ख़त्म करके नहाने चले गए अनिकांत ..ताकीद करके गए हैं कि किसी भी सूरत में लेट नहीं होना है। अभी शाम को घंटे भर तैयार होने के बाद अनिकांत अब निकले हैं अपने कमरे से …

उन्हें बस देखती रह गई उर्मि ...अरमानी का डार्क ब्राउन सूट ….सोने के फ्रेम वाला चश्मा ….और मंद मंद महकता इटालियन परफ्यूम …

“चलो मैं गाडी में नीचे तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ !

गाडी में धीमा धीमा सा संगीत चल रहा था ….बीस मिनट तक लगातार गाडी चलाने के बाद वे पहुंचे ...पार्टी J W Mariott में रखी गई थी ….पहले नार्मल ड्रिंक्स का दौर चला ...कुछ बेहद ख़ास दोस्त थे अनिकांत के जिनसे वे बेहद गर्मजोशी से मिले थे। थोड़ी देर तो ये बेतकल्लुफी चली फिर वापस अनिकांत उसी मोड में आ गए ...एक स्वच्छ छवि वाला राजनेता ! लोग भी उनके विधायक आभामंडल की चपेट में आ गए….एक शालीन दूरी बनाकर बात करने लगे ….गाहे बगाहे ‘अनिकांत जी’ का यह संबोधन आ ही जाता है ...कमबख्त यहजी ‘ पीछा ही नहीं छोड़ता। पार्टी बेहद ठंडी हो चली थी ...अनिकांत भी चलने के लिए बार बार घडी की ओर देखने लगे थे …

तभी एक आवाज़ आई

‘अरे अनी तुम ?'

‘अनी !’ अनिकांत को इस नाम से बुलाने वाले काफी कम लोग बचे थे दुनिया में। 

अनिकांत ने पीछे मुड़कर देखा ...तो एक अधेड़ उम्र की औरत खड़ी थी ...गुलाबी सा सूट पहने हुए ….अरे ये तो अनन्या थी ...मतलब अनन्या मैडम !....आज भी उतनी ही खूबसूरत ! चेहरे पर वही नफासत ...आवाज़ में वैसी ही कशिश ...हाँ उम्र का थोड़ा असर ज़रूर दिखने लगा था ...बालों में थोड़ी सफेदी आ गई थी और चेहरे में थोड़ी झुर्रियाँ किसी 5 साल के बच्चे की तरह चहक उठे अनिकांत ...कपोल कुछ कुछ गुलाबी भी हो गए …!

“बहुत अच्छे लग रहे हो अनी ! बस! इसकी कमी है ! ” और फिर बगल से गुज़र रहे वेटर की ट्रे में से गुलाब का एक फूल उठाकर उनके कोट की जेब में लगा दिया !

और फिर चहकते हुए बोल उठी 

“अरे ! गाना-वाना सुना कि नहीं आप सबने ...अपने अनिकांत से “ -और फिर फिस्स से हँस दी।

उसके बाद अनन्या अधिकार पूर्वक खींचकर ले गई उन्हें स्टेज पर ...हाथ में माइक थमाकर बोली - “अरे वही वाला गाना अनी !’ और फिर सामने जाकर बैठ गई ..

अनिकांत ना नुकुर करते रहे ...2 - 3 मिनट तक यह सब चलता रहा फिर अनन्या ने फिर से कहा - “अब नाटक मत करो अनी “ !

और फिर हवाओं में एक सुरीली सी आवाज़ तैर गई ...उर्मि ने सर उठाकर देखा ...अनिकांत अब गा रहे थे। 

ज़रा ज़रा महकता है ...महकता है आज तो मेरा तन बदनमैं प्यासी हूँ ….मुझे भर ले ...अपनी बाहों में ….ज़रा ज़रा

उस रात पार्टी रात के एक बजे तक चली...बहुत गाने गाये अनिकांत ने ...बहुत चुटकुले सुनाये।

अनिकांत और उर्मि जब तक घर पहुँचे रात के दो बज चुके थे | अनिकांत बहुत थक चुके थे जाते ही सो गए पर उर्मि जाग रही थी। उसने आज तक इतना जिंदादिल अनिकांत कभी नहीं देखा था ….जिम्मेदारियों ने वो जिन्दादिली छीन ली थी उनसे ...वो बस सोच रही थी ...और बस सोचती ही जा रही थी। तभी उसकी नज़र टेबल पर पड़े उनके कोट पर पड़ी ...थकान के कारण वहीं रख दिया था उन्होंने …उसे उठाकर रखने के लिए वे उठीं तो देखा गुलाब का फूल अब भी उनके कोट की जेब में लगा मुस्कुरा रहा था। 

उर्मि ने गुलाब का फूल लिया ...पास ही रखी एक किताब में सहेजकर रख लिया ….बस ऐसे ही !

और फिर किताब को तकिये के नीचे रखा और सो गई ...पता नहीं क्यों ?

हम चहक रहे थे गजलों की किताब की तरह।

उन्होंने हमें सहेज कर रख लिया महकते गुलाब की तरह।


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