Akanksha Gupta

Drama

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Akanksha Gupta

Drama

गुड़िया

गुड़िया

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रात के दस बजे अशोक कार से अपने घर लौट रहा था कि उसे सड़क के किनारे पर एक मैली-कुचैली कपड़े की गुड़िया दिखी। हालांकि अशोक को गुड़ियों से बचपन से ही एक चिढ़ थी लेकिन इस गुड़िया में एक अजीब सा आकर्षण था। वह कार से नीचे उतरा और गुड़िया के पास गया। उसने गुड़िया को उठाकर देखा। उसकी फ्रॉक फटी हुई थी और मुंह पर मिट्टी लगी हुई थी। उसने गुड़िया का मुंह हाथों से साफ किया और गुड़िया को अपने साथ

अपने घर ले आया।

घर आते ही उसने गुड़िया एक रॉकिंग चेयर पर रखी और हाथ मुंह धोने और कपड़े बदलने बाथरूम में चला गया। वह बाथरूम में अपना मुंह धो ही रहा था कि तभी उसे कोई आवाज सुनाई दी। उसने ध्यान से सुना तो लगा जैसे कोई रॉकिंग चेयर जोर जोर हिला हो। उसने वॉश बेसिन का नल बंद किया तो यह आवाज और तेज हो गई।

अशोक बुरी तरह घबरा गया। वह बिना कपड़े बदले धीरे धीरे दरवाजे की ओर बढ़ रहा था। दरवाजे पर पहुंच कर वह रुक गया। यह आवाज और तेज हो गई थी। उसने दरवाजे को थोड़ा सा खोल कर बाहर देखा तो आवाज आनी बंद हो गई। गुड़िया भी अपनी जगह पर रखी हुई थी।

उसने चैन की सांस ली। उसने जल्दी से कपड़े बदले और बाहर निकल आया। उसने अपने लिए कॉफी बनाई और पलंग पर आराम से पैर फैलाकर बैठ गया।

वह कॉफी पी रहा था कि तभी फिर से रोलिंग चेयर की तेज आवाज आनी शुरू हो गई। उसने नजर उठा कर देखा तो डर गया। गुड़िया कुर्सी पर नही थी। उसने इधर उधर देखा लेकिन गुड़िया कही नही थी। वह गुड़िया को ढूंढने के लिए उठने ही वाला था कि उसके कान में फुसफुसाहट हुई- “अशो..........क।”

उसने पलटकर देखा तो गुड़िया उसके पीछे बैठी थी। वह डर कर पीछे हटा ही था कि गुड़िया ने धीरे से कहा- “ मुझे पहचाना?”

अशोक के दिल की धड़कन तेज हो गई थी। वह हकलाते हुए बोला- “कौन हो तुम?”

गुड़िया शैतानी हंसी हंसते हुए बोली- “तुम्हारी दादी मुझे चुड़ैल कह कर बुलाती थी। उन्हें लगता था कि मैं उनके पोते को लड़की में बदल दूंगी (जोर से हंसती है) और इसी वजह से उस बुढ़िया ने मुझे घर से बाहर फेंक दिया।(गुड़िया की आंखे बाहर आने के लिए आतुर थी।

अशोक के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आई थी। अशोक पलंग से नीचे उतरते हुए बोला- “देखो, यह सब मैने नही किया तुम्हारे साथ। तुम्हारे जाने के बाद तो मैं किसी और गुड़िया से खेला तक नही। मैं तो हमेशा तुम्हें ही याद करता था।”

गुड़िया और जोर से हंसती है। छलांग लगाकर पलंग से नीचे आती है। अशोक की ओर धीरे धीरे बढ़ते हुए फुसफुसाकर पूछती है- “अच्छा तो क्या आज भी तुम मुझे उतना ही पसंद करते हो जितना बचपन में करते थे?”

जैसे-जैसे गुड़िया आगे बढ़ रही थी, वैसे-वैसे अशोक पीछे जा रहा था। उसके दिल की धड़कनें इतनी बढ़ गई थी कि लग रहा था कि यह उसकी जिंदगी का आखिरी पल है। वह बोला- हाँ, मै तुम्हें आज भी उतना ही पसंद करता हूँ जितना बचपन मे करता था।”

गुड़िया अशोक के पास आई और धीरे से बोली- “तो क्या तुम मुझे पीने के लिए कुछ दे सकते हो?”

अब अशोक की जान में जान आई। उसने सोचा कि इसे तो प्यास लगी हैं और मैं बेवजह ही इससे इतना डर रहा था। ऐसे ही सोचते हुए वह गुड़िया से पूछता है- “बोलो क्या चाहिए तुम्हें? ठंडा या गर्म।

गुड़िया की आंखों में शैतानी चमक आ जाती हैं। “तुम्हारा खून” यह कहते हुए वह अशोक के ऊपर कूद जाती है लेकिन अशोक ठीक वक्त पर पीछे हट जाता है।

अब अशोक उठकर बाथरूम की तरफ भागता है और खुद को बाथरूम में बंद कर लेता है। दरवाजा बंद करके जैसे ही वह पीछे मुड़कर देखता है तो उसकी सांस अटक गई। गुड़िया उसके पीछे ही खड़ी थी। वह जल्दी से दरवाजा खोलकर बाहर भागता है लेकिन घबराहट में वह एक मेज से टकरा कर गिर जाता है।

अब गुड़िया उसके ऊपर चढ़ कर बैठी हुई थी। वह धीरे धीरे अपने नुकीले दांत अशोक की गर्दन की ओर बढ़ाती है और फिर......

अगली सुबह अशोक देखता है कि उसके हाथ मे अपनी एक फैमिली फोटो एलबम थी जिसकी एक फोटो में वह अपनी दादी के साथ खड़ा है और उसके हाथ मे वहीं गुड़िया है जो कल रात उसका खून पीने जा रही थी। इतना याद आते ही वह उछल कर अपने बिस्तर पर बैठ जाता हैं। उसकी नजर इधर उधर दौड़ रही थी लेकिन वो डरावनी गुड़िया कही पर भी नही थी। उसने उठकर पूरा घर छान मारा लेकिन उसे वो गुड़िया कही नही मिली।

उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हुआ है। क्या सचमुच वो गुड़िया एक खिलौना नहीं, एक चुड़ैल थी? क्या सच में उसने उसका खून पिया है और अब वह एक पिशाच बन गया है?

वह परेशान सा अपना सिर झुकाए बैठा था कि तभी उसकी नजर अपनी मेज पर रखी हुई एक गुड़िया पर पड़ी जो बाजार की पैकिंग में बंद थी।

उसे याद आया कि वह यह गुड़िया अपनी भतीजी के लिए लाया था। हालांकि उसे गुड़िया से बहुत डर लगता था। उसकी दादी हमेशा यही कहा करती थी कि अगर किसी लड़के के पास कोई गुड़िया हो तो वह गुड़िया उस लड़के का खून पी जाती है और वह लड़का धीरे धीरे लड़की में बदल जाता हैं। इसी वजह से अशोक को गुड़िया पसंद नहीं थीं।

फिर तीन साल पहले उसकी भतीजी का जन्म हुआ जिसे गुड़िया से खेलना पसंद था इसलिए अशोक कल बाजार से उसके लिए यह गुड़िया ले कर आया था। कल उसे अपनी दादी की बहुत याद आ रही थी इसलिए उसने एलबम निकाली और फोटो देखते देखते सो गया। उसके बाद वो डरावना सपना......।

यह बात समझ में आते ही अशोक के चेहरे पर मुस्कान खिल गई और उसके मुंह से इतना ही निकला- “आपके मन का अंधविश्वास आज भी मेरा पीछा कर रहा है दादी माँ।”


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