गणपति
गणपति
आज गणपति जी की स्थापना है और सुदर्शन घर से गायब हैं।
सुदर्शन की पत्नी लतिका, "ये इतनी सुबह कहाँ चले गए? कुछ कह कर भी नहीं गए"
सुदर्शन की माँ सुलोचना, "अरे गया होगा कही। आ जायेगा अभी। तब तक तुम स्थापना की तैयारी शुरू कर लो"
लतिका तैयारी शुरू कर देती है। दोनों बच्चे सुबोध और प्रतिमा चारो ओर कूद रहे थे। नए कपड़ों को पहन कर दोनों खुश हो गए थे और इसी तरह अपनी खुशी जाहिर कर रहे थे।
लतिका "बच्चों जरा संभल कर खेलो तुम दोनों। अगर हाथ-पैर कही पड़-पड़ा गये तो फालतू का काम बढ़ जाएगा मेरा। तुम लोगों के पापा अभी तक नहीं आए। पता नहीं कहाँ रह गए और बता कर भी नही गए"
तभी सुदर्शन घर के अंदर आता हैं। सभी लोग परेशान से उसके पास जाते है। सुलोचना लतिका को पानी लाने के लिये कहती है।
सुलोचना(पास आकर) "इतनी सुबह कहाँ चला गया था बिना किसी को बताये? गणपति जी की मूर्ति कहाँ हैं? वही लेने गया था ना?"
सुदर्शन "नही अम्मा। मै सर्कस से होकर आ रहा हूँ। मेरा मन कुछ ठीक नहीं है"
सुलोचना "गणपति की स्थापना के वक़्त तू सर्कस में क्या कर रहा था? किसी ने कुछ कहा था क्या?"
सुदर्शन "नही अम्मा, किसी ने कुछ नहीं कहा।मैने सोचा कि आज तुम सबको सर्कस का शाम का शो दिखाया जाए"
(तभी लतिका पानी लेकर आ जाती है।) "यह तो बहुत अच्छा रहेगा। बच्चे भी कब से जिद कर रहे थे कि सर्कस जाना है, सर्कस जाना है। कब की टिकट बुक किया है?"
सुदर्शन "हम कही नही जा रहे है। मैने टिकट बुक नही किया है"
लतिका "क्यो क्या हो गया अचानक आपको? क्यो इस तरह की बातें कर रहे है?"
सुदर्शन "आज मैंने जो कुछ भी देखा, उसे देखकर मेरी आत्मा तक कांप उठी"
सुलोचना "ऐसा क्या देख लिया जो इतना परेशान है?"
सुदर्शन "मैं टिकट बुक कराने अंदर गया तो मैंने देखा कि एक आदमी एक पिंजरे में एक हाथी को लेकर जा रहा था। उसके पैरों में जंजीर बंधी हुई थी। वह आदमी उसे चाबुक से मार रहा था। जब मैंने उस आदमी से इसकी वजह पूछी तो उसने कहा,
"हाथी मेले में करतब दिखाने में नखरे कर रहा है।पिछले दो दिन से भूखा रख रहा हूँ, तब भी यह मरगीला बना हुआ है। यह इसका रोज़ का काम हो गया है। आप चिंता ना करें कल शाम तक यह तैयार हो जायेगा"
बस अम्मा मुझसे और कुछ सुना ही नहीं गया और मैं सब कुछ भूल कर घर आ गया। मुझे कुछ भी याद नहीं रहा।
लतिका "हमारे वहाँ पर ना जाने से क्या होगा? कुछ भी नही। बल्कि इससे उन जानवरों की मुश्किलें बढ़ जाएगी क्योंकि आमदनी न होने पर सर्कस के मालिकों का गुस्सा इन्हीं पर तो फूटेगा। हम लोग बस इतना ही कर सकते है कि अपनी ओर से किसी निरीह जानवर को परेशान न करें। हो सके तो उनकी यथासंभव मदद करने की कोशिश करें"
लतिका की बात सुनकर सुदर्शन का मन कुछ शांत हुआ और वह गणपति जी मूर्ति लाने बाजार चला गया।