गलत फहमी

गलत फहमी

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आज सुबह ही भोपाल के लिए रवाना हुआ तो ट्रैन के डब्बे में जाकर अपनी शीट पर बैठ गया। अब वहाँ बैठे हर एक यात्री अपने चेहरे पर उसकी सुबह को बयान कर रहा था इसी बीच मेरे बाजू की दो शीटें खाली थी और शांति थी मगर शांति का सोचते ही वहाँ पर एक नव विवाहित जोड़ा आकर बैठ गया। अब धीरे-धीरे उनकी बातें जो की सुनने में बड़ी रोचक प्रतीत हो रही थी चालू ही थी।

फिर कहानी में आया थोड़ा मोड़, एक और अच्छी कद काठी के भाईसाहब सामने वाली सीट पर आकर बैठ गए और वह लगातार भाभी जी को देख रहे थे जो मेरे बाजू में बैठी थी, ये मैंने गौर किया और अगर मैंने गौर कर लिया तो जिसकी पत्नी है वो तो गौर करेंगे ही।

फिर क्या, कुछ देर तक वही आँख मिचौली वाला खेल, जब भी वह भाईसाहब, भाभी जी को देखें तो भैया भी गुस्से में उन भाईसाहब को घुरे। अब दृश्य एक फिल्मी कहानी के जैसा लगने लगा जहाँँ हीरो-हीरोइन है और सामने एक विलन बैठा है और मैं कौन हूँ...... हम्मममम्म मैं माध्यम हूँ... आप तक ये कहानी पहुँचाने का तो फिर मैं हो गया "सूत्रधार"।

अब क्या हुआ जो विलन है उसने अपनी आँखें काले चश्मे से ढक ली और लुक छुपके देखने वाला खेल चलता रहा और अंततः हीरो की जीत हुई भाईसाहब (विलन) ने हार मान ली और वह जो टेढ़े से बैठे थे अपनी सीट पर अब सीधे बैठ गए और किताब पढ़ने लगे, भैया को थोड़ी जान में जान आयी। इतने में दोस्तो, इटारसी आ गया ट्रैन रुकी तो भैया (हीरो) नीचे उतरे कुछ लेने के लिए तो उन भाईसाहब ने मौका देखते हुए भाभी जी से बात कर ही ली मगर जैसा अभी आप सोच रहे है वैसे नही उन्होंने पूछा- "बेटा आपका नाम #### है क्या और आप ####से पढ़ी है क्या ?" तो भाभी जी भी थोड़ी असहज हुई और फिर एकदम से हँस पड़ी और कह पड़ी- "अरे सर आप ! मैं तो पहचान ही नहीं पायी।"

मैंने मन मे सोचा भाभी जी बड़े जल्दी पहचान लिया आपने विचारे भाईसाहब तो विलन बन चुके थे।

इतने में भैया भी आ गये और सर का परिचय भाभी ने भैया से करा दिया।

अब भैया और भाईसाहब आपस में बात तो जरूर कर रहे थे मगर आपस में नजर नहीं मिला पा रहे थे।

अब देखिए न क्या सोच रहे थे और क्या निकला ऐसा ही कई बार हमारे साथ अमूमन होता रहता है हम पहले से ही किसी व्यक्ति विशेष की धारणा बना लेते हैं और उसे वैसे ही नजरिये से देखते रहते हैं चाहे उसमें सत्यता हो या न हो।


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