गीत का घर
गीत का घर
आओ
ले चलूँ तुम्हें आज मैं गीत के घर..
जिसके दरवाज़े पर मैंने बड़े ही प्यार से मोहब्बत लिखा है
गीत का घर ……
एक ऐसा घर जिसका कोना कोना बड़ी ही ख़ूबसूरती से सजाया गया है,
इस घर के हर कमरे में खिड़कियाँ हैं और हर खिड़की के बाहर का नज़ारा अनोखा और बेहद ही सुंदर है !
एक कमरे में जो खिड़की है, वहाँ से लहराती हुई समंदर की लहरें जैसे आँखमिचोली खेल रही हैं ! मौजें जैसे गीत से बातें किया करती हैं !
बातें करते करते गीत कवितायें लिखती जा रही है, जिनमे लहरों से वो कहती हैं के उसका प्यारा सा एक मोती खो गया है, ए लहर, तुम तो बड़ी दूर तक जाती हो और किनारों से टकरा कर समंदर से कितनी चीज़ें के आती हो
क्या गीत का वो प्यारा सा मोती ढूँढ कर नहीं ला सकती हो ?
उस खिड़की पर खड़ी वो लड़की बड़ी देर तक लहरों को तकती रहती है अपने उस मोती के लौट आने के इंतज़ार में ..
घर के एक कमरे की खिड़की पर लहराते सफ़ेद पर्दे और समंदर को छू कर आती हुई ठंडी ठंडी हवा उसे अपने महबूब से की गई बातें याद दिलाती है । कैसे सजाया करते थे दोनों अपनी मन पसंद से अपना ख़ुद का घर ..
बिस्तर की एक और एक मेज़ पर ख़ुशबूदार मोमबत्ती जलाया करते, वहीं दूसरी और समंदर किनारे रेत पर ली गई वह तसवीर जिसमें हमारे पावों के निशान थे ! जब सुर्ख़ रंग आसमान में छा जाता था सूरज के ढलने पर तब हम वहाँ उस खिड़की से आती सुर्ख किरनों में हाथों में हाथ लिए जगजीत जी की ग़ज़लें गुनगुनाया करते थे !
गीत के घर की छोटी सी वो रसोई, जिसमें हर रोज़ बनते लहज़ेदार खानों के साथ बड़े ही चाव से ज़बरज़स्ती उसका रेसिपी समझाना और उसका गीत के चेहरे को ऐक्शंस को मन ही मन सराहना फिर धीरे से मुस्कुराकर उसे फिर एक बार अपने प्यार का इज़हार करके उसको गले लगाना,
घर का पीछला दरवाज़ा छोटे से गार्डन में खुलता था, जहां गीत के मनपसंद रंगो के कितने फूल पौधे उगाये गाये थे, और वहीं एक पेड़ भी था गुलमोहर का, जिसके नीचे एक झुला भी था, जहां बैठ चाय की चुसकिया लेते और घास में इधर उधर भागती फिरती गिलहरियों की मस्ती देखते, चिड़ियों की चेहक़ और मोगरों और रात् रानी के फूलों की ख़ुशबू .. हर सुबह का ये समय सबसे ख़ास और अनमोल था !
गीत के घर के आँगन की ख़ूबसूरतीकी तो बात ही क्या करनी ? सामने ही नीला समंदर जो ज़िंदगी को जी भर जीने की आस जगाता था
कितनी शांति मिलती थी मन को जब समंदर की मौजे उछल उछल कर दोनों को बुलाती थी अपने पास
मानो कहतीं हों, मेरे भीतर भी एक सुंदर सी दुनिया हैं, देखना चाहोगे ? और गीत खुली आँखों उस समंदर की गहराई में बसा अपना एक और घर देखती, जो बड़ा ही प्यारा था, हालाँकि वहाँ से सूरज की लाली नज़र नहीं आती थी, मगर एक अनोखा नजारा था, दुनिया से परे एक दूसरी दुनिया जहां सिर्फ़ सुकून था, चारों और तैरती रंगबिरंगी मछलियाँ और उनकी अपनी दुनिया ..
वहाँ गीत और उसका साथी - बस ! संग संग तैरते और गुनगुनाते, मछलियों से बतियाते और फिर किनारे लौट आते, किनारों की रेत में घर बनाते, उसके आँगन में अपना नाम लिखते और लहरों के मिटाने पर जूठ मूठ का रूठते और मनाते!
गीत की बातों से लगता है जैसे किसी चित्रकार ने उसके तन मन पर एक सुंदर सी तस्वीर बनायी है जिसमें उसकी ज़िंदगी के सारे ही रंग बड़ी ख़ूबसूरती से भर दिये हैं, रंगों को ख़ुद में घुलता हुआ महसूस कर रही है, सांस तेज़ चलने लगती हैं, आँखों में समंदर सी गहरायी आ जाती हैं ! एक अजब सी प्यास दिखायी देती है मानो के उस ख़्वाब को जीने को, उसे हक़ीक़त में बदलने को सदियों से बेचैन है उसकी रूह !
अपने मन की सच्चाई को, चाहत को और अपनी उलझनों को छुपाते हुए बस वो साँस लिए जा रही है मगर कोई भी शब्द उसकी भावनाओं को समझाने समर्थ नहीं हैं ।
ये हैं गीत की कहानी, गीत के ख़्वाबों का घर जो के उसके दिल के कैनवास पर रंगो से सजा एक मास्टरपीस है, दुनिया से अनजान बस उसकी आँखों में उसके दिल में क़ैद , एक अनमोल मास्टरपीस !
इस मास्टरपीस में प्यार है, जो नहीं दिखायी दे रही है वो जुदाई है, रूठना मनाना है, मिलना बिछड़ना, डूब कर जीना है, ज़िंदगी की तड़प है, कहीं दूरियों का गम तो कहीं ख़ुशियाँ हैं, धूप छाँव में चलती ज़िंदगी का ये इंद्रधनुष जैसे कई रंगो में सजा है !
कितनी अनकही कहानियों की किताब सी ये ज़िंदगी की खामोशियों का ख़ज़ाना है गीत का घर !
