घर
घर
उस घर को मकान न बोलो
उसमे यादें बसी हैं मेरी
बचपन बसा है मेरा
जवानी बसी है मेरी
माँ की पायल की आवाज़
अभी भी गूंजती है
और बाबूजी की फटकार
सुनाई देती है
पेड़ों की पत्तियाँ
अभी भी हरी हैं
परिंदो की कटोरी
अभी भी भरी है
फूलों से महकता है
बगीचा अभी भी
दीवारो का पलस्तर
नया नया सा है
दादी की पोटली का सामान
रहता था वहां
दादाजी की छड़ी का निशान
अभी भी है
कोई और रोशन करेगा
उस मन्दिर को
मेरे घर को मकान न बोलो
उसमें ज़िन्दगी बाकी अभी भी है