Vandana Bhatnagar

Drama

5.0  

Vandana Bhatnagar

Drama

एकता में शक्ति

एकता में शक्ति

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हरिया गांव का रहने वाला सीधा साधा आदमी था।वो बटाई पर खेतों पर काम किया करता था।

उसका बेटा मनोज बहुत होनहार था। उसकी मां की मृत्यु होने के पश्चात हरिया ने ही उसे पाल पोस कर बड़ा किया था। गरीबी में भी हरिया ने उसे हर सुविधा दी थी और पढ़ने के लिए उसे किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दी थी। अब उसने ग्रेजुएशन कर लिया था और कम्पीटिशन की तैयारी कर रहा था। मनोज के संग के कुछ लड़के उससे ईर्ष्या रखते थे और वह नहीं चाहते थे कि वह कम्पपीटिशन पास करके उनसे आगे निकल जाए।वो उसकी राह में रोड़े डालते रहते थे पर उसने इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया ।एक दिन उन लड़कों ने मिलकर मनोज पर चोरी का झूठा आरोप लगा दिया और उसे थाने भिजवा दिया। जब हरिया को इस बात का पता चला तो वो सब काम छोड़कर फटाफट थाने पहुंच गया। हरिया को देखकर मनोज रोने लगा और बोला मैंने कोई चोरी नहीं करी है यह सब इनकी मिलीभगत है। हरिया थानेदार के सामने गिड़गिड़ाने लगा और अपने बेटे को छोड़ने की ज़िद करने लगा पर थानेदार ने उसे डांट फटकार कर वहां से भगा दिया। हरिया थाने से निकलकर गांव की ओर यही सोचता हुआ जा रहा था कि अगर मनोज जेल में रहा तो अपने एग्जाम कैसे दे पाएगा।

उसे अपने कंपटीशन से बहुत उम्मीद है। हरिया उसके भविष्य के बारे में सोच कर बहुत चिंतित था। अगले दिन हरिया फिर थानेदार के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और उनसे बोला साहब आप मेरे बेटे को छोड़ दो नहीं तो उसका भविष्य बर्बाद हो जाएगा पर वह तो अपनी मूछों पर ताव देकर हंसता रहा और उसकी एक ना सुनी। हरिया वहां से निराश होकर अपने गांव के मुखिया के पास गया और जाकर सारी बात बताई।

मुखिया उसे और उसके बेटे को भलीभांति जानता था वह गांव वालों और कुछ प्रतिष्ठित लोगों को साथ लेकर तुरंत हरिया के साथ थाने पहुंच गया। मुखिया जी ने जब थानेदार से मनोज के द्वारा की गई चोरी के सबूत मांगे तो थानेदार बगले झांकने लगा और बोला मैंने इसे सिर्फ जांच के लिए उठाया था और जांच पूरी हो गई है ।यह निर्दोष ही साबित हुआ है ।मैं तो इसे छोड़ ही रहा था कि आप लोग आ गए। थानेदार को गिरगिट की तरह रंग बदलते देख कर हरिया बहुत हैरान था पर अपने बेटे को थानेदार के चंगुल से निकलता देख कर खुश भी बहुत था। सच में एकता में बहुत शक्ति होती है।

आज हरिया ने भी देख लिया था कि एक और एक ग्यारह होते हैं। अब सारे लोग मिलकर थानेदार की शिकायत की बात करने लगे तो थानेदार को दिन में तारे नज़र आने लगे। अब वह अकेला पड़ गया था और अब गिड़गिड़ाने की बारी उसकी थी। थानेदार ना जाने कितने ही निर्दोष एवं गरीब लोगों पर आरोप लगाकर, बेवजह पकड़कर उनसे पैसे वसूल करता था। अपने गलत कामों की सज़ा उसे मिलनी भी चाहिए थी


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